Friday, February 24, 2012

काले धन की काली अथव्यवस्था



(पिछले कुछ वर्षो से देश से बाहर जमा भारतीयों के काले धन के बारे में कइ तरह के अनुमान लगाये जाते रहे हैं सरकार पर लगातार काला धन वापस लाने और इस धन को जमा करने वालों पर कारवाइ का दबाव भी बनाया जा रहा है अब सीबीआइ निदेशक एपी सिंह ने यह कहकर कि भारत का करीब 500 अरब डॉलर काला धन विदेशों में जमा है, इस मुद्दे की गंभीरता को एक बार फिर उजागर कर दिया है काले धन के पूरे तंत्र और उससे जुड़ी चिंताओं के बीच ले जाता आज का समय)

विश्वबैंक का अनुमान है कि आपराधिक गतिविधियों और कर चोरी से करीब ड़ेढ टि­लियन डॉलर(1500 अरब डॉलर) एक देश से दूसरे देशों में पहुंचता है, जिसमें से 40 अरब डॉलर विकासशील देशों में सरकारी कमचारियों को दी गयी रिश्वत का भाग है विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक पिछले पंद्रह वर्षो में से सिफ 5 अरब डॉलर को वापस हासिल किया जा सका है

 

देश से बाहर काला धन जमा करने वालों में भारतीय अव्वल हैं अनुमान के मुताबिक करीब 500 बिलियन डॉलर (यानी करीब 245 खरब रुपये) का काला धन देश से बाहर जमा है देश में टैक्स संबंधी कानूनी खामियों का फायदा उठाकर कइ भारतीयों ने भारी मात्रा में काला धन विदेशों में जमा किया है इन देशों में मॉरीशस, स्विट्जरलैंड, लिकटेंस्टीन और ब्रिटिश वजिन आइलैंड शामिल हैं स्विस बैंकों में भी सबसे ह्लयादा धन भारतीयों का ही है यह काला धन ह्लयादातर उन देशों के बैंकों में जमा हो रहा है, जहां भ्रष्टाचार सबसे कम है ट­ांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडेक्स में न्यूजीलैंड को सबसे कम भ्रष्ट देश माना जाता है इस सूची में सिंगापुर पांचवें और स्विट्जरलैंड सातवें नंबर पर है, लेकिन ये सभी देश टैक्स हेवन(टैक्स चोरी के स्वग) हैं टैक्स हेवन उन देशों को कहा जाता है, जहां कर संबंधी लचीले कानूनों के कारण भारतीय अपना काला धन छिपाते हैं टैक्स हेवन गैरकानूनी कार्यो के खिलाफ कारवाइ नहीं करते उनकी अथव्यवस्था को इससे फायदा होता है काले धन की पहचान, जब्ती और वापस लाना कानूनी चुनौती है इसके लिए विशेषज्ञता जरूरी है चोरी किये गए सामान को वापस लाना एक विशिष्ट कानूनी प्रक्रिया की मांग करता है इसमें देर लगती है साथ ही जांच एजेंसियों को दूसरे देशों में भाषाइ दिक्कतों के साथ ही अविश्वास का भी सामना करना पड़ता है इन मामलों में कानून प्रक्रिया मुश्किल और पेचीदगी भरी होती है प्रत्येक देश को अलग-अलग न्यायिक अनुरोध भेजने पड़ते हैं इन मामलों से निपटने में जांचकताओं को सषाम बनाने के लिए खास वैश्विक प्रशिषाण कायक्रमों की जरूरत है ऐसा करके ही भ्रष्ट और आपराधिक तरीकों से कमाये पैसों की पहचान करने और उचित कानूनी कारवाइ द्वारा उसे वापस लाने की षामताओं का विस्तार हो सकता है

 

ऐसे में जब वैश्विक वित्तीय बाजार में धन का प्रवाह काफी जेजी से होता है, ऐसे मामलों में धन का पता लगाने में और दिक्कतें पैदा होती हैं सबसे बड़ी परेशानी अधिकार षोत्र का है अपराध कानूनों में षोत्राधिकार राजनीतिक सीमाओं में बंधा होता है इसके तहत एक देश अपने कानूनों को अपने देश की सीमाओं के पार लागू नहीं कर सकता अपराधी अपने आपको बचाने के लिए अपराध को दो या ह्लयादा देशों में फैला देते हैं और तीसरे देश में निवेश करते हैं 2जी, सीडब्ल्यूजी और मधु कोड़ा के मामलों में हमने देखा है कि काला धन पहले दुबइ, सिंगापुर या मॉरीशस गया वहां से यह स्विट्जरलैंड और कर चोरों के स्वग माने जाने वाले अन्य देशों में पहुंचा अपने काम को अंजाम देने के लिए अपराधी छद्म कंपनियां खोलते हैं और चंद घंटों में एक के बाद एक कइ खातों में धन हस्तांतरित किया जाता है, क्योंकि आज बैंकिग लेन-देन में देशों की सीमाएं कोइ बाधा नहीं है टैक्स चोरी के पनाहगार देशों ने इस मामले में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाइ है वे उन सूचनाओं को साझा करने से हिचकिचाते रहे हैं, जिनसे ऐसी संपत्ति का पता लगाया जा सकता है इन देशों अथव्यवस्थाओं को भी शायद गरीब देशों से आने वाले काले धन की आदत हो गयी है ऐसे हालात में हमें कालेधन से निपटने के लिए लगातार और ठोस प्रयास करने होंगे हमें काला धन जमा करने को हाइ रिस्क, नो प्रॉफिट का धंधा बनाना होगा तभी काला धन के रोग को रोका जा सकता है

 

(भ्रष्टाचार निरोधी और संपत्ति वसूली पर पहले इंटरपोल ग्लोबल प्रोग्राम में दिये भाषण का संपादित अंश)

 

काले धन का आकार : अलग-अलग अनुमान

 

ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी की रिपोट के मुताबिक 1948 से 2008 के बीच भारत का विदेशी बैंकों में कुल 20 लाख करोड़ रुपया काला धन के रूप में जमा हुआ है रिपोट के मुताबिक काला धन का प्रवाह सालाना 117 फीसदी की दर से ब़ढा है यह रकम सबसे बड़े घोटाले के रूप में चचित 2 जी स्पेक्ट­म मामले में हुए नुकसान से करीब 12 गुना अधिक है

 

स्विस बैंक एसोसिएशन 2008 की रिपोट के अनुसार स्विस बैंक में भारतीयों के करीब 66,000 अरब रुपये (करीब 1500 अरब डॉलर) जमा हैं रूस के 470 अरब डॉलर, ब्रिटेन के 390 अरब, यूक्रेन के 100 अरब, जबकि अन्य देशों के कुल 300 अरब डॉलर जमा हैं

 

कार एंड काटराइट स्मिथ की 2008 की रिपोट के मुताबिक 2002 से 06 के दौरान कालाधन के कारण भारत को सालाना 237 से 273 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पडा है

 

अंतरराष्ट­ीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की रिपोट के मुताबिक 2002 से 06 के दौरान भारत को कालाधन के कारण सालाना 16 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है

 

भाजपा टास्कफोस : 2009 में कहा था कि काला धन 245 लाख करोड़ से 64 लाख करोड़ रुपये है

 

बाबा रामदेव : 400 लाख करोड़ रुपये काला धन जमा होने का दावा किया था

 

ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी, वॉशिंगटन : भारतीयों ने 1948 से 2008 तक 25 लाख करोड़ रुपये का काला धन विदेशों में जमा किया

 

सरकार : पहली बार किसी सरकारी विभाग के मुखिया ने देश से बाहर काला धन का अनुमान लगाया है सीबीआइ निदेशक के मुताबिक विदेशों में जमा काला धन 500 अरब डॉलर है

 

2000 के दशक के शुरू में अथशास्त्री अरुण कुमार ने अनुमान लगाया कि भारत की 40 प्रतिशत संपत्ति काले धन के रूप में विदेशों में मौजूद है मौजूदा जीडीपी अनुमानों के हिसाब से यह 35 लाख करोड़ हैl

काले धन का असर - आथिक नीतियां होती हैं प्रभावित

 

राजकोषीय प्रणाली पर असर

 

कर चोरी का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह होता है कि सरकार करों से होने वाली आय के एक बड़े भाग से वंचित हो जाती है इससे अधिक आय प्राप्त करने के लिए सरकार कर दरों में वृद्धि कर देती है इससे कर प्रणाली में जटिलता आती है और साथ ही कर चोरी करने की प्रवृत्ति ब़ढती है

 

साधनों के वितरण पर विपरीत प्रभाव

 

काले धन से सरकार की करों से होने वाली आय तो प्रभावित होती ही है, साथ ही अथव्यवस्था में साधनों के आवंटन और वितरण पर भी बुरा असर पड़ता है इससे मुद्रा का अपव्यय होने लगता है कालेधन से विलासिता की वस्तुओं के उपभोग में वृद्धि होती है, जिससे वित्त का उपयोग अनुत्पादक कार्यो में होने लगता है इस प्रवृत्ति के कारण देशमें महंगाइ भी ब़ढती है

 

आय के वितरण पर प्रभाव

 

जिन लोगों के पास काले धन की मौजूदगी होती है, वे सही आय बताने से बचते हैं मौजूदा कर प्रणाली में अधिक आय पर अधिक कर देना होता है ऐसे में धनी लोग बड़ी मात्रा में कर चोरी करने में सफल होते हैं इस आय का प्रयोग गैर कानूनी कार्यो में किया जाता है जिससे और अधिक काले धन का प्रवाह होने लगता है काले धन से आय का वितरण असमान हो जाता है इसके साथ ही सरकार अपना राजस्व ब़ढाने के लिए इमानदार करदाताओं को अधिक कर का भुगतान करने के लिए विवश करती है

 

मौद्रिक नीति के क्रियान्वयन में कठिनाइ

 

काली कमाइ की उपलब्धता के कारण वित्तीय अधिकारियों को अथव्यवस्था में मुद्रा के नियंत्रण में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है अपनी मुद्रा के साख नियंत्रणके उपायों को लागू करना भी कठिन हो जाता है काला धन मुद्रास्फीति संबंधी सरकारी नीति को क्रियान्वित करने की राह में कइ बाधाएं उत्पत्र करता है

 

देश से बाहर संपत्ति का स्थानांतरण

 

राष्ट­ीय संपत्ति देश से बाहर चली जाती है इससे हमें अथव्यवस्था के विकास के लिए विदेश से कज पर निभर होना पड़ता है इस प्रकार देशका विकास धीमा हो जाता है जबकि हमारे देश के नागरिकों के पैसे से दूसरे देश अपने यहां का विकास कर पाते हैं

 

नहीं बन पाती हैं सही नीतियां

 

चूंकि काला धन देश की आथिक नीति के दायरे में नहीं आता है, इसलिए इससे अथव्यवस्था के संबंध में सही आकलन नहीं हो पाता है इससे राष्ट­ीय उपभोग, बचत, आय-व्यय के वितरण के संबंध में सही नीतियां बन नहीं पाती हैं

 

भारत में काला धन का आकार निरंतर ब़ढने के बाद इसे समानांतर अथव्यवस्था की संज्ञा दी जाने लगी है सावजनिक एवं निजी षोत्र में विनियोग के आंकड़ों को भी शंका की दृष्टि से देखा जाता है कुल मिलाकर काला धन आथिक नियोजकों की राह में कइ मुश्किलें पेश करता हैl

जरूरत है सख्त कानून की

पीएस बावा, चेयरमैन ट­ांसपेरेंसी इंटरनेशनल, इंडिया

 

काले धन से एक समानांतर अथव्यवस्था पैदा होती है इससे सरकार की मौद्रिक नीति प्रभावित होती है यह जानते हुए भी सरकार विदेशों में जमा कालेधन को वापस लाने में ढुलमुल रवैया अपना रही है, इससे सरकार की मंशा स्पष्ट हो जाती है भ्रष्टाचार और काले धन से आम लोगों का दैनिक जीवन प्रभावित हो रहा है अगर देश में व्हाइट मनी होगी, तो इससे आम लोगों और सरकार को फायदा होगा अथव्यवस्था और मजबूत होगी काले धन से पूरी अथव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है

 

काले धन से बनी समानांतर अथव्यवस्था से सामाजिक ढांचे में बड़ा बदलाव आया है आय की असमानता और गरीबी ब़ढी है विदेशी बैंको में जमा पैसे आम लोगों के नहीं बल्कि प्रभाव शाली लोगों के भ्रष्ट तरीके से कमाये पैसे हैं ये लोग समाज में अवैध रूप से पैसा कमाते हैं और इसे काले धन के रूप में विदेशी बैंकों में जमा करते हैं, ताकि इनकम टैक्स देने बचा जा सके काला धन पैदा होने में सरकार भी कसूरवार है सरकार को इन अवैध कमाइ करने वाले लोगों के बारे में जानकारी है, लेकिन सरकार कारवाइ करने से डरती है सरकार नहीं चाहती है कि उसे परेशानियों का सामना करना पड़े काला धन जमा करने वालों के नाम बाहर आने से सरकार की किरकिरी होगी आमजन में यह संदेश जायेगा कि सरकार को इन नामों के बारे जानकारी थी, लेकिन सरकार ने पहले उनके खिलाफ जानबूझकर कोइ कारवाइ नहीं की

 

सरकार मजबूत इच्छाशक्ति से काम ले, तो कालेधन को वापस लाने में कोइ समस्या नहीं है कइ देशों ने विदेशी बैंकों से कालाधन वापस हासिल कर लिया है अमेरिका को ही लें उसने स्विट्जरलैंड के बैंकों में अपने नागरिकों के जमा धन के बारे में जानकारी हासिल कर ऐसे लोगों के खिलाफ कारवाइ भी शुरू कर दी है अमेरिकी अदालत ने यूबीएस बैंक पर जुमाना लगाते हुए लोगों के नाम बताने को कहा है और बैंक इसके लिए तैयार भी हो गया इसलिए ऐसा कहना कि भारत सरकार इस तरह का कदम नहीं उठा सकती है, गलत है

 

2005 के यूएन कन्वेंशन एगेंस्ट करप्शन (यूएनसीएसी) पर विश्व के ह्लयादातर मुल्कों ने हस्ताषार कर दिया है इस कन्वेंशन के तहत कोइ भी मुल्क दूसरे मुल्क से भ्रष्टाचार के मुद्दों पर जानकारी का आदान-प्रदान कर सकता सकता है इसके लिए वह वहां के कानून की भी मदद ली जा सकती है दूसरा मुल्क इसमें पूरी तरह मदद करेगा अमेरिका भी इसी कन्वेंशन के तहत कालाधन के मसले पर कारवाइ कर रहा है

 

उधर, स्विट्जरलैंड की सरकार ने भी स्विस बैंक में धन जमा करने वाले लोगों के नाम की जानकारी के लिए प्रक्रिया को उदार बनाया है पहले अगर कोइ देश स्विस बैंक में जमा धन राशि के बारे में जानना चाहता था, उसे उन लोगों के नाम और पते देने होते थे उनकी पहचान भी बतानी पड़ती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है हालांकि, इस बारे में अभी पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन इससे साफ संकेत मिलते हैं कि स्विस सरकार इस मामले में लचीला रुख अख्तियार किया है वतमान कानून के तहत वह किसी भी देश की सरकार को टैक्स चोरी करने वाले व्यक्ति का नाम, पहचान और पते के आधार पर यह जानकारी देती है कि उसका कितना धन स्विस बैंकों में जमा है लेकिन इसके लिए वह अपनी शत भी रखती है कि जब तक उस व्यक्ति के खिलाफ वित्तीय अपराध का मामला दज न हो, तब तक उसके नाम को सावजनिक न किया जाये मौजूदा समय में सरकार पर काला धन के मामले को लेकर चारों ओर से दबाव है काले धन को लेकर सुप्रीम कोट में भी मामला चल रहा है और अदालत ने तल्ख टिप्पणियां भी की हैं अदालत के आदेश पर सरकार ने काले धन का पता लगाने के लिए उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया है कालेधन पर रोक लगाने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए

 

विदेशी बैंक में जमा कालेधन के साथ देश के अंदर जमा काले धन को उजागर करने की जरूरत है भारतीय बैंकों में भी काले धन के रूप में कइ अरब रुपये हैं, जिसपर किसी ने दावा नहीं किया है रिजव बैंक ने भी माना है कि भारतीय बैंकों में 13 अरब से ह्लयादा ऐसे रुपये हैं, जिन पर किसी ने दावा नहीं किया और ये 10 साल पुराने हैं सरकार को इस पर भी कारवाइ करनी चाहिएl

किस-किस का है कालाधन

 

किस-किस का है कालाधनविभित्र रिपोर्टो से संकेत मिलता है कि विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वालों में भारत के धनकुबेर उद्योगपति ही नहीं, कुछबड़े राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हैं

 

दरअसल, छोटे स्तर पर दी जाने वाली घूस की रकम तो देश में ही रह जाती है, लेकिन यही रकम जब करोड़ों में होती है तो उसे जमा करने के लिए विदेशी बैंक सुरषिात ठिकाने होते हैं

 

देश में बहुत से नेता और अधिकारी बड़ी योजनाओं और सौदों में करोड़ों रुपये रिश्वत लेते हैं वे कानूनी शिकंजे से बचने के लिए घूस की रकम खुद अपने हाथ में न लेकर हवाला एजेंटों के जरिये यह लेन-देन कराते हैं

 

हवाला के जरिये जाता है विदेश

 

 

हवाला एजेंट संबंधित नेता या अधिकारी के विदेशी बैंक खाते में पैसे जमा कराते हैं ये एजेंट लचर कानून का फायदा उठा रहे हैं

 

सरकार ने अंतरराष्ट­ीय कारोबार को ब़ढावा देने के लिए फॉरेन एक्सचेंज रेग्यूलेटस एक्ट(फेरा) के बदले फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट(फेमा) बना दिया इससे हवाला कारोबारियों में कानून की सख्ती का डर कम हो गया फेरा के तहत मुद्रा की हेराफेरी करने पर जुमाना, गिरफ्तारी और आपराधिक मुकदमे का प्रावधान था, लेकिन फेमा के तहत सिफ जुमाना वसूला जाता है

 

हवाला कारोबारी अब इंटरनेट का प्रयोग करते हैं इससे अवैध रकम का पता लगाना जांच एजेंसियों के लिए काफी मुश्किल हो गया है

 

और भी हैं रास्ते

 

 

देश से बाहर पैसा भेजने हवाला के अलावा कुछ और भी रास्ते हैं हालांकि उन तरीकों में कालाधन छिपाने के लिए बिजनेसमैन के सहयोग की जरूरत पड़ती है वह अपनी छिपी हुइ कंपनियों से इसमें मदद करता है

 

कॉरपोरेट हाउस के पास बहुत-सी ऐसी कंपनियां भी होती हैं, जिन्हें वे सावजनिक नहीं करते कालाधन अजित करने वालों के पैसे को इन कंपनियों के सहारे भारत में फिर विदेश में निवेश कर दिया जाता है इस तरह काला धन सफेद बन जाता है

 

स्विस बैंक में खाता खोलने के लिए न्यूनतम जमा राशि 50 करोड़ रुपये है इतनी बड़ी रकम जमा कराने वाला आम नागरिक नहीं हो सकता हैl

उदारीकरण से ब़ढा रोग

प्रोफेसर अरुण कुमार, अथशा ी, जेएनयू

 

कालेधन की अथव्यवस्था देश के सामने मौजूद प्रमुख समस्याओं में से एक है हमारे देश में इस गंभीर समस्या के विषय में आजादी के बाद सबसे पहले 1955-56 में इंग्लैंड के प्रोफेसर कैल्डर ने प्रकाश डाला था उनका उस वक्त आकलन था कि भारत का काला धन देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4-5 प्रतिशत है तब से लगातार इसमें इजाफा होता गया है 1995-96 में यह जीडीपी का 40 प्रतिशत था और कुछ अनुमानों के मुताबिक आज यह ब़ढकर तकरीबन 50 प्रतिशत हो गया है इस लिहाज से यह कहा जा सकता है कि पिछले 40-50 वर्षो में काले धन एक समानांतर अथव्यवस्था के रूप में विकसित हो चुका है हर साल देश में करीब 35 लाख करोड़ रुपये की ब्लैक इकोनॉमी तैयार होने लगी है इस राशि का करीब 10 प्रतिशत यानी करीब तीन लाख करोड़ सालाना काले धन के रूप में विदेशों में जमा होता जा रहा है जो 2005-06 में ब़ढकर करीब 2 टि­लियन डॉलर (90 लाख करोड़) तक पहुंच गया है यह काला धन 77 टैक्स हेवन (जहां करों पर बहुत रियायत है) माने जाने वाले देशों, मसलन, मॉरीशस, बहामास, स्विट्जरलैंड आदि में जमा है लेकिन काले धन का 90 फीसदी हिस्सा देश के अंदर है

 

दरअसल यह काली कमाइ कानूनी और गैरकानूनी दोनों गतिविधियों से पैदा हो रही है गैरकानूनी यानी कि मादक पदाथों की तस्करी, स्मगलिंग जैसे धंधों से 10 प्रतिशत ही काला धन पैदा हो रहा है कानूनी रूप से स्वीकृत व्यवसायों से करीब 40 फीसदी काला धन पैदा हो रहा है काले कमाइ की यह पूरी अथव्यवस्था राजनेताओं, व्यवसायी और कायपालिका के गठजोड़ से फल-फूल रही है इस त्रिगुट ने इसे संस्थागत कर दिया है इस प्रकार काले धन की अथव्यवस्था सिस्टम में एक उपतंत्र के रूप में विकसित हो गयी है इस उपतंत्र निकलने वाली आय का किसी भी सरकारी खाते में कोइ जिक्र नहीं है कुल मिलाकर यह काला धन संस्थागत एवं व्यवस्थित रूप ले चुका है और देश के लिए गंभीर सामाजिक-आथिक समस्या बन चुका है

 

1991 में आथिक उदारीकरण का दौर शुरू होने के बाद देश में काले धन के प्रवाह में तेजी आयी है उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू करने के साथ उम्मीद जतायी गयी थी कि परमिट-लाइसेंस कोटा राज समाप्त होने के बाद भ्रष्टाचार और कालेधन पर अंकुश लगेगा, लेकिन हुआ इसके विपरीत टैक्स ढांचा सरल होने और टैक्स की दरें कम होने के बावजूद काली कमाइ ब़ढने लगी घोटालों का भी कालाधन से सीधा संबंध होता है जिस तरह घोटालों की संख्या दिनोंदिन ब़ढती जा रही है, उसी तरह काली अथव्यवस्था का आकार भी ब़ढता जा रहा है 1980 के दशक में देश में 8 बड़े घोटाले हुए थे, जबकि 1991 से 96 के बीच 26 और 1996 से अब तक करीब 160 बड़े घोटाले सामने आ चुके हैं घोटालों की रकम में भी काफी वृद्धि हुइ है

 

उदारीकरण के बाद घोटालों का दौर सा शुरू हो गया घोटालों की संख्या ब़ढने के साथ-साथ इनसे होने वाला नुकसान भी काफी ब़ढ गया है आज नीतियों की असफलता की दर ब़ढी है और गवर्नेस के स्तर में गिरावट आयी है इसकी बड़ी वजह काला धन का आकार ब़ढना है कालाधन का असर इतना व्यापक हो गया है कि जिनपर व्यवस्था चलाने का दारोमदार है, वे भ्रष्ट लोगों के साथ खड़े हो गये हैं व्यवस्था ऐसी बना दी गयी है कि काम कराने के लिए पैसा देना जरूरी हो गया है इसके बावजूद सरकार काले धन के प्रति गंभीर नहीं दिखती है कारण साफ है, विदेशी बैंकों में जमा काला धन सामान्य नागरिकों का नहीं, बल्कि प्रभावशाली लोगों का है और सरकार नहीं चाहती कि उनके खिलाफ कारवाइ हो सरकार की सक्रियता के बिना कालाधन वापस लाना संभव नहीं है, क्योंकि यह दूसरे देशों से जुड़ा मसला है यदि सरकार जल्द कोइ कारगर कदम नहीं उठाती तो काले धन की समानांतर अथव्यस्था और मजबूत हो जायेगी इससे सरकार की मौद्रिक नीति प्रभावित होगी और विकास की गति शिथिल पड़ जायेगीl

कालाधन वापस आ जाये तो

    

बजट घाटा खत्म

बजट घाटा खत्मकाले धन की मात्रा चालू वित्त वष के लिए अनुमानित 8912 लाख करोड़ रुपये के जीडीपी के 27 फीसदी से भी ह्लयादा है वहीं भारत का राजकोषीय घाटा करीब 45 लाख करोड़ रुपया है यानी देश के राजकोषीय घाटे के मुकाबले विदेशी बैंकों में जमा काला धन करीब 6 गुना हैl

गरीबी हो सकती है दूर

गरीबी हो सकती है दूरदेश की गरीबी दूर की जा सकती है आज भी करीब 45 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे का जीवन बिता रहे हैं इनकी प्रतिदिन औसत आमदनी 50 रुपये से कुछ ही कम है विदेशों में जमा 245 खरब रुपये को जनसंख्या के अनुपात में बांटे तो एक आदमी को 2024793 रुपये मिलेगा

चुका देगा सारा कज

चुका देगा सारा कजइस धन के आने से विदेशों का सारा कज उतर सकता है अनुमानों के मुताबिक भारतीयों का कालाधन कुल विदेशी कज का 13 गुना है कालाधन आने पर यदि पूरे देश में कोइ कर नहीं लगाया जाये तो भी सरकार अपनी मुद्रा को अगले 30 साल तक स्थिर रख सकती है

दूर होगी बेरोजगारी

दूर होगी बेरोजगारीकालाधन वापस आने से देश के 60 करोड़ बेरोजगारों को नौकरियां मिल सकती हैं देश के किसी भी गांव से दिल्ली तक चार लेन की सड़क बनायी जा सकती है

 

वतमान में देश में 6 लाख गांव है इन सभी गांवों के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा सकता है

सभी का होगा विकास

सभी का होगा विकासकालाधन देश में आने से 500 योजनाओं को हमेशा के लिए नि:शुल्क बिजली की आपूति हो सकती है देश के प्रत्येक नागरिक को 60 साल तक हर महीने 2000 रुपये का भत्ता मिल सकता है इसके लिएदेश को वल्ड बैंक या अंतरराष्ट­ीय मुद्रा कोष से कोइ कज लेने की जरूरत नहीं होगी

ग्रामीण षोत्र

ग्रामीण षोत्रसरकार हर वष 40 हजार 100 करोड़ रुपये अपनी महत्वाकांषी योजना मनरेगा पर खच करती है इस रकम के आने पर 50 सालों तक मनरेगा का खच निकल आयेगा किसानों को दिये गये 72 हजार करोड़ जैसे कज माफी योजना को 28 बार माफ किया जा सकता है

पांच साल कर छूट

पांच साल कर छूटभारत सरकार राजस्व प्राप्ति के लिए प्रत्यषा कर के जरिये आम लोगों से लेकर उद्योगपतियों से सालाना करीब 5 लाख करोड़ रुपये वसूल करती है जाहिर है अगर देश का पूरा काला धन वापस आ जाये तो यह पूरे पांच साल वसूले जाने वाले कुल टैक्स के बराबर होगा



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