ऒम भूर्भुव : स्व : ऒम तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियोयोन : प्रचोदयात
अर्थ
---------------------------------------------------------------------
विश्वाची उत्पत्ती ज्याच्यापासून होते; त्याचे आम्ही ध्यान करतो.
तोच सच्चिदानंदरुप आहे. तो अज्ञानाचा नाश करतो.
तो आमच्या बुद्धीला प्रेरणा देतो. त्याच्या तेजाचे आम्ही ध्यान करतो.
आमची सत्कर्म -सद्विचार-सदाचार-सद्माषण
सद्वर्तनाकडे प्रवृत्त होवोत.
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेन्यं । भर्गो देवस्य धीमहि, धीयो यो न: प्रचोदयात्
ॐ - स्वर जो अध्यात्म से भरा है। देवों के देव।
भू - धरती या भूमी
र्भुवः - वातावरण
स्वः - वातावरण के अलावा, स्वर्ग
तत् - वो
सवितुर - सूर्य या तेजोमय
वरेण्यं - नमन करने लायक
भर्गो - महत्ता या शक्ति
देवस्य - भगवान
धीमहि - ध्यान करना
धियो - ज्ञान
यो - कौन, उनके सिवा
नः - हमारे या हमें
प्रचोदयात् - देने का आग्रह
गायत्री मंत्र व उसका अर्थ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
अर्थः उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
महापुरुषों द्वारा गायत्री महिमा का गान
"गायत्री मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्माओं की उन्नति के लिऐ उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त ह्रुदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है।"
-महात्मा गाँधी
"ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से ऐक अनुपम रत्न गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है।"
-महामना मदन मोहन मालवीय
"भारतवर्ष को जगाने वाला जो मंत्र है, वह इतना सरल है कि ऐक ही श्वाँस में उसका उच्चारण किया जा सकता है। वह मंत्र है गायत्री मंत्र।"
-रवींद्रनाथ टैगोर
"गायत्री मे ऍसी शक्ति सन्निहित है, जो महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है।"
-योगी अरविंद
"गायत्री का जप करने से बडी-बडी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है, पर इसकी शक्ति भारी है।"
-स्वामी रामकृष्ण परमहंस
"गायत्री सदबुद्धि का मंत्र है, इसलिऐ उसे मंत्रो का मुकुटमणि कहा गया है।"
-स्वामी विवेकानंद
No comments:
Post a Comment