![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_sDfIu-QTQllLWGMgSketaBZrfH_qu-TdGFVH-l1ILmTw836SWCF1ewTWr39mU1nom1SizhhMkPNQTo9qBNxe3e3NL1ECiPPolkXzPHT_BPGy4DglsqZ9sn8vFrYaZ_1_YN8lu_bP3M=s0-d) | | वित्त मंत्री प्रणब मुखजी ने स्वीकार किया है कि सरकार का वित्तीय घाटा पूवानुमान से बहुत अधिक होगा पहला कारण है कि इस वष सरकार को विनिवेश से पयाप्त रकम नहीं मिली है पिछले वष स्पेक्टम की बिक्री से करीब 100 हजार करोड़ रुपये मिले थे, जिससे घाटा कम हो गया था खच पिछले वष भी ब़ढे थे, पर ये दिखायी नहीं पड़े, चूंकि आय भी ब़ढ गयी थी परंतु स्पेक्टम की बिक्री जैसी आय कइ दशकों में एक बार होती है इस वष ऐसी आय न होने के कारण ब़ढे हुए खच दिखने लगे हैं इन्हें पोषित करने के लिए सरकार को ऋण लेने पड़े हैं और वित्तीय घाटा ब़ढ रहा है घाटा ब़ढने का दूसरा कारण सब्सिडी में वृद्धि है सरकार ने पेटोल के दाम वैश्विक दाम से जोड़ दिये हैं, परंतु डीजल पर सब्सिडी जारी है, जिससे यह भार ब़ढ रहा है खाद्यात्र सब्सिडी तथा रोजगार गारंटी कायक्रम पर भी खच ब़ढा है तीसरा कारण ब़ढता भ्रष्टाचार है सरकारी धन का उपयोग सड़क आदि बनाने में किया जाये तो दोहरा लाभ होता है श्रम एवं सीमेंट आदि की मांग पैदा होती है अच्छी सड़क से ढुलाइ खच कम होता है उसी राजस्व को स्विस बैंक में जमा करा दिया जाये तो देश की क्रयशक्ति कम होती है, मंदी आती है, जिससे बचने के लिए सरकारी खच ब़ढाया जाता है और वित्तीय घाटा ब़ढता है वित्तीय घाटे का सिद्धांत है कि किन्हीं कठिन परिस्थितियों में अथव्यवस्था को झटका लगे, तो उससे उबरने के लिए कुछ समय के लिए सरकारी खच ब़ढा दिया जाये वायरल फीवर से पी़िडत व्यक्ति को कुछ समय के लिए टॉनिक दे दिया जाये तो वह पुन: काम पर जाने को खड़ा हो जाता है इसी प्रकार मंदी से पी़िडत भारतीय अथव्यवस्था को कुछ समय के लिए वित्तीय घाटे का सहारा देने से अथव्यवस्था चल निकलेगी, ऐसी मान्यता है यह सोच सही है परंतु सोचिए कि वायरल फीवर से पी़िडत व्यक्ति को टॉनिक के नाम पर शिंकजी पिला दी जाये और कंपाउंडर द्वारा टॉनिक को बाजार में बेच दिया जाये तो क्या होगा? मरीज के परिवार को टॉनिक का पैसा देना होगा, पर लाभ मिलेगा केवल शिकंजी का जो च्यवनप्राश वह बाजार से खरीदकर रोगी को खिला सकता था, वह भी नहीं होगा और रोग ब़ढेगा तात्पय यह कि वित्तीय घाटे के तहत सरकारी खच की साथकता तभी है, जब इसे बिना रिसाव के लागू किया जाये कुछ वष पूव भारत के कम्प्टोलर एवं ऑडिटर जनरल वीके शुंगलू ने एक गोष्ठी में कहा था कि वित्तीय घाटे का कारण टैक्स वसूली में गड़बड़ी एवं सरकारी खर्चो की गिरती गुणवत्ता है शुंगलू ने बताया था कि सरकार के खर्चो में रिसाव के कारण सरकार की आय में वृद्धि नहीं हो रही है इसलिए सरकार को उत्तरोत्तर अधिक ऋण लेने पड़ रहे हैं और घाटा ब़ढ रहा है यदि सरकारी खर्चो में रिसाव न होता, तो निवेश की गयी रकम से अथव्यवस्था में उत्पादन ब़ढता, सरकार को टैक्स अधिक मिलता और ऋण की अदायगी हो जाती वित्तीय घाटे का ब़ढना प्रमाण है कि सरकारी खर्चो में भारी रिसाव हो रहा है सरकार ने भ्रम फैला रखा है कि वित्तीय घाटे के ब़ढने का कारण वैश्विक मंदी है यह स्पष्टीकरण मान्य नहीं है इतना सही है कि वैश्विक मंदी के कारण नियात दबाव में हंै परंतु नियात में कमी की भरपाइ रुपये के अवमूल्यन के कारण मिली अधिक रकम से हो गयी है मंदी का एक और कारण विदेशी पूंजी के आगमन में कमी बताया जा रहा है सही है कि वैश्विक मंदी के कारण विदेशी पूंजी का बहाव हमारी तरफ कम हुआ है परंतु इसका कारण भी सरकारी खर्चो की गिरती गुणवत्ता है यूरोप के संकट में आने से यूरोपीय देशों से पूंजी का पलायन हुआ है मुझे आशा थी कि यह पूंजी भारत की ओर मुड़ेगी अमेरिका की हालत अंदर से खराब ही है अत: विश्व के निवेशकों को सुरषिात स्थान की खोज थी, जो कि भारत उपलब्ध करा सकता था परंतु हमने यह सुअवसर गंवा दिया है सरकारी खर्चो की गुणवत्ता में गिरावट तथा भ्रष्टाचार के कारण वित्तीय घाटे के ब़ढने से निवेशकों का भारत पर भरोसा उठ गया है राह्लय सरकारों द्वारा शिषा एवं स्वास्थ्य पर खच को जोड़ लें तो सब्सिडी पर कुल खच करीब 7,000 करोड़ रुपये प्रतिवष होगा यह विशाल खच मुख्यत: अनुत्पादक है और सरकारी कमियों की खपत को पोस रहा है जन-कल्याण की पॉलिसी को खच के स्थान पर आय का माध्यम बनाया जा सकता है सरकार द्वारा एक्साइज ड्यूटी तथा इनकम टैक्स वसूला जा रहा है इस टैक्स का भार सभी उद्योगों पर बराबर पड़ता है होना यह चाहिए कि इस टैक्स को उन उद्योगों से अधिक वसूला जाये, जहां रोजगार का भषाण होता है हावेस्टर, एक्सकावेटर, बोतलबंद शीतल पेय, पावर लूम इत्यादि पर अधिक टैक्स लगाने से खेत मजदूर, रसवती और हथकरघा जैसे उद्योग स्वयं चल पड़ेंगे गरीबों को रोजगार मिलेगा और कल्याणकारी खर्चो की आवश्यकता कम होगी दूसरे श्रम-सघन उद्योगों पर टैक्स घटा देना चाहिए, जैसे अगरबत्ती, फूड प्रोसेसिंग इत्यादि इससे अथव्यवस्था पर टैक्स का कुल भार भी नहीं ब़ढेगा पर केंद्र सरकार ने टैक्स पॉलिसी को जन-कल्याण का अस्त्र बनाने के स्थान पर केवल आय ब़ढाने का साधन बनाया है इस आय का रिसाव हो रहा है लहरीरींषाषाùसारळश्र¶ािलेखक अथशास्त्री हैंडॉ भरत झुनझुनवाला |
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