नदियों को जोड़ने की जटिलताएं | ||||
2002 | ||||
05 | ||||
30 | ||||
(उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को देश में नदियों को जोड़ने संबंधी महत्वाकांषी परियोजना पर समयबद्ध तरीके से अमल करने का निदेश दिया है साथ ही इसकी योजना तैयार करने और इस पर अमल करने के लिए कोट ने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन भी किया है यह निदेश परियोजना में हो रही देरी और इसकी वजह से इसके अनुमानित खच में हो रही ब़ढोतरी को देखते हुए दिया गया क्या है नदियों को जोड़ने की परियोजना और क्या हैं इसकी राह में व्यावहारिक दिक्कतें ? इन्हीं पहलुओं की तहकीकात करता आज का नॉलेज) | ||||
कौन-कौन होंगे कोट द्वारा बनायी गयी समिति में समिति में सरकारी विभागों के अधिकारी, मंत्रालयों के प्रप्रतिनिधियों के अलावा विशेषज्ञ और सामाजिक कायकता शामिल हैं केंद्रीय जल संसाधन मंत्री, इस विभाग के सचिव, पयावरण मंत्रालय के सचिव और जल संसाधन मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, योजना आयोग और पयावरण एवं वन मंत्रालय की ओर से नियुक्त चार सदस्य भी शामिल हैं इसके अलावा राह्लय सरकारों के प्रप्रतिनिधि, दो सामाजिक कायकता और वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार भी इस समिति के सदस्य बनाये गये हैंनॉलेज डेस्क सुप्रीम कोट ने देशमें नदियों को जोड़ने संबंधी परियोजना पर अमल करने के लिए सरकार को निदेश दिया है इसकी योजना तैयार करने और इसे लागू करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन भी किया देशके शीष कोट का यह निदेश परियोजना में हो रही देरी और इसकी वजह से इस पर ब़ढ रहे खच के मद्देनजर आया है भारत में नदियों को आपस में जोड़ने की योजना एनडीए सरकार के कायकाल में शुरू की गयी थी साल 2002 के अक्तूबर महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस साल भीषण सूखे के बाद नदियों को आपस में जोड़ने की योजना को लागू करने संबंधी एक काय दल का गठन किया था आखिर क्या है परियोजना इस दल ने 2002 में ही एक रिपोट सौंपी इस रिपोट में देश भर की नदियों को जोड़ने के लिए परियोजना को दो भागों में विभाजित करने की सिफारिश की गयी पहले भाग में दषिाण भारतीय नदियां शामिल थीं, जिन्हें जोड़कर 16 क़िडयों का एक दषिाणी वाटर ग्रिड बनाया जाना था इसके तहत महानदी और गोदावरी नदियों के अतिरिक्त पानी को पेत्रार, कृष्णा, वैगाइ और कावेरी नदियों में पहुंचाया जाना था हिमालयी भाग के अंतगत गंगा और ब्रrापुत्र नदियों और उनकी सहायक नदियों के पानी को इकट्ठा करने की योजना बनायी गयी इसका मकसद था कि अतिरिक्त पानी को सिंचाइ और जल-विद्युत परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जायेगा यह योजना 1980 में विकसित हुए नेशनल पसपेक्टिव प्लान का सुधरा हुआ रूप है इसमें हिमालय की नदियों का विकास इस प्रकार किया जाना है, ताकि इसके पानी को एकत्र किया जा सके गंगा और ब्रrापुत्र की खास सहायक नदियों में सरोवर बनाकर पानी एकत्र करने की बात कही गयी अगर इस योजना को अमल में लाया गया, तो इसके तहत हिमालय की नदियों के विकास में भारत, नेपाल और भूटान में गंगा और ब्रrापुत्र की मुख्य सहायक नदियों में पानी संग्रह करने के जलाशय बनाये जायेंगे इसके साथ ही इसमें गंगा की पूवी सहायक नदियों का अतिरिक्त पानी स्थानान्तरित करने के लिए एक-दूसरे से जुड़ी नहर प्रणाली का प्रस्ताव किया गया है मुख्य रूप से इसमें ब्रrापुत्र और उसकी सहायक नदियों को गंगा के साथ जोड़ने और गंगा महानदी से जोड़ने का प्रस्ताव भी है दषिाण भारत की नदियों को जोड़ने की योजना के चार हिस्से हैं- -महानदी-गोदावरी-कृष्णा-कावेरी नदियां -मुंबइ और ताप्ती नदी के बीच की पश्चिम की तरफ बहने वाली नदियां -वेन-चंबल -पश्चिम की तरफ बहने वाली अन्य नदियों को पूव की तरफ मोड़ना इसके लिए पहले भी हो चुकी है पहल गौरतलब है कि सुप्रीम कोट ने उस समय भी 3 अक्तूबर 2002 को सरकार से कहा कि वह देश की नदियों को दस साल के भीतर जोड़ने के बारे में विचार करे वैसे, देश के उत्तर की नदियों को दषिाण की नदियों से जोड़ने का पहला प्रस्ताव 1970 में पेश किया गया था तब देश की नदियों को जोड़ने के बारे में सिंचाइ मंत्री केएल राव के गंगा-कावेरी नहर योजना की सबसे ह्लयादा चचा हुइ थी ढाइ हजार किलोमीटर से ह्लयादा लंबी इस प्रस्तावित नहर में गंगा के करीब 50 हजार क्यूसेक पानी को करीब सा़ढे पांच सौ मीटर ऊंचा उठाकर दषिाण भारत ले जाना था केंद्रीय जल आयोग ने इसे रद्द कर दिया था आयोग का मानना था कि एक तो यह आथिक रूप से अव्यवहारिक है, दूसरे इसमें बहुत बिजली खच होगी तीसरे इससे बा़ढ नियंत्रण के फायदे नहीं मिलेंगे और चौथे, जलाशयों की व्यवस्था न होने के कारण इससे सिंचाइ के फायदे भी नहीं मिलेंगे इसके बाद कैप्टेन दिनशा दस्तूर ने 1977 में गार्लेड नहर का प्रस्ताव पेश किया इसमें दो नहर प्रणालियों की बात कही गयी थी एक नहर प्रणाली हिमालय के दषिाण ढाल में 90 जलाशयों के साथ होना था दूसरी मध्य और दषिाणी नहर प्रणाली, जिसमें 200 जलाशय होने थे दो विशेष समितियों ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह तकनीकी आधार पर कमजोर है व्यावहारिक नहीं है यह परियोजना! देश की नदियों को जोड़ने का मामला इतना सरल नहीं है इसके सिफ आथिक पषा ही नहीं है, बल्कि उसके साथ सामाजिक, भौगोलिक, पयावरणीय और राजनीतिक मुद्दे भी जुड़े हैं नदियों को जोड़ने की दिशा में जो दिक्कतें आ सकती है, उन्हें किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता मसलन, नदियों को समुद्र में जाने से रोकने से पूरा हाइडोलॉजिकल चक्र बदलने की आशंका है बड़ी संख्या में बांध और नहरें बनाये जाने के कारण कृषि की पैदावार तो ब़ढेंगी नहीं, बल्कि प्राकृतिक डेनेज सिस्टम बदल जायेगी जिसमें बा़ढ और दलदलीकरण की समस्या पैदा हो जायेगी जिन नदियों की लिंक परियोजना की नहरें नेशनल पार्को और अभयारण्यों से होकर जायेंगी, उनके लिए पयावरण और वन मंत्रालय से मंजूरी लेने की जरूरत होगी परियोजना में कइ अंतरराष्टीय समस्याएं भी आयेंगी गंगा नदी के पानी के बंटवारे के बारे में दिसंबर 1996 की भारत-बंग्लादेश संधि के मुताबिक, भारत ने यह वादा किया कि फरक्का बैराज में जो बहाव है उसे वह बनाये रखेगा अब अगर नदियों को परस्पर जोड़ने की योजना अमल में आ जाती है और गंगा का पानी दषिाण की नदियों की ओर मोड़ा गया तो इस संधि की शर्तो को कैसे पूरा किया जा सकेगा राह्लयों के बीच जल-विवाद भी है एक बाधा हम देश की विभित्र नदियों को जोड़ने की योजना तो बना रहे हैं, लेकिन उससे पहले दो पड़ोसी राह्लयों के बीच जल-विवाद का क्या होगा? एक तरफ, नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी प्रायद्वीपीय नदियों को जोड़ने की संभावनाओं का अध्ययन कर रही है, लेकिन ओ़िडशा यह मानने को तैयार नहीं है कि महानदी में पानी और आंध्रप्रदेश भी यह मानने को तैयार नहीं है कि गोदावरी में अधिशेष पानी है एक ओर तो हम कहते हैं कि बेसिन को हाइडोलॉजिकल इकाइ मानकर उसके आधार पर नियोजन होना चाहिए और दूसरी ओर, बेसिन की सीमाओं के पार जाकर नदियों को जोड़ना चाहिए इनके बीच प्राकृतिक अवरोधों के पार पानी को ले जाने के लिए पानी को उठाने में काफी बिजली खच होगी इसके अलावा, यदि सुरंगांे के जरिये या पहाड़ों से होकर लंबे रास्ते से नहर बनाकर पानी ले जाया जायेगा, तो उसमें आथिक लागत काफी अधिक हो जायेगा और कइ तरह की मुश्किलें आ सकती हैं इस परियोजना में बड़े बांध, जलाशय और नहरें बनानी होंगी, जिसमें बहुत निवेश लगेगा और उसका पयावरण पर बहुत असर होगा इससे विस्थापन और पुनवास की समस्याएं भी पैदा होंगी2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसके लिए विशेष कायदल गठित किया था05 लाख करोड़ रुपये की यह पूरी परियोजना है और इसे 2016 तक पूरा किया जाना था30 नदियों को आपस में जोड़ने की योजना इस परियोजना के अंतगत प्रस्तावित हैंl
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