Friday, February 24, 2012

इरान संकट से ब़ढती वैश्विक चुनौती



इरान के परमाणु कायक्रम को लेकर अमेरिका के साथ इरान की शुरू से तकरार रही है हाल की कइ घटनाओं ने इस आग में घी डालने जैसा काम किया है इरान जहां अपने परमाणु कायक्रम को देश के विकास के लिए जरूरी बता रहा है, वहीं अमेरिका सहित कइ पश्चिमी देश उस पर परमाणु अप्रसार संधि को भंग करने का आरोप लगा रहे हैं इससे हालात युद्ध के बन गये हैं हालांकि भारत और चीन इरान पर अमेरिकी नीति से सहमत नहीं हैं इरान संकट के बहाने अंतरराष्ट­ीय सोच के विभित्र पहलुओं की पड़ताल करता आज का नॉलेजl

अमेरिका की चेतावनी और धमकी को धता बताकर इरान अपने परमाणु कायक्रम की तरफ लगातार आगे ब़ढ रहा है इस बीच खार खाये अमेरिका ने भी इरान पर अपनी आंखें तरेर ली हैं अमेरिका ने अपनी युद्धक पोतों को हरमुज स्ट­ेट के पार जाने का आदेश दे दिया इस तरह, परमाणु कायक्रम को लेकर दोनों देशों के बीच टकराव काफी आगे ब़ढ चुका है इससे पहले इरान द्वारा तेल की सप्लाइ रोक देने की भी खबर आयी थी इरान के राष्ट­पति अहमदीनेजाद ने अमेरिकी धमकी को बेवजह बताते हुए कहा कि उसमें कोइ दम नहीं है उन्होंने साफ कहा कि जरूरत पड़ी तो इरान अमेरिका को सबक भी सिखा देगा और परमाणु उपलब्धि पा लेने का मतलब यह नहीं है कि हम परमाणु बम बना रहे हैं इन सब घटनाओं के बाद कुछ वक्त के लिए तनाव शांत-सा हो गया था लेकिन, अचानक दिल्ली ऑर जॉजिया में इजरायली दूतावास के अधिकारी को निशाने बनाये जाने की घटना से मामले ने अलग रंग पकड़ लिया अभी तक जहां अमेरिका इरान को परमाणु कायक्रम को लेकर चेताता आ रहा था, वहीं इजरायल ने भी आक्रामक रुख अपना लिया और हालात इतने गंभीर हो गये कि इरान पर हमले तक की चचा होने लगी सीधे शब्दों में कहें तो इरान और अमेरिका के बीच अब सीधी मुठभेड़ का माहौल बनता जा रहा है इरान को अलग-थलग करने के लिए अमेरिका और उसके सहयोगी तरह-तरह के आथिक प्रतिबंध लगा रहे हैं यहां तक कि भारत और चीन जैसे देशों, जिनसे इरान के बेहतर संबंध हैं, उन पर अमेरिका दबाव बना रहा है कि वे इरान से संबंध तोड़ें लेकिन, इसके बावजूद इरान अमेरिका को करारा जवाब दे रहा है यहां तक कि अमेरिका को आंखें भी दिखा रहा है दरअसल, इस समय दुनिया की अथव्यवस्था तेल पर निभर है सारी दुनिया का लगभग 30 प्रतिशत तेल खाड़ी से होकर बाहर जाता है जिसे फारस की खाड़ी कहा जाता है वास्तव में खाड़ी का मुहाना यानी होरमुज इरान का ही हिस्सा है इरान चाहे तो होरमुज से निकलने वाले रास्ते को पूरी तरह से बंद कर सकता है ऐसा करने पर सिफ उसका तेल ही नहीं, बल्कि अन्य अरब देशों का तेल भी बाहर नहीं जा पायेगा ऐसी स्थिति में अमेरिका और रूस जैसे देशों पर तो कोइ खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन चीन, भारत, जापान और यूरोपीय राष्ट­ों की अथ-व्यवस्थाएं लगभग अपंग हो जायेंगी दूसरे शब्दों में अमेरिकी धमकी ने दुनिया के देशों का जितना दम फुलाया है, उससे कहीं ह्लयादा इरान की धमकी ने फुला दिया है

क्या है दोनों देशों की समस्याएं?


इरान की शिकायत है कि अमेरिका फिजूल ही उसके पीछे हाथ धोकर पड़ा हुआ है तीन दशक से ह्लयादा समय हो गया, लेकिन अमेरिका अभी तक आयतुल्लाह खुमैनी की इसलामी क्रांति को पचा नहीं पाया खुमैनी का यह कहना आज भी सच है कि पूंजीवादी अमेरिका शैतान-ए-बुजुग है इरानी नेताओं के मुताबिक इस बड़े शैतान को यह बदाश्त नहीं कि पश्चिम एशिया में इरान स्वतंत्र देश की तरह रहे उसे यही शिकायत सद्दाम हुसैन से थी इरान का कहना है कि उसके स्वाभिमान को ध्वस्त करने के लिए अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षो से नया बहाना खोज निकाला है वह यह है कि इरान परमाणु हथियार बना रहा है वह परमाणु-अप्रसार संधि भंग कर रहा है वह अंतरराष्ट­ीय कानून तोड़ रहा है वह अंतरराष्ट­ीय अपराधी है रासायनिक हथियार रखने के जैसे आरोप अमेरिका ने सद्दाम पर लगाये थे, वैसे ही आरोप अब इरान पर लगाये जा रहे हैं

हालांकि, ये आरोप एक दम निराधार हो, ऐसा भी नहीं है वियना की अंतरराष्ट­ीय परमाणु ऊजा एजेंसी को शक है कि इरान परमाणु बम बनाने की तैयारी कर रहा है और बहुत ही गुपचुप तरीके से इसे अंजाम दिया जा रहा है इरान पर प्रतिबंध लगाने के कइ प्रस्ताव भी वहां पारित हो चुके हैं इरान ने परमाणु-इधन के संवधन की बात तो खुद ही स्वीकार की है सारी दुनिया यह मानती है कि इरान और इजरायल में दुश्मनी है यदि इजरायल के पास परमाणु बम है, तो इरान भी क्यों नहीं बनायेगा? ये बात दूसरी है कि इजरायल ने भारत और पाकिस्तान की तरह परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत नहीं किये थे, जबकि इरान ने किये थे


इरान मुद्दे पर बनता नया शक्ति संतुलन


इरान द्वारा परमाणु ताकत की नुमाइश से पहले ही इरान के पषा और विपषा में दुनिया भर में खेमेबाजी शुरू हो गयी है अमेरिका और उसके साथी देश इरान के खिलाफ है, जबकि चीन, रूस, उत्तर कोरिया और ब्राजील उसके साथहैं इरान के खिलाफ खड़े देशों में अमेरिका, इजरायल, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, स्पेन, तुकीत्र्, पुतगाल, नीदरलैंड, ऑस्ट­ेलिया और कनाडा हैं इन सबसे अलग भारत, जापान, दषिाण कोरिया और पाकिस्तान इस मामले में किसी भी गुट के साथ नहीं है

हालांकि, जापान ने इरानी बैंकों से लेन-देन, ऊजा षोत्र में निवेश किया हुआ है, जबकि दषिाण कोरिया ने कुछ इरानी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाये हैं इरान के खिलाफ खड़े देशों की बात करें तो वे अपनी अथव्यवस्था, सुरषा और व्यापारिक जरूरतों के मद्देनजर अमेरिकी गंठबंधन के साथ हैं पषा में खड़े देश यानी चीन और रूस निजी तौर पर अमेरिका से दुश्मनी के कारण इरान का साथ दे रहे हैं जबकि भारत, जापान जैसे विकासशील देश अपनी निभरता की वजह से इरान से दुश्मनी नहीं लेना चाहते इस तरह देखें तो इरान और अमेरिका के बीच काफी अरसे से चला आ रहा तनाव दिन-ब-दिन ब़ढता ही जा रही है हालिया घटनाक्रम चाहे वह तेहरान के खिलाफ आथिक प्रतिबंध हो या खाड़ी से अमेरिका सैन्य पोतों को हटाने की इरान की चेतावनी, इरानी परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या इन सभी आग में घी डालने का ही काम किया है परमाणु वैज्ञानिक मोस्तफा अहमदी रोशन की हत्या का आरोप इरान ने इजरायल और अमेरिका पर लगाया है उसका कहना है कि ये दोनों देश उसके परमाणु कायक्रम को किसी भी कीमत पर खत्म करना चाहते हैं, जबकि उसका यह कायक्रम बिजली बनाने के लिए है जब-जब इरान पर बैन लगते हैं तनाव और ब़ढता जाता है


क्या है भारत, चीन और रूस की भूमिका?


इरान संकट के मसले पर भारत बेहद ही दुविधा और पसोपेशकी स्थिति में है लेकिन, एक बात साफ है यदि अपने हालिया बयान के मद्देनजर इरान तेल उत्पादन और नियात पर रोक लगाता है, तो भारत भी उसके प्रभाव से नहीं बच पायेगा अमेरिका के लिए इरान ही नहीं रूस और चीन भी बड़ी समस्या बना हुआ है इसकी वजह है कि चीन और रूस इस मसले पर इरान का साथ दे रहे हैं वहीं, अमेरिका सैन्य शक्ति दिखाने के साथ-साथ अपनी कूटनीति के जरिये भी इरान पर दबाव डालने की कोशिश कर रहा है इस संबंध में अब अमेरिका और इजरायल भारत पर इरान से संबंध तोड़ने को लेकर दबाव बनाने में जुटे हैं उसका कहना है कि वह भारत, पाकिस्तान, चीन और रूस के साथ बातचीत कर रहा है, ताकि वे इरान के तेल से परहेज करें और अंतरराष्ट­ीय, राष्ट­ीय प्रतिबंधों का महत्व समझें, जिससे इन्हें और प्रभावी बनाया जा सके

गौरतलब है कि भारत अपना लगभग 80 प्रतिशत तेल विदेशों से आयात करता है और इसमें से लगभग 12 प्रतिशत वह इरान से लेता है उधर इरान से नियात होने वाले तेल में सबसे अधिक तेल भारत को ही जाता है इस लिहाज से इरान मामले पर भारत की भूमिका आथिक तौर पर भी काफी महत्वपूण हो जाती है दूसरी तरफ, चीन और भारत के बीच हाल के दिनों में जो तनाव देखने को मिला है उसके मद्देनजर भी भारत यह कतइ नहीं चाहेगा कि वह इरान के खिलाफ खड़ा होकर चीन को राजनीतिक तौर पर इरान से लाभ लेने दे चीन की बात करें, तो अमेरिका और चीन तो अकसर एक-दूसरे की लगभग हर मामले पर आलोचना करते रहते हैं ऐसे में चीन का इरान को छोड़ अमेरिका का साथ देना इतना आसान नहीं लगता, क्योंकि जिस तरह वह उत्तर कोरिया के मुद्दे पर अमेरिका के विरुद्ध नजर आता है, मुमकिन है वही रुख इरान मसले पर भी चीन का हो कुल मिलाकर देखा जाये, तो पिछले हफ्ते इरान से संबंधित जो खबरें सुखियों में थीं, उससे ऐसा लगने लगा था कि इजरायल से उसके अघोषित युद्ध का चक्का रफ्तार पकड़ रहा है कुछ देशों में इजराइली राजनयिकों पर हमलों की कोशिश हुइ और उसके बाद यह दावा किया गया कि इसमें इरान का हाथ नजर आता है ऐसी ही पृष्ठभूमि में इरान ने यह ऐलान भी कर दिया कि उसने यूरेनियम संवधन पर महत्वपूण उपलब्धि हासिल कर ली है इस तरह यह दिखाया कि वह सारी दुनिया की चिंताओं को ताक पर रखता है उधर, रूस ने चेतावनी दी कि फारस की खाड़ी में, जहां अमेरिका और उसके सहयोगियों की फौजें जमा हो रही हैं, स्थिति विस्फोटजनक होती जा रही है, इसलिए उसने पश्चिमी देशों से तेहरान से शांतिपूण समझौते की अपील की है जानकारों की मानें तो अमेरिका और इजरायल अमेरिका राष्ट­पति चुनाव से पहले इरान पर हमला नहीं करेंगे, क्योंकि इससे ओबामा को चुनावों में नुकसान होने का खतरा है यानी दोनों मुल्कों के बीच तनाव ब़ढते रहेंगे, इरान पर प्रतिबंध और कठोर होता जायेगा, लेकिन खुली सैनिक कारवाइ की आशंका फिलहाल नहीं हैl

दुनिया को इरान की जरूरत क्यों?

किसी भी देश की आथिक तरक्की उस देशमें उद्योग धंधों पर काफी हद तक निभर होती है इन उद्योग धंधों और यातायात के संसाधनों के लिए ऊजा या बिजली की जरूरत पड़ती है आज भी विश्व के अधिकांश देश पेट­ोलियम पदार्थो और प्राकृतिक गैसों पर निभर हैं इरान दुनिया का चौथा और प्राकृतिक गैस भंडार के मामले में दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है जहां तक इन पदार्थो के नियात की बात है, तो इरान इस मामले में सऊदी अरब और रूस के बाद तीसरे नंबर पर आता है यानी पेट­ोलियम पदार्थो, जिससे किसी देश की अथव्यवस्था जुड़ी होती है, को हासिल करने के लिए इरान अन्य देशों के लिए काफी महत्वपूण है गौरतलब है कि साल 2010 में वैश्विक तेल उत्पादन में इरान के हिस्से का योगदान 52 फीसदी था इरान से ही कइ देश कच्चे तेल और प्राकृतिक गैसों का आयात करते हैं यदि इरान इन पदार्थो का नियात रोक दे तो उन देशों की आथिक स्थिति डंवाडोल हो सकती है यही वजह है कि इरान दुनिया के अन्य देशों के लिए काफी अहम है और उन्हें इसकी जरूरत हैl

इरान के लिए अन्य देशों की जरूरत?

तेल इरान की अथव्यवस्था में महत्वपूण भूमिका निप्रभाता है पिछले दशकों में इरानी अथव्यवस्था में लगभग 72 फीसदी राजस्व की प्राप्ति तेल के नियात से ही हासिल हुइ हालांकि, पिछले कुछ वर्षो में इस षोत्र में कमी आयी है और अब इरान के सकल घरेलू उत्पाद का 40 फीसदी तेल पर निभर है इन सभी के बावजूद तेल और गैस से अब भी उसे 65 फीसदी राजस्व हासिल होता है इसका मतलब यह हुआ कि इरान के विकास की अधिकांश सरकारी योजनाएं तेल के पैसे से ही संचालित होती है यहां तक को हालात इरान के लिए सही है, लेकिन यहां खाद्य पदार्थो का उत्पादन उतना नहीं होता जिससे पूरे इरान के लोगों को भोजन मिल सके यानी खाद्य पदार्थो के आयात के लिए इरान को दुनिया के अन्य देशों पर निभर रहना पड़ता है इरान सालाना तौर पर 35 करोड़ टन मक्के का आयात करता है खाद्य पदार्थो के बाद यहां जिस अधिक चीज का आयात होता है वह है इस्पात जैसे कच्चे पदार्थो का देश में इस्पात संयंत्रों को लगाने के लिए उसे इस्पात की जरूरत है और इसके लिए भी वह अन्य देशों पर निभर हैl

भारत के लिए क्यों है महत्वपूण?

नये आथिक युग में कोइ भी देश आत्मनिभर रहने का दावा नहीं कर सकता है उसे अन्य देशों की जरूरत पड़ती ही है भारत और इरान के व्यापारिक रिश्तों के संदभ में ही बात करें, तो इरान के साथ हमारा व्यापार लगभग 1367 अरब डॉलर का इसमें भी भारत 1092 अरब डॉलर का आयात करता है, जबकि 247 अरब डॉलर का नियात इसमें कोइ शक नहीं कि आयात का अधिकांश हिस्सा तेल ही होता है साल 2015 तक कुल व्यापार 30 अरब डॉलर तक होने का अनुमान है हर साल भारत लगभग 12 अरब डॉलर का तेल आयात करता है और इरान भारत के लिए कच्चे तेलों का सबसे सस्ता नियातक देश भी है दूसरी तरफ, इरान अपनी जरूरत का लगभग 70 फीसदी चावल भारत से आयात करता है पिछली बार भारत ने 22 मिलियन टन चावल का नियात किया भारत की इस नियात का आधा आयात इरान ने किया इतना ही नहीं, इरान की भौगोलिक स्थिति हाइड­ोकाबन के स्नेत के लिहाज से भारत के लिए बेहद अहम है और वह अपनी जरूरत का दो तिहाइ उससे आयात भी करता है


No comments:

Post a Comment


Popular Posts

Total Pageviews

Categories

Blog Archive