डॉक्टर और अस्पताल doctor and Hospital से साबका
सबको पड़ता है, लेकिन कौन-से डिपार्टमेंट में किस बीमारी का इलाज होगा,
इससे बहुत सारे लोग अनजान होते हैं। ऐसे में कई बार लोग गंभीर परेशानी में
भी पड़ जाते हैं। इससे वक्त, पैसा और सेहत, तीनों की बर्बादी हो सकती है। डॉक्टर्स डे
के मौके पर हम आपको बता रहे हैं कि अस्पताल के कौन-से डिपार्टमेंट में किस
बीमारी का इलाज होता है, असली डॉक्टर की पहचान क्या है और डॉक्टर की
लापरवाही पर कहां करें शिकायत। पूरी जानकारी नीतू सिंह से :
बात 2003 की है। अध्यापक नगर, नांगलोई के रहने वाले विनोद कुमार की नाक की एक साइड में सूजन आ गई थी। उन्होंने सोचा कि दो-चार दिन में अपने आप ठीक हो जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। नाक से खून आने लगा, तो वह केशवपुरम स्थित दिल्ली जल बोर्ड की डिस्पेंसरी में गए। विनोद दिल्ली जल बोर्ड में काम करते हैं। डिस्पेंसरी में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर ने जांच के बाद विनोद को एम्स रेफर कर दिया। विनोद अगले दिन एम्स की ओपीडी में पहुंचे। विनोद बताते हैं कि डॉक्टर ने देखने के बाद उन्हें फौरन भर्ती कर लिया और बताया कि नाक की सर्जरी करनी होगी। विनोद का आरोप है कि डॉक्टरों ने नाक के बदले गलती से सिर और मुंह का ऑपरेशन कर दिया, जिसके कुछ दिन बाद ही एक आंख भी खराब हो गई। जब डॉक्टर से पूछा कि ऐसा कैसा हो गया तो वह गलती मानने की बजाय विनोद को ही डांटने लगे।
कुछ दिन बाद विनोद को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। विनोद के मुताबिक, इसके बाद उनका आधा चेहरा खराब हो गया। एक आंख और नाक का एक तरफ का हिस्सा खत्म हो गया है। लेकिन उसके बाद जब भी विनोद एम्स में गए, उन्हें कह दिया गया कि अब घर जाओ, कुछ नहीं हो सकता या यह कहकर बाहर भगा दिया गया कि जाकर सफदरजंग में इलाज कराओ, यहां जगह नहीं है। सफदरजंग अस्पताल में जाकर उन्होंने इलाज कराने की कोशिश की तो एक महीने तक वह एक डिपार्टमेंट से दूसरे डिपार्टमेंट में भटकते रहे। इतने बड़े अस्पताल में उनकी समस्या का इलाज कहां होगा, इस बात की जानकारी उन्हें कहीं से नहीं मिल पा रही थी। थककर वह वापस एम्स में गए, जहां दोबारा उन्होंने अपनी इलाज की प्रक्रिया शुरू कराई।
सबसे पहले वह जनरल मेडिसिन डिपार्टमेंट में गए। वहां से ईएनटी डिपार्टमेंट में रेफर किया गया। ईएनटी के डॉक्टर से मिलने का मौका मिलने में ही 15 दिन का समय लग गया। यहां से उन्हें आई सेंटर में रेफर किया गया। वहां जाकर पता लगा कि उनकी आंख तो बिल्कुल खराब हो चुकी है, पर बिगड़े हुए चेहरे को थोड़ा बेहतर बनाया जा सकता है। इसके लिए उन्हें दोबारा सफदरजंग अस्पताल के बर्न व प्लास्टिक सर्जरी विभाग में जाने की सलाह दी गई। इस तरह की समस्याओं से अकेले विनोद ही नहीं, दूर-दराज से आने वाले ज्यादातर मरीज दो-चार होते रहते हैं। वे यह समझ नहीं पाते कि अस्पताल के इतने सारे डिपार्टमेंट्स में से उनकी समस्या के लिए कौन-सा है या कौन-से डिपार्टमेंट में किस बीमारी का इलाज होता है। आज के इस लेख के जरिए हम आपकी इस मुश्किल को आसान करने की कोशिश कर रहे हैं।
एनेस्थीसिया
इस डिपार्टमेंट के डॉक्टर का काम ऑपरेशन थिएटर में होता है। ये मरीज को सुन्न करने की दवाएं देते हैं। ऐसे में यहां आपको सीधे जाने की जरूरत नहीं होती।
कार्डियोलजी
यहां दिल से जुड़ी तमाम बीमारियों का इलाज होता है।
डर्मेटॉलजी
यहां स्किन से जुड़ी हर तरह की बीमारियों का इलाज किया जाता है। आप गर्मियों में होने वाली घमौरियां और सर्दियों में सिर में होने वाली खुस्की जैसी छोटी समस्याओं के लिए भी यहां जा सकते हैं
डायटेटिक्स
यहां आपके शरीर की जरूरत के हिसाब से आपके खान-पान का चार्ट तैयार किया जाता है। इसके एक्सपर्ट आपकी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर सलाह देते हैं।
डेंटल केयर
दांतों की साफ-सफाई से लेकर नकली दांत लगाने तक के सारे काम यहां होते हैं।
एंडोक्रिनॉलजी, मेटाबॉलिज्म ऐंड डायबीटीज
ये जनरल मेडिसिन के सुपर स्पेशलाइज्ड डिपार्टमेंट होते हैं, जहां डायबीटीज, मेटाबॉलिक सिस्टम में आने वाली खराबी और एंडोक्राइन ग्रंथि से संबंधित बीमारियों का इलाज होता है।
ईएनटी
यहां नाक, कान और गले से संबंधित समस्याओं का इलाज होता है।
आई केयर
आंखों की देखभाल, जांच, इलाज और ऑपरेशन यहां किया जाता है। आंख से संबंधित इस ब्रांच को ऑपथेमॉलजी भी कहा जाता है।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल
यहां पेट से संबंधित समस्याओं का इलाज किया जाता है।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी
इसके एक्सपर्ट पेट की बीमारियों से संबंधित सर्जरी करते हैं।
हेमैटॉलजी
यहां ब्लड से संबंधित समस्याओं की जांच और इलाज होता है।
इंटरनल मेडिसिन
कोई भी समस्या होने पर आमतौर पर मरीज को सीधे इसी डिपार्टमेंट में जाना होता है। अगर समस्या ज्यादा होती है तो एक्सपर्ट संबंधित डिपार्टमेंट में रेफर कर देते हैं।
नेफ्रॉलजी
किडनी से संबंधित बीमारियों का इलाज किया जाता है।
न्यूरो साइंसेज सेंटर
यहां न्यूरो यानी तंत्रिका तंत्र से संबंधित बीमारियों का इलाज होता है। दिमाग से संबंधित समस्याओं के लिए यहां जाते हैं।
ऑब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनी
यहां स्त्री रोगों का इलाज और सर्जरी की जाती है।
ऑन्कॉलजी
यहां विभिन्न तरह के कैंसर का इलाज होता है। इसे कैंसर सेंटर भी कहते हैं।
ऑर्थोपैडिक्स
यहां हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का इलाज और सर्जरी की जाती है।
पीडियाट्रिक्स
इसके एक्सपर्ट बाल रोग विशेषज्ञ होते हैं। 14 साल तक के बच्चों को कोई समस्या होने पर यहां ले जाया जाता है।
सायकायट्री
यहां विभिन्न तरह की मानसिक समस्याओं का इलाज किया जाता है।
मिनिमल एक्सेस सर्जरी
इसके एक्सपर्ट कोई भी सर्जरी परंपरागत तरीके से चीरफाड़ के बजाय नई तकनीक से एक छोटे से छेद के जरिए कैमरे की मदद से करते हैं।
बेरियाट्रिक ऐंड मेटाबॉलिक सर्जरी
यहां मोटापा कम करने की सर्जरी की जाती है।
एस्थेटिक ऐंड री-कंस्ट्रक्टिव सर्जरी
यहां खूबसूरती बढ़ाने के लिए सर्जरी होती है। मसलन नाक-होंठ आदि की शेप ठीक कराना, ब्रेस्ट इंप्लांट जैसी सर्जरी। आजकल इस फील्ड की काफी डिमांड है।
करें असली डॉक्टर की पहचान
आजकल हर फील्ड में नकली बाजार आबाद है। लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने वालों की कोई कमी नहीं है। मेडिकल फील्ड भी इससे अछूता नहीं है। नकली कॉलेज खोलकर फीस के लाखों रुपए बटोरने, कुछ हजार रुपयों में नकली डिग्रियां बेचने से लेकर नकली डॉक्टरी करने जैसे मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। इस तरह के फर्जीवाड़े से बचने के लिए आप डिग्री का फंडा भी समझें।
आयुर्वेदिक
अंडर ग्रैजुएट कोर्स
बीएएमएस, बीआईएमएस और बीयूएमएस
योग्यता : 10+2 साइंस से
कोर्स अवधि: साढ़े चार साल का कोर्स और छह महीने से एक साल तक इंटर्नशिप
कहां से करें: दिल्ली में तिब्बिया कॉलेज के अलावा भी देशभर में बहुत-से सरकारी और प्राइवेट कॉलेज खुल गए हैं, मगर इनमें कई नकली भी हैं। इन कोर्सों में दाखिला लेने से पहले सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन और दिल्ली का इंस्टिट्यूट है तो दिल्ली भारती चिकित्सा परिषद से छानबीन जरूर करें, क्योंकि कॉलेजों के लिए यहां से रजिस्ट्रेशन जरूरी है। वेबसाइट है: www.dbcp.co.in
ऐलोपैथी
अंडर ग्रैजुएट कोर्स
एमबीबीएस (बैचलर ऑफ मेडिसिन बैचलर ऑफ सर्जरी)
योग्यता : 10+2 साइंस (बायलॉजी) से
कोर्स अवधि : साढ़े चार साल
पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स
मेडिसिन में : एमडी इंटरनल मेडिसिन,
एमडी गाइनी, एमडी स्किन, एमडी चेस्ट, एमडी पीडियाट्रिक, एमडी रेडियो डाइग्नोसिस, एमडी ऑर्थोपेडिडिक आदि
सर्जरी में: एमएस जनरल सर्जरी, एमएस प्लास्टिक सर्जरी, एमएस काडिर्एक सर्जरी, एमएस पीडियाट्रिक सर्जरी आदि
योग्यता: एमबीबीएस
कोर्स अवधि : तीन साल
पीजी लेवल के डिप्लोमा कोर्स
डिप्लोमा इन चाइल्ड हेल्थ (डीसीएच), डिप्लोमा इन पैथेलॉजी (डीसीपी), डिप्लोमा इन चेस्ट डिजीज (डीपीसीपी), डिप्लोमा इन रेडियॉलजी (डीएमआरडी) और डिप्लोमा इन स्किन एंड वेनरल डिजीज (डीएसवीडी) आदि
योग्यता: एमबीबीएस
कोर्स अवधि: दो साल
नोट: नैशनल बोर्ड द्वारा रिकग्नाइज्ड डीएनबी कोर्स भी एमडी और एमएस के बराबर होता है, लेकिन यह कोर्स सिर्फ प्राइवेट इंस्टिट्यूट् करवाते हैं।
पोस्ट पीजी (सुपर स्पेशियलिटी) कोर्स
मेडिसिन में: डीएम इन कार्डियॉलजी, डीएम इन गैस्ट्रोइंटेरॉलजी, डीएम इन गाइनिकॉलजी आदि
योग्यता: इंटरनल मेडिसिन में एमडी
सर्जरी में: एमसीएच इन कार्डियो सर्जरी, एमसीएच इन जनरल सर्जरी आदि
योग्यता: एमएस
कोर्स अवधि : तीन साल
होम्योपैथी
अंडर ग्रैजुएट कोर्स
बीएचएमएस
कोर्स अवधि : साढ़े चार साल और छह महीने से एक साल तक इंटर्नशिप
कहां से करें : दिल्ली में दो कॉलेज हैं - नेहरु होम्योपैथी और बीआर सूर होम्योपैथी कॉलेज
नोट: अब होम्योपैथी में भी पीजी कोर्स शुरू हो गया है, मगर पीजी-इन-होम्योपैथी लिखना जरूरी होता है और ये कॉलेज या कोर्स होम्योपैथी बोर्ड से रजिस्टर्ड होते हैं। जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, वे नकली हैं।
डेंटल सर्जरी के कोर्स
बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी)
पीजी कोर्स :एमडीएस (मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी) ये कोर्स कराने वाले कॉलेजों का डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया से रजिस्टर्ड होना जरूरी है।
वेबसाइट है: www.dciindia.org
ये डिग्रियां हैं नकली
एमडीएमए: मेंबर ऑफ दिल्ली मेडिकल असोसिएशन
एमडीएमसी: मेंबर दिल्ली मेडिकल काउंसिल
एमआरएसएच: मेंबरशिप ऑफ रॉयल कॉलेज ऑफ लंदन की फेलोशिप
आरएमपी: रूरल मेडिकल प्रैक्टिसनर। लोग इसे अक्सर रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिसनर समझ लेते हैं
पीएमपी: प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनर
बंगाली या मद्रासी डॉक्टर
एमआईएमएस: इलेक्ट्रो होम्योपैथी
नोट: रूस, चीन, नेपाल और मॉरिशस से एमबीबीएस करके आने वाले अगर एमसीआई का एग्जाम पास किए बगैर प्रैक्टिस कर रहे हैं तो यह गलत है।
डॉक्टर-मरीज संबंधी दो अहम फैसले
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंडियन
मेडिकल असोसिएशन बनाम वी. पी. शांता मामले में 1995 में दिए गए फैसले के मुताबिक डॉक्टरों पर दो कारणों से मुकदमा चलाया जा सकता है। एक तो लापरवाही बरतने के लिए उन पर आपराधिक मामला बनता है और दूसरा उपभोक्ता फोरम में उनसे मुआवजे की मांग भी की जा सकती है, जबकि इससे पहले डॉक्टरों को सिर्फ असावधानी बरतने के लिए दोषी पाए जाने पर सजा सुनाई जा सकती थी।
5 अगस्त 2005 को डॉ. जैकब मैथ्यू मामले में
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के मुताबिक किसी आम आदमी को डॉक्टर की लापरवाही के खिलाफ सीधे केस करने का अधिकार नहीं है। मामला तभी दर्ज किया जा सकता है, जब किसी सक्षम डॉक्टर (सरकारी क्षेत्र से हो तो बेहतर है) ने इस मामले में अपनी राय दी हो। इस मामले में बचाव पक्ष के वकील की एक दलील यह भी थी कि अगर डॉक्टर पर यह तलवार लटकती रही कि उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है तो वह इलाज करने से घबराने लगेगा।
मरीज कहां कर सकते हैं शिकायत
दिल्ली मेडिकल काउंसिल
अगर किसी कोई अपने या अपने रिश्तेदार के इलाज से संतुष्ट नहीं है या इलाज से कोई मृत्यु या कोई और नुकसान हो गया है तो दिल्ली मेडिकल काउंसिल में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। यहां सारे संबंधित कागजात और शिकायत-पत्र पोस्ट कर सकते हैं या यहां जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। काउंसिल का पता है :
दिल्ली मेडिकल काउंसिल, थर्ड फ्लोर,
पैथलॉजी ब्लॉक, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-2
कंस्यूमर फोरम
मरीज या उसके रिश्तेदार चाहें तो पुलिस या सीधे कंस्यूमर फोरम में भी मामला दर्ज करा सकते हैं। पुलिस को अगर मेडिकल नेग्लिजेंस यानी लापरवाही का मामला लगता है तो वह मामले को दिल्ली मेडिकल काउंसिल के पास भेज देती है। कंस्यूमर फोरम भी इसके लिए या तो डीएमसी से संपर्क करता है या किसी भी सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों की टीम को जांच की जिम्मेदारी सौंपता है।
क्या है प्रोसेस
डीएमसी शिकायती के सारे डॉक्युमेंट्स की जांच करती है और जरूरत पड़ने पर शिकायती और डॉक्टर को बुलाकर सारे पहलुओं को जानने की कोशिश करती है। इसके बाद मामले को काउंसिल की इग्जेक्युटिव कमिटी के सामने रखा जाता है। कमिटी के सारे सदस्य मिलकर इस पर चर्चा करते हैं और अपनी राय देते हैं। अगर मामला बहुत गंभीर होता है और एक बार में कोई फैसला नहीं हो पाता तो दोबारा मीटिंग की जाती है और अपनी रिपोर्ट के आधार पर आदेश पारित किया जाता है। अपने स्तर पर डीएमसी शिकायत सही पाए जाने पर डॉक्टर को चेतावनी दे सकती है या उसका लाइसेंस भी कैंसल कर सकती है। अगर शिकायती अपने नुकसान की भरपाई चाहते हैं तो डीएमसी की रिपोर्ट के आधार पर कंस्यूमर फोरम में जा सकते हैं और मुआवजा पा सकते हैं। अगर डीएमसी के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं। डीएमसी ऐसे मामलों के निपटारे के लिए महीने में दो बार इग्जेक्युटिव कमिटी की मीटिंग बुलाती है। जरूरत पड़ने पर महीने में चार या पांच बार भी मीटिंग हो सकती है।
जब इलाज कराने जाएं तो नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें...
नियमों के मुताबिक किसी भी पद्धति का डॉक्टर संबंधित मेडिकल काउंसिल या बोर्ड से रजिस्ट्रेशन के बिना प्रैक्टिस नहीं कर सकता है।
नए नियमों के मुताबिक डॉक्टर के लिए अपने क्लीनिक में फोटो वाला रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट डिस्प्ले करना जरूरी है।
कोई भी प्रैक्टिसनर सिर्फ अपनी फील्ड में ही प्रैक्टिस कर सकता है। अगर वह कोई दूसरी पद्धति की दवाएं दे रहा है तो यह गलत है।
अगर किसी पर शक हो तो उसके रजिस्ट्रेशन नंबर का संबंधित काउंसिल या बोर्ड से वेरिफिकेशन करें। यह जानकारी संबंधित विभाग की वेबसाइट या ऑफिस के फोन से भी हासिल कर सकते हैं।
नियमों के मुताबिक कोई भी मेडिकल प्रैक्टिसनर अपना विज्ञापन नहीं दे सकता, इसलिए बड़े-बड़े भ्रामक विज्ञापनों के चक्कर में न पड़ें।
एक्सपर्ट्स से पूछें
मेडिकल डिपार्टमेंट, डॉक्टरों की डिग्री और लापरवाही से जुड़ा आपका अब भी आपका कोई सवाल बचा है तो आप हमें अपना सवाल हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। ईमेल करें :
sundaynbt@gmail.com
हमारे एक्सपर्ट आपको बताएंगे कि उस सवाल का जवाब। आपके सवाल हमें मंगलवार तक मिल जाने चाहिए।
एक और खास बात.....
17 जून के अंक में खतरे की घंटी बजाते मोबाइल लेख में हमने मोबाइल टॉवर और मोबाइल फोन से संबंधित जानकारी दी थी। इस विषय पर हमें ढेर सारे सवाल मिले। उनमें से चुनिंदा सवालों के जवाब हम यहां दे रहे हैं :
प्रो. गिरीश कुमार
इलेक्ट्रिकल इंजिनियर
आईआईटी बॉम्बे
मुझे दिन भर में करीब 10 घंटे मोबाइल पर बात करनी पड़ती है। इससे ऐसा लगता है कि मेरे कान गर्म हो जाते हैं। क्या मुझे ईयर फोन लगाकर बात करनी चाहिए या कुछ और उपाय होगा।
दयाल
आप सबसे पहले मोबाइल पर किसी भी तरह बात करने का वक्त कम करें। दूसरे, आप ईयरफोन लगाकर बात कर सकते हैं। लेकिन, ऐसा करते वक्त भी मोबाइल को जेब में रखें। मोबाइल को शरीर से कम-से-कम एक फुट दूर रखें। आज आपको बेशक कोई दिक्कत नहीं लग रही है लेकिन आनेवाले बरसों में आपको भारी परेशानी हो सकती है।
मेरी पत्नी 5 महीने की प्रेग्नेंट हैं। मैं काम के सिलसिले में बाहर रहता हूं। मैं और मेरी पत्नी रोजाना मोबाइल पर एक-दो घंटे बात करते हैं। इससे उसे क्या नुकसान हो सकता है?
विक्टर सिमोन
मोबाइल फोन पर रोजाना इतनी देर बार करना आपके बच्चे के लिए नुकसानदेह हो सकता है। ब्लैकबरी फोन के मैनुअल पर लिखा होता है कि इसे प्रेग्नेंट महिला के पेट के पास न रखें। आप लैंडलाइन का इस्तेमाल करें और अगर मोबाइल का इस्तेमाल करना ही है तो रोजाना 5-10 मिनट से ज्यादा बात न करें।
मोबाइल फोन पर स्न्क्र वैल्यू कैसे चेक करें?
विकास शर्मा, उमेश मोहिते, प्रदीप तिवारी
मोबइल फोन की स्न्क्र वैल्यू हर मोबाइल फोन के मैनुअल या ब्रॉशर पर लिखी होती है। आप इंटरनेट की मदद भी ले सकते हैं। वहां से आपको तभी फोन्स की SAR वैल्यू की जानकारी मिल जाएगी।
क्या बंद होने पर भी मोबाइल फोन रेडिएशन फैलाता है?
आलम
मोबाइल स्विच ऑफ होने पर रेडिएशन नहीं फैलाता। इससे किसी तरह का खतरा नहीं है। लेकिन अगर फोन ऑन है तो आप इसे यूज करें या नहीं, यह हर मिनट बेस स्टेशन को एक सिग्नल भेजता है, ताकि उसे मोबाइल की लोकेशन की जानकारी हो। ऐसे में मोबाइल को लगातार अपने शरीर के पास यानी पॉकेट की जेब या तकिए के नीचे आदि रखना सही नहीं है।
बात 2003 की है। अध्यापक नगर, नांगलोई के रहने वाले विनोद कुमार की नाक की एक साइड में सूजन आ गई थी। उन्होंने सोचा कि दो-चार दिन में अपने आप ठीक हो जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। नाक से खून आने लगा, तो वह केशवपुरम स्थित दिल्ली जल बोर्ड की डिस्पेंसरी में गए। विनोद दिल्ली जल बोर्ड में काम करते हैं। डिस्पेंसरी में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर ने जांच के बाद विनोद को एम्स रेफर कर दिया। विनोद अगले दिन एम्स की ओपीडी में पहुंचे। विनोद बताते हैं कि डॉक्टर ने देखने के बाद उन्हें फौरन भर्ती कर लिया और बताया कि नाक की सर्जरी करनी होगी। विनोद का आरोप है कि डॉक्टरों ने नाक के बदले गलती से सिर और मुंह का ऑपरेशन कर दिया, जिसके कुछ दिन बाद ही एक आंख भी खराब हो गई। जब डॉक्टर से पूछा कि ऐसा कैसा हो गया तो वह गलती मानने की बजाय विनोद को ही डांटने लगे।
कुछ दिन बाद विनोद को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। विनोद के मुताबिक, इसके बाद उनका आधा चेहरा खराब हो गया। एक आंख और नाक का एक तरफ का हिस्सा खत्म हो गया है। लेकिन उसके बाद जब भी विनोद एम्स में गए, उन्हें कह दिया गया कि अब घर जाओ, कुछ नहीं हो सकता या यह कहकर बाहर भगा दिया गया कि जाकर सफदरजंग में इलाज कराओ, यहां जगह नहीं है। सफदरजंग अस्पताल में जाकर उन्होंने इलाज कराने की कोशिश की तो एक महीने तक वह एक डिपार्टमेंट से दूसरे डिपार्टमेंट में भटकते रहे। इतने बड़े अस्पताल में उनकी समस्या का इलाज कहां होगा, इस बात की जानकारी उन्हें कहीं से नहीं मिल पा रही थी। थककर वह वापस एम्स में गए, जहां दोबारा उन्होंने अपनी इलाज की प्रक्रिया शुरू कराई।
सबसे पहले वह जनरल मेडिसिन डिपार्टमेंट में गए। वहां से ईएनटी डिपार्टमेंट में रेफर किया गया। ईएनटी के डॉक्टर से मिलने का मौका मिलने में ही 15 दिन का समय लग गया। यहां से उन्हें आई सेंटर में रेफर किया गया। वहां जाकर पता लगा कि उनकी आंख तो बिल्कुल खराब हो चुकी है, पर बिगड़े हुए चेहरे को थोड़ा बेहतर बनाया जा सकता है। इसके लिए उन्हें दोबारा सफदरजंग अस्पताल के बर्न व प्लास्टिक सर्जरी विभाग में जाने की सलाह दी गई। इस तरह की समस्याओं से अकेले विनोद ही नहीं, दूर-दराज से आने वाले ज्यादातर मरीज दो-चार होते रहते हैं। वे यह समझ नहीं पाते कि अस्पताल के इतने सारे डिपार्टमेंट्स में से उनकी समस्या के लिए कौन-सा है या कौन-से डिपार्टमेंट में किस बीमारी का इलाज होता है। आज के इस लेख के जरिए हम आपकी इस मुश्किल को आसान करने की कोशिश कर रहे हैं।
एनेस्थीसिया
इस डिपार्टमेंट के डॉक्टर का काम ऑपरेशन थिएटर में होता है। ये मरीज को सुन्न करने की दवाएं देते हैं। ऐसे में यहां आपको सीधे जाने की जरूरत नहीं होती।
कार्डियोलजी
यहां दिल से जुड़ी तमाम बीमारियों का इलाज होता है।
डर्मेटॉलजी
यहां स्किन से जुड़ी हर तरह की बीमारियों का इलाज किया जाता है। आप गर्मियों में होने वाली घमौरियां और सर्दियों में सिर में होने वाली खुस्की जैसी छोटी समस्याओं के लिए भी यहां जा सकते हैं
डायटेटिक्स
यहां आपके शरीर की जरूरत के हिसाब से आपके खान-पान का चार्ट तैयार किया जाता है। इसके एक्सपर्ट आपकी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर सलाह देते हैं।
डेंटल केयर
दांतों की साफ-सफाई से लेकर नकली दांत लगाने तक के सारे काम यहां होते हैं।
एंडोक्रिनॉलजी, मेटाबॉलिज्म ऐंड डायबीटीज
ये जनरल मेडिसिन के सुपर स्पेशलाइज्ड डिपार्टमेंट होते हैं, जहां डायबीटीज, मेटाबॉलिक सिस्टम में आने वाली खराबी और एंडोक्राइन ग्रंथि से संबंधित बीमारियों का इलाज होता है।
ईएनटी
यहां नाक, कान और गले से संबंधित समस्याओं का इलाज होता है।
आई केयर
आंखों की देखभाल, जांच, इलाज और ऑपरेशन यहां किया जाता है। आंख से संबंधित इस ब्रांच को ऑपथेमॉलजी भी कहा जाता है।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल
यहां पेट से संबंधित समस्याओं का इलाज किया जाता है।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी
इसके एक्सपर्ट पेट की बीमारियों से संबंधित सर्जरी करते हैं।
हेमैटॉलजी
यहां ब्लड से संबंधित समस्याओं की जांच और इलाज होता है।
इंटरनल मेडिसिन
कोई भी समस्या होने पर आमतौर पर मरीज को सीधे इसी डिपार्टमेंट में जाना होता है। अगर समस्या ज्यादा होती है तो एक्सपर्ट संबंधित डिपार्टमेंट में रेफर कर देते हैं।
नेफ्रॉलजी
किडनी से संबंधित बीमारियों का इलाज किया जाता है।
न्यूरो साइंसेज सेंटर
यहां न्यूरो यानी तंत्रिका तंत्र से संबंधित बीमारियों का इलाज होता है। दिमाग से संबंधित समस्याओं के लिए यहां जाते हैं।
ऑब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनी
यहां स्त्री रोगों का इलाज और सर्जरी की जाती है।
ऑन्कॉलजी
यहां विभिन्न तरह के कैंसर का इलाज होता है। इसे कैंसर सेंटर भी कहते हैं।
ऑर्थोपैडिक्स
यहां हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का इलाज और सर्जरी की जाती है।
पीडियाट्रिक्स
इसके एक्सपर्ट बाल रोग विशेषज्ञ होते हैं। 14 साल तक के बच्चों को कोई समस्या होने पर यहां ले जाया जाता है।
सायकायट्री
यहां विभिन्न तरह की मानसिक समस्याओं का इलाज किया जाता है।
मिनिमल एक्सेस सर्जरी
इसके एक्सपर्ट कोई भी सर्जरी परंपरागत तरीके से चीरफाड़ के बजाय नई तकनीक से एक छोटे से छेद के जरिए कैमरे की मदद से करते हैं।
बेरियाट्रिक ऐंड मेटाबॉलिक सर्जरी
यहां मोटापा कम करने की सर्जरी की जाती है।
एस्थेटिक ऐंड री-कंस्ट्रक्टिव सर्जरी
यहां खूबसूरती बढ़ाने के लिए सर्जरी होती है। मसलन नाक-होंठ आदि की शेप ठीक कराना, ब्रेस्ट इंप्लांट जैसी सर्जरी। आजकल इस फील्ड की काफी डिमांड है।
करें असली डॉक्टर की पहचान
आजकल हर फील्ड में नकली बाजार आबाद है। लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने वालों की कोई कमी नहीं है। मेडिकल फील्ड भी इससे अछूता नहीं है। नकली कॉलेज खोलकर फीस के लाखों रुपए बटोरने, कुछ हजार रुपयों में नकली डिग्रियां बेचने से लेकर नकली डॉक्टरी करने जैसे मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। इस तरह के फर्जीवाड़े से बचने के लिए आप डिग्री का फंडा भी समझें।
आयुर्वेदिक
अंडर ग्रैजुएट कोर्स
बीएएमएस, बीआईएमएस और बीयूएमएस
योग्यता : 10+2 साइंस से
कोर्स अवधि: साढ़े चार साल का कोर्स और छह महीने से एक साल तक इंटर्नशिप
कहां से करें: दिल्ली में तिब्बिया कॉलेज के अलावा भी देशभर में बहुत-से सरकारी और प्राइवेट कॉलेज खुल गए हैं, मगर इनमें कई नकली भी हैं। इन कोर्सों में दाखिला लेने से पहले सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन और दिल्ली का इंस्टिट्यूट है तो दिल्ली भारती चिकित्सा परिषद से छानबीन जरूर करें, क्योंकि कॉलेजों के लिए यहां से रजिस्ट्रेशन जरूरी है। वेबसाइट है: www.dbcp.co.in
ऐलोपैथी
अंडर ग्रैजुएट कोर्स
एमबीबीएस (बैचलर ऑफ मेडिसिन बैचलर ऑफ सर्जरी)
योग्यता : 10+2 साइंस (बायलॉजी) से
कोर्स अवधि : साढ़े चार साल
पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स
मेडिसिन में : एमडी इंटरनल मेडिसिन,
एमडी गाइनी, एमडी स्किन, एमडी चेस्ट, एमडी पीडियाट्रिक, एमडी रेडियो डाइग्नोसिस, एमडी ऑर्थोपेडिडिक आदि
सर्जरी में: एमएस जनरल सर्जरी, एमएस प्लास्टिक सर्जरी, एमएस काडिर्एक सर्जरी, एमएस पीडियाट्रिक सर्जरी आदि
योग्यता: एमबीबीएस
कोर्स अवधि : तीन साल
पीजी लेवल के डिप्लोमा कोर्स
डिप्लोमा इन चाइल्ड हेल्थ (डीसीएच), डिप्लोमा इन पैथेलॉजी (डीसीपी), डिप्लोमा इन चेस्ट डिजीज (डीपीसीपी), डिप्लोमा इन रेडियॉलजी (डीएमआरडी) और डिप्लोमा इन स्किन एंड वेनरल डिजीज (डीएसवीडी) आदि
योग्यता: एमबीबीएस
कोर्स अवधि: दो साल
नोट: नैशनल बोर्ड द्वारा रिकग्नाइज्ड डीएनबी कोर्स भी एमडी और एमएस के बराबर होता है, लेकिन यह कोर्स सिर्फ प्राइवेट इंस्टिट्यूट् करवाते हैं।
पोस्ट पीजी (सुपर स्पेशियलिटी) कोर्स
मेडिसिन में: डीएम इन कार्डियॉलजी, डीएम इन गैस्ट्रोइंटेरॉलजी, डीएम इन गाइनिकॉलजी आदि
योग्यता: इंटरनल मेडिसिन में एमडी
सर्जरी में: एमसीएच इन कार्डियो सर्जरी, एमसीएच इन जनरल सर्जरी आदि
योग्यता: एमएस
कोर्स अवधि : तीन साल
होम्योपैथी
अंडर ग्रैजुएट कोर्स
बीएचएमएस
कोर्स अवधि : साढ़े चार साल और छह महीने से एक साल तक इंटर्नशिप
कहां से करें : दिल्ली में दो कॉलेज हैं - नेहरु होम्योपैथी और बीआर सूर होम्योपैथी कॉलेज
नोट: अब होम्योपैथी में भी पीजी कोर्स शुरू हो गया है, मगर पीजी-इन-होम्योपैथी लिखना जरूरी होता है और ये कॉलेज या कोर्स होम्योपैथी बोर्ड से रजिस्टर्ड होते हैं। जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, वे नकली हैं।
डेंटल सर्जरी के कोर्स
बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी)
पीजी कोर्स :एमडीएस (मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी) ये कोर्स कराने वाले कॉलेजों का डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया से रजिस्टर्ड होना जरूरी है।
वेबसाइट है: www.dciindia.org
ये डिग्रियां हैं नकली
एमडीएमए: मेंबर ऑफ दिल्ली मेडिकल असोसिएशन
एमडीएमसी: मेंबर दिल्ली मेडिकल काउंसिल
एमआरएसएच: मेंबरशिप ऑफ रॉयल कॉलेज ऑफ लंदन की फेलोशिप
आरएमपी: रूरल मेडिकल प्रैक्टिसनर। लोग इसे अक्सर रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिसनर समझ लेते हैं
पीएमपी: प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनर
बंगाली या मद्रासी डॉक्टर
एमआईएमएस: इलेक्ट्रो होम्योपैथी
नोट: रूस, चीन, नेपाल और मॉरिशस से एमबीबीएस करके आने वाले अगर एमसीआई का एग्जाम पास किए बगैर प्रैक्टिस कर रहे हैं तो यह गलत है।
डॉक्टर-मरीज संबंधी दो अहम फैसले
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंडियन
मेडिकल असोसिएशन बनाम वी. पी. शांता मामले में 1995 में दिए गए फैसले के मुताबिक डॉक्टरों पर दो कारणों से मुकदमा चलाया जा सकता है। एक तो लापरवाही बरतने के लिए उन पर आपराधिक मामला बनता है और दूसरा उपभोक्ता फोरम में उनसे मुआवजे की मांग भी की जा सकती है, जबकि इससे पहले डॉक्टरों को सिर्फ असावधानी बरतने के लिए दोषी पाए जाने पर सजा सुनाई जा सकती थी।
5 अगस्त 2005 को डॉ. जैकब मैथ्यू मामले में
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के मुताबिक किसी आम आदमी को डॉक्टर की लापरवाही के खिलाफ सीधे केस करने का अधिकार नहीं है। मामला तभी दर्ज किया जा सकता है, जब किसी सक्षम डॉक्टर (सरकारी क्षेत्र से हो तो बेहतर है) ने इस मामले में अपनी राय दी हो। इस मामले में बचाव पक्ष के वकील की एक दलील यह भी थी कि अगर डॉक्टर पर यह तलवार लटकती रही कि उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है तो वह इलाज करने से घबराने लगेगा।
मरीज कहां कर सकते हैं शिकायत
दिल्ली मेडिकल काउंसिल
अगर किसी कोई अपने या अपने रिश्तेदार के इलाज से संतुष्ट नहीं है या इलाज से कोई मृत्यु या कोई और नुकसान हो गया है तो दिल्ली मेडिकल काउंसिल में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। यहां सारे संबंधित कागजात और शिकायत-पत्र पोस्ट कर सकते हैं या यहां जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। काउंसिल का पता है :
दिल्ली मेडिकल काउंसिल, थर्ड फ्लोर,
पैथलॉजी ब्लॉक, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-2
कंस्यूमर फोरम
मरीज या उसके रिश्तेदार चाहें तो पुलिस या सीधे कंस्यूमर फोरम में भी मामला दर्ज करा सकते हैं। पुलिस को अगर मेडिकल नेग्लिजेंस यानी लापरवाही का मामला लगता है तो वह मामले को दिल्ली मेडिकल काउंसिल के पास भेज देती है। कंस्यूमर फोरम भी इसके लिए या तो डीएमसी से संपर्क करता है या किसी भी सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों की टीम को जांच की जिम्मेदारी सौंपता है।
क्या है प्रोसेस
डीएमसी शिकायती के सारे डॉक्युमेंट्स की जांच करती है और जरूरत पड़ने पर शिकायती और डॉक्टर को बुलाकर सारे पहलुओं को जानने की कोशिश करती है। इसके बाद मामले को काउंसिल की इग्जेक्युटिव कमिटी के सामने रखा जाता है। कमिटी के सारे सदस्य मिलकर इस पर चर्चा करते हैं और अपनी राय देते हैं। अगर मामला बहुत गंभीर होता है और एक बार में कोई फैसला नहीं हो पाता तो दोबारा मीटिंग की जाती है और अपनी रिपोर्ट के आधार पर आदेश पारित किया जाता है। अपने स्तर पर डीएमसी शिकायत सही पाए जाने पर डॉक्टर को चेतावनी दे सकती है या उसका लाइसेंस भी कैंसल कर सकती है। अगर शिकायती अपने नुकसान की भरपाई चाहते हैं तो डीएमसी की रिपोर्ट के आधार पर कंस्यूमर फोरम में जा सकते हैं और मुआवजा पा सकते हैं। अगर डीएमसी के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं। डीएमसी ऐसे मामलों के निपटारे के लिए महीने में दो बार इग्जेक्युटिव कमिटी की मीटिंग बुलाती है। जरूरत पड़ने पर महीने में चार या पांच बार भी मीटिंग हो सकती है।
जब इलाज कराने जाएं तो नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें...
नियमों के मुताबिक किसी भी पद्धति का डॉक्टर संबंधित मेडिकल काउंसिल या बोर्ड से रजिस्ट्रेशन के बिना प्रैक्टिस नहीं कर सकता है।
नए नियमों के मुताबिक डॉक्टर के लिए अपने क्लीनिक में फोटो वाला रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट डिस्प्ले करना जरूरी है।
कोई भी प्रैक्टिसनर सिर्फ अपनी फील्ड में ही प्रैक्टिस कर सकता है। अगर वह कोई दूसरी पद्धति की दवाएं दे रहा है तो यह गलत है।
अगर किसी पर शक हो तो उसके रजिस्ट्रेशन नंबर का संबंधित काउंसिल या बोर्ड से वेरिफिकेशन करें। यह जानकारी संबंधित विभाग की वेबसाइट या ऑफिस के फोन से भी हासिल कर सकते हैं।
नियमों के मुताबिक कोई भी मेडिकल प्रैक्टिसनर अपना विज्ञापन नहीं दे सकता, इसलिए बड़े-बड़े भ्रामक विज्ञापनों के चक्कर में न पड़ें।
एक्सपर्ट्स से पूछें
मेडिकल डिपार्टमेंट, डॉक्टरों की डिग्री और लापरवाही से जुड़ा आपका अब भी आपका कोई सवाल बचा है तो आप हमें अपना सवाल हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। ईमेल करें :
sundaynbt@gmail.com
हमारे एक्सपर्ट आपको बताएंगे कि उस सवाल का जवाब। आपके सवाल हमें मंगलवार तक मिल जाने चाहिए।
एक और खास बात.....
17 जून के अंक में खतरे की घंटी बजाते मोबाइल लेख में हमने मोबाइल टॉवर और मोबाइल फोन से संबंधित जानकारी दी थी। इस विषय पर हमें ढेर सारे सवाल मिले। उनमें से चुनिंदा सवालों के जवाब हम यहां दे रहे हैं :
प्रो. गिरीश कुमार
इलेक्ट्रिकल इंजिनियर
आईआईटी बॉम्बे
मुझे दिन भर में करीब 10 घंटे मोबाइल पर बात करनी पड़ती है। इससे ऐसा लगता है कि मेरे कान गर्म हो जाते हैं। क्या मुझे ईयर फोन लगाकर बात करनी चाहिए या कुछ और उपाय होगा।
दयाल
आप सबसे पहले मोबाइल पर किसी भी तरह बात करने का वक्त कम करें। दूसरे, आप ईयरफोन लगाकर बात कर सकते हैं। लेकिन, ऐसा करते वक्त भी मोबाइल को जेब में रखें। मोबाइल को शरीर से कम-से-कम एक फुट दूर रखें। आज आपको बेशक कोई दिक्कत नहीं लग रही है लेकिन आनेवाले बरसों में आपको भारी परेशानी हो सकती है।
मेरी पत्नी 5 महीने की प्रेग्नेंट हैं। मैं काम के सिलसिले में बाहर रहता हूं। मैं और मेरी पत्नी रोजाना मोबाइल पर एक-दो घंटे बात करते हैं। इससे उसे क्या नुकसान हो सकता है?
विक्टर सिमोन
मोबाइल फोन पर रोजाना इतनी देर बार करना आपके बच्चे के लिए नुकसानदेह हो सकता है। ब्लैकबरी फोन के मैनुअल पर लिखा होता है कि इसे प्रेग्नेंट महिला के पेट के पास न रखें। आप लैंडलाइन का इस्तेमाल करें और अगर मोबाइल का इस्तेमाल करना ही है तो रोजाना 5-10 मिनट से ज्यादा बात न करें।
मोबाइल फोन पर स्न्क्र वैल्यू कैसे चेक करें?
विकास शर्मा, उमेश मोहिते, प्रदीप तिवारी
मोबइल फोन की स्न्क्र वैल्यू हर मोबाइल फोन के मैनुअल या ब्रॉशर पर लिखी होती है। आप इंटरनेट की मदद भी ले सकते हैं। वहां से आपको तभी फोन्स की SAR वैल्यू की जानकारी मिल जाएगी।
क्या बंद होने पर भी मोबाइल फोन रेडिएशन फैलाता है?
आलम
मोबाइल स्विच ऑफ होने पर रेडिएशन नहीं फैलाता। इससे किसी तरह का खतरा नहीं है। लेकिन अगर फोन ऑन है तो आप इसे यूज करें या नहीं, यह हर मिनट बेस स्टेशन को एक सिग्नल भेजता है, ताकि उसे मोबाइल की लोकेशन की जानकारी हो। ऐसे में मोबाइल को लगातार अपने शरीर के पास यानी पॉकेट की जेब या तकिए के नीचे आदि रखना सही नहीं है।
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