Thursday, April 26, 2012

जलवायु वाता पर साझा मंच प्रदान करता ‘बेसिक’



जलवायु वाता पर साझा मंच प्रदान करता 'बेसिक'
 
('बेसिक' चार विकासशील देशों- ब्राजील, दषिाण अफ्रीका, भारत और चीन का साझा मंच है कोपेनहेगन जलवायु वाता के दौरान चारों देशों ने साझा उद्देश्य जाहिर करते हुए तय किया था कि यदि विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवतन पर उनके हितों की रषा नहीं की गयी, तो वे मिल कर एक मंच से अपनी बात रखेंगे हाल में ही संपत्र बेसिक देशों के पयावरण मंत्रियों की 10वीं बैठक के दौरान इस बात पर सहमति बनी कि जलवायु परिवतन से जुड़ी कोइ भी योजना बनाते समय समानता के मुद्दे (प्रिंसिपल ऑफ इक्विटी) को ध्यान में रखा जाना चाहिए 'बेसिक' बैठक के बहाने विकसित और विकासशील देशों के बीच पयावरण को लेकर अहसहमति के विभित्र पहलुओं की पड़ताल करता आज का नॉलेज)
 

क्या है क्योटो प्रोटोकॉल

 

यूनाइटेड नेशंस (संयुक्त राष्ट­) फ्रेमवक कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज का क्योटो प्रोटोकॉल पयावरण की चुनौती से निपटने के लिए अंतरराष्ट­ीय प्रयासों का एक हिस्सा है 1997 में कांफ्रेंस ऑफ द पाटीज (सीओपीइ) के तीसरे सत्र में अनुमोदित इस प्रोटोकॉल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजन की सीमा तय की गयी है, जो कानूनी रूप से बाध्यकारी है यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देशों ने मइ 2002 में इसको मंजूरी दी भारत ने भी इसी वष इस पर हस्ताषार किया विकसित देशों में करीब 150 साल पहले शुरू हुइ ग्रीनहाउस गैसों के ब़ढते उत्सजन को कम करने और फिर उसे समाप्त करने के इरादे से अस्तित्व में आये क्योटो प्रोटोकॉल का अंतिम उद्देश्य हर ऐसी मानवीय गतिविधि पर रोक लगाना है, जिससे पयावरण के लिए खतरा पैदा होता है प्रोटोकॉल के मसौदे के मुताबिक, विकसित देशों को छह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजन में कम से कम पांच प्रतिशत की कमी करनी होगी इस सामूहिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए स्विट्जरलैंड, मध्य और पूवी यूरोपीय राष्ट­ों व यूरोपीय संघ को 8 प्रतिशत, अमेरिका 7 प्रतिशत और कनाडा, हंगरी, जापान और पोलैंड को 6 प्रतिशत की कमी करनी होगी रूस, न्यूजीलैंड और यूक्रेन अपने मौजूदा स्तर पर कायम रहेंगे, जबकि नावे एक प्रतिशत, ऑस्ट­ेलिया 8 प्रतिशत और आइसलैंड इसमें 10 प्रतिशत तक की वृद्धि कर सकते हैं हर राष्ट­ को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजन का यह लक्ष्य 2008-2012 के बीच हासिल करना होगा उनके प्रदशन को मापने के लिए पांच सालों का औसत निकालने का प्रावधान किया गया है तीन सबसे महत्वपूण गैसों काबन-डाइ-ऑक्साइड, मिथेन और नाइट­स ऑक्साइड के घटे स्तर को मापने के लिए 1990 को आधार वष माने जाने की व्यवस्था है

औद्योगिक प्रतिष्ठानों से निकलने वाली खतरनाक गैसों में तीन सबसे पुरानी गैसों-हाइड­ोफ्लोरोकाबन, फ्लोरोकाबन और सल्फर हेक्साफ्लोराइड के स्तर का आकलन 1990 या 1995 को आधार वष मानकर किया जा सकता है अपेषा के मुताबिक इन देशों को अपने काबन उत्सजन के स्तर को कम करके 1990 के स्तर पर लाना था, लेकिन वे ऐसा करने में कामयाब नहीं रहे हैं सच तो यह है कि 1990 के बाद उनके काबन उत्सजन के स्तर में इजाफा ही हुआ है अथव्यवस्था में बदलाव के दौर से गुजर रहे देशों के उत्सजन के स्तर में 1990 के बाद कमी दिखाइ दी थी, लेकिन अब यह ट­ेंड बदलता नजर आ रहा है 2010 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रोटोकॉल के अंतगत उत्सजन के स्तर में 5 प्रतिशत की कमी सुनिश्चित करने के लिए विकसित देशों को वास्तव में करीब 20 प्रतिशत की कटौती करनी होगी क्योटो संधि के अनुसार उन सब देशों को इस संधि की पुष्टि करनी है जो धरती के वायुमंडल में 55 प्रतिशत काबनडाइऑक्साइड छोड़ते हैं उन्हें यह मात्रा 2008 से 2012 के बीच घटाकर पांच प्रतिशत तक लानी है रूस शुरू में क्योटो संधि पर हस्ताषार करने में झिझक रहा था, लेकिन अंतत: राष्ट­पति पुतिन ने रूस को क्योटो संधि से जोड़ दिया इस संधि को माच 2001 में उस समय भारी धक्का लगा था, जब अमेरिकी राष्ट­पति जॉज बुश ने घोषणा की कि वे कभी इस संधि पर हस्ताषार नहीं करेंगे अमेरिका दुनिया भर में ग्रीन हाउस समूह की गैसों के एक चौथाइ हिस्से के लिए जिम्मेदार है 191 देशों ने इस प्रोटोकोल की पुष्टि की है इसे 11 दिसंबर 1997 में जापान के क्योटो में ग्रहण किया गया और 16 फरवरी 2005 में अमल किया गया दिसंबर 2011 में कनाडा भी इस संधि से बाहर हो गया'बेसिक' चार विकासशील देशों- ब्राजील, दषिाण अफ्रीका, भारत और चीन का साझा मंच है कोपेनहेगन जलवायु वाता के दौरान चारों देशों ने साझा उद्देश्य जाहिर करते हुए तय किया था कि यदि विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवतन पर उनके हितों की रषा नहीं की गयी, तो वे मिल कर एक मंच से अपनी बात रखेंगे हाल में ही संपत्र बेसिक देशों के पयावरण मंत्रियों की 10वीं बैठक के दौरान इस बात पर सहमति बनी कि जलवायु परिवतन से जुड़ी कोइ भी योजना बनाते समय समानता के मुद्दे (प्रिंसिपल ऑफ इक्विटी) को ध्यान में रखा जाना चाहिए l 

काबन उत्सजन में कौन कहां

प्रति वष उत्सजन प्रति वग किलोमीटर प्रति व्यक्ति मात्रा प्रतिशत में

(मीटि­क टन में) की दर से उत्सजन की दर से उत्सजन



चीन 8,240,958 8,548 62 23

यूएसए 5,492,170 5,589 176 1811

भारत 2,069,738 6,296 17 578

रूस 1,688,688 989 118 567

जापान 1,138,432 30,122 89 401

जमनी 762,543 21,358 93 261

इरान 574,667 3,487 76 179

दषिाण कोरिया 563,126 56,195 115 169

कनाडा 518,475 519 149 180

यूके 493,158 20,244 79 173

यूरोपीय यूनियन 4177817 ---- -- 1404

(27 देश)

(दुनिया के कुछ बड़े देशों द्वारा प्रतिवष काबन उत्सजन की मात्रा, आंकड़े का स्नेत संयुक्त राष्ट­ की यूएएस डिपाटमेंट ऑफ इंजीनियरिंग 2010 इसमें केवल जीवाश्म ईंधन से उत्सजित काबन की मात्रा दी गयी है दस बड़े देश कुल 67 07 फीसदी काबन उत्सजन करते हैं)ं
 
हाल में ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि विकास ऐसा हो जिससे पयावरण पर कोइ बुरा प्रभाव न पड़े आथिक प्रगति लोगों के लिए जरूरी है, लेकिन हम ऐसी प्रगति की इजाजत नहीं दे सकते, जो हमारे पयावरण को नुकसान पहुंचाती हो प्रधानमंत्री ने यह बात बेसिक देशों (ब्राजील, दषिाण अफ्रीका, भारत और चीन) के पयावरण मंत्रियों की 10वीं बैठक के दौरान कही उन्होंने कहा कि जलवायु परिवतन से जुड़ी कोइ भी योजना बनाते समय समानता के मुद्दे (प्रिंसिपल ऑफ इक्विटी) को ध्यान में रखा जाना चाहिए समानता का मसला यानी कि हर देश द्वारा वायुमंडल में छोड़े जाने वाले काबन-डाइ-ऑक्साइड की मात्रा के आधार पर उस देश के उत्सजन लक्ष्य तय करना है गरीब और विकासशील देशों ने पिछले साल डरबन में भारत के समानता के सिद्धांत का समथन किया था साथ ही बेसिक देशों की डरबन में सकारात्मक भूमिका सामने आया संयुक्त राष्ट­ द्वारा प्रायोजित जलवायु वाता इस वष 18 दिसंबर को कतर में आयोजित की जायेगी उससे पहले बेसिक देशों के पयावरण मंत्री का यह 10वीं बैठक अहम है

बेसिक मंच की जरूरत

बेसिक चार विकासशील देशों ब्राजील, दषिाण अफ्रीका, भारत और चीन का साझा मंच है इसका गठन 28 नवंबर 2009 को एक समझौते के तहत हुआ कोपेनहेगन जलवायु वाता के दौरान चारों देशों ने साझा उद्देश्य जारी करते हुए तय किया कि यदि विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवतन पर उनकी हितों की रषा नहीं की गयी, तो वे मिलकर एक मंच से अपनी बात रखेंगे बेसिक मंच चीन के प्रयास का नतीजा है इसके अध्यषा चीन के जी झेनहुआ हैं बेसिक मंच को कोपेनहेगन समझौते का नतीजा माना जाता है यह समूह काबन उत्सजन कटौती और इससे होने वाले नुकसान के लिए विकासशील देशों को मदद देने की योजना पर काम करता है जनवरी 2010 में समूह ने यह कह सबको चौंका दिया कि कोपेनहेगन समझौता राजनीति से प्रेरित है, क्योंकि यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है कोपेनहेगन समझौते के सामने आने के बाद बेसिक देशों की ओर से जारी बयान में कहा गया कि 2011 में होने वाली डरबन वातातक संयुक्त राष्ट­ जलवायु परिवतन फ्रेमवक कन्वेंशन को कानून का दजा मिले और क्योटो प्रोटोकॉल को जारी रखने पर सहमति बनायी जाये साथ ही भारत ने समानता के सिद्धांत की बात भी रखी अमेरिका आदि विकसित देशों की मनमानी खत्म करने की भी मांग हुइ विकसित देशों से मांग की गयी कि काबन कटौती से विकासशील देशों हुइ षाति की भरपाइ और न्यायसंगत विकास करने में मदद देने के लिए कोष बने उन्हें वित्त, तकनीकी उपलब्ध करायें और षामता का विकास करने में योगदान दें लेकिन पिछले साल दिसंबर में डरबन में संयुक्त राष्ट­ जलवायु परिवतन सम्मेलन में देशों के बीच क्योटो प्रोटोकाल के विस्तार को लेकर सहमति नहीं बन पायी

विभित्र देशों में मतभेद

काबन उत्सजन में कटौती के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी क्योटो प्रोटोकाल की समय सीमा इस साल समाप्त हो रही है बेसिक देश जहां क्योटो प्रोटोकाल की समय सीमा ब़ढाए जाने पर जोर दे रहे हैं, वहीं अमेरिका और यूरोप आदि देश इसका विरोध कर रहे हैं बेसिक देशों का कहना है कि क्योटो प्रोटोकाल के लिए एक दूसरी प्रतिबद्धता अवधि आवश्यक है यदि वास्तव में जलवायु परिवतन से निपटना चाहते हैं, तो क्योटो प्रोटोकाल आगे अवश्य जारी रहना चाहिए संयुक्त राष्ट­ पयावरण कायक्रम (यूएनइपी) काबन उत्सजन में कटौती के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी और स्वैच्छिक उपाय दोनों की महत्ता स्वीकारने की वकालत करता रहा है उसका मानना है कि काबन उत्सजन को कम करने के लिए कुछ देशों के स्वैच्छिक उपाय और कानूनी बाध्यता दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और इन्हें एक-दूसरे से प्रतिस्पधा नहीं करनी चाहिए दोनों उपाय महत्वपूण हैं आज दुनिया पूरी तरह से स्वैच्छिक उपायों पर निभर नहीं रह सकती, लेकिन ये उपाय आवश्यक हैं, क्योंकि ये उपाय जलवायु परिवतन के प्रतिकूल प्रभाव से निपटने के लिए षोत्रीय स्तर पर देशों की प्रतिबद्धता दशाते हैं जलवायु परिवतन के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट­ कहता रहा हैकि यही समय है जब हम जलवायु को बचाने के लिए कोइ कारगर कदम उठा सकते हैं अन्यथा बहुत देर हो जायेगी अभी तक क्योटो प्रोटोकाल में धनी देशों पर उत्सजन में कटौती करने की कानूनी बाध्यता है, जबकि विकासशील देशों पर यह स्वैच्छिक है

गतिरोध की वजह

विकासशील देश औद्योगिकीकरण के अपने अधिकार पर जोर देते हुए कटौती का विरोध कर रहे हैं यह गतिरोध का प्रमुख बिंदु है भारत कहता रहा है कि वह विकासशील देशों पर कानूनी रूप से बाध्य किसी भी कटौती का विरोध करेगा चारों देश इस मुद्दे पर एक हैं कि दुनिया के लिए काबन उत्सजन में कटौती के मानक 'समान' नहीं, बल्कि 'समतापूण' होने चाहिए यानी इतिहास में कुल मिलाकर सबसे ह्लयादा प्रदूषण फैलाने वाले देश अपने उत्सजन में सबसे ह्लयादा और सबसे तेज कटौती करें, जबकि विकास के निचले पायदान पर चल रहे देश धीरे-धीरे इस रास्ते पर आगे ब़ढें और विकसित देशों की ओर से उन्हें इस काम में सस्ते दर पर या मुफ्त तकनीकी मदद भी मुहैया करायी जाये विभित्र देशों की षामता और ऐतिहासिक भूमिका के मुताबिक इस काम में उनकी हिस्सेदारी तय होनी चाहिए भारत, चीन और दषिाण अफ्रीका के पास गैस, तेल और परमाणु संसाधनों की तुलना में कोयला कहीं ह्लयादा है और अपनी बिजली की जरूरतें पूरी करने के लिए कोयला आधारित बिजलीघरों पर निभर रहना उनकी मजबूरी है इसी तरह ब्राजील अपने यहां गóो की बड़ी उपज का इस्तेमाल मिथेनॉल आधारित गा़िडयां चलाने में करता है जाहिर है, उत्सजन में कटौती के नाम पर अगर कोयले और बायोफ्यूल के इस्तेमाल पर ग्लोबल कानूनी रोक लगायी जाती है, तो आथिक पिछड़ापन ही बेसिक देशों की नियति बन जायेगी लेकिन इस चिंता को सबसे ऊपर रखते हुए भी हम ग्लोबल वार्मिग से जुड़ी कहीं ह्लयादा बड़ी चिंताओं की अनदेखी नहीं कर सकते विकास के नाम पर विकासशील देशों में जिस तरह जंगल काटे जा रहे हैं और नदियां नाले में तब्दील हो रही हैं, वह अब इन समाजों के लिए आत्मघाती साबित होने लगा है

आय के वितरण और काबन उत्सजन संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह बात सामने आती है कि भारत की सबसे अमीर 10 फीसदी आबादी का प्रति व्यक्ति काबन उत्सजन अमेरिका के सबसे गरीब 10 फीसदी लोगों द्वारा किए जाने वाले उत्सजन के बराबर या उससे कुछ कम ही था अगर अमेरिका के सबसे अमीर लोगों से तुलना की जाये, तो यह उनके द्वारा किए गये उत्सजन का 10 वां हिस्सा भी नहीं था दूसरे शब्दों में कहा जाये, तो भारत के अमीरों ने अमेरिका के गरीबों से भी कम काबन उत्सजन किया है

वष 2009 में कोपेनहेगन सम्मेलन में देशों को दो नयी Ÿोणियों में बांट दिया गया पहला, ऐसे संवेदनशील देश जिनको जलवायु परिवतन अपनाने के लिए तुरंत धन मुहैया कराया जाना था और दूसरे वे देश जिनको उभरते हुए प्रदूषक का दजा दिया गया- इसमें भारत, चीन, ब्राजील और दषिाण अफ्रीका शामिल थे इस सम्मेलन कहा गया कि भारत जैसे देश समानता के आधार पर उस धनराशि की राह रोक रहे हैं, जो बांग्लादेश और मालदीव जैसे देशों के खाते में जानी है इस तरह सम्मेलन में गरीब देश गरीबों से ही भिड़ गये तब से लेकर अब तक यह मतभेद जारी है इस तरह देखें तो इस तरह के गतिरोध दूर करने में यह मंच काफी उपयोगी साबित हो सकता है पिछले कुछ वर्षो के दौरान अमीर देशों के उत्सजन में लगातार इजाफा हुआ है, लेकिन उसके बारे में बात करने वाला कोइ है ही नहीं अब समय आ गया है कि हम इन बचकानी लड़ाइयों को खत्म करें यह तय करना होगा कि दुनिया भर में काबन उत्सजन में तेज गति से और बड़े पैमाने पर कटौती की जाये l


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