डार्विन ने अपनी किताब ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीसीज में जीवन वृक्ष- 'ट्री ऑफ लाइफ' से संबंधित विस्तृत जानकारी पेश की. उन्हें विश्वास था कि समय के साथ जीवों के विकास की प्राकृतिक प्रक्रिया को ट्री ऑफ लाइफ द्वारा समझाया जा सकता है. डार्विन के बाद से अब तक इस लाइफ ट्री को पूरा करने की कोशिश की जा रही है. वैज्ञानिकों की कोशिश एक ऐसे वृक्ष का निर्माण करना है, जिसकी सारी कड़ी आपस में जुड़ी हुई हो. अब एक नयी परियोजना के तहत डार्विन के इस ट्री को पूरा करने की एक बड़ी कवायद शुरू की गयी है. क्या है डार्विन का ट्री ऑफ लाइफ और क्या है यह परियोजना बता रहा है आज का नॉलेज..
वर्ष 1837 में चार्ल्स डार्विन ने एक नोटबुक खोला और उसमें एक सामान्य पेड़ की तसवीर बनायी. इस पेड़ में कुछ शाखाएं थीं. प्रत्येक शाखा को अंग्रेजी के एक अक्षर से अंकित किया गया था और वह एक प्रजाति को दर्शाता था. इस चित्र के जरिए उन्होंने अपनी उस कल्पना को उकेरा जिसके मुताबिक प्रजातियां एक-दूसरे से संबंधित हैं, जुड़ी हुई हैं. यानी प्रजातियों का विकास एक ही पूर्वज से हुआ है. दिलचस्प यह है कि इस पóो के ऊपरी हिस्से में डार्विन ने लिखा- -आइ थिंक' यानी 'मैं सोचता हूं.' अगर गौर कीजिये तो यह कल्पना और उसके ऊपर लिखे शब्द अपने आप में एक ब.डे ऐतिहासिक तथ्य को बयां कर रहे थे. यहां से आधुनिकता का आगाज हो रहा था. खैर उस तथ्य में गये बगैर यहां सिर्फ यह समझा जाता हैकि इस बिंदु से ही डार्विन के विकासवादी सिद्धांत का आगाज होता है. डार्विन के इस विकासवादी सिद्धांत के मुताबिक, इंसान का विकास एक कॉमन पूर्वज से हुआ.
ट्री ऑफ लाइफ
डार्विन ने अपनी किताब ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीसीज में जीवन वृक्ष- ट्री ऑफ लाइफ से संबंधित विस्तृत जानकारी पेश की. उन्हें विश्वास था कि समय के साथ जीवों के अधिक विकसित अवस्था को प्राप्त करने की प्राकृतिक प्रक्रिया को ट्री ऑफ लाइफ द्वारा समझाया जा सकता है. डार्विन के बाद से अब तक इस लाइफ ट्री को पूरा करने की कोशिश की जा रही है. वैज्ञानिकों की कोशिश एक ऐसे वृक्ष का निर्माण है, जिसकी सारी कड़ी आपस में जुड़ी हुई हो. काफी अरसे से वैज्ञानिक डीएनए, जीवाश्म और अन्य संकेतों का उपयोग करते हुए जीवों के विभित्र समूहों के बीच संबंध स्थापित करने का काम कर रहे हैं.
वे इसके जरिये जीवन वृक्ष का खाका बना रहे हैं, ताकि यह साबित किया जा सके कि सभी प्रजातियों का विकास एक ही पूर्वज से हुआ है. इस तरह से जो वृक्ष बनता है वह काफी रोचक है. इसके एक सिरे पर अगर जानवर और फफूंद हैं तो दूसरे सिरे पर पेड़-पौधे. यह 20 लाख शाखाओं वाले एक वृक्ष की तरह है. जानकारों के मुताबिक, अगर प्रजातियों के बीच के गुमशुदा संबंध को स्थापित किया जा सके तो समुदायों की हमारी जानकारी काफी बेहतर हो जायेगी.
कल्पना ही रही है अभी तक
अभी हाल तक एक संपूर्ण जीवन-वृक्ष (ट्री ऑफ लाइफ) सिर्फ कल्पनाओं की ही बात रही है. प्रजातियां किस तरह एक-दूसरे से संबंधित हैं इसे बतलाने के लिए वैज्ञानिक हर उस संभव संबंध की पड़ताल करते हैं, जिससे प्रजातियां जुड़ी हो सकती हैं. लेकिन इस प्रक्रिया में एक प्रजाति के जुड़ने से जीवन वृक्ष की संख्या में विस्फोट हो जाता है.
वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए एक कंप्यूटर प्रोग्राम विकसित किया है, जो प्रजातियों के बीच संबंधों की पहचान करता है, वह भी उनकी क्रम व्यवस्था को बिना बदले. इस तरह के कंप्यूटर अब लाखों प्रजातियों का विश्लेषण एक समय में ही कर सकते हैं. हालांकि, अभी तक इन अध्ययनों से जीवन वृक्ष के बहुत ही कम भाग के बारे में पता चल पाया है. और किसी ने भी इन नतीजों का एक-साथ अध्ययन करने की कोशिश नहीं की है. पिछले साल नेशनल साइंस फाउंडेशन की बैठक में एकल जीवन वृक्ष की योजना की चर्चा की गयी. पिछले महीने 17 मई को अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन ने इस परियोजना पर काम करने के लिए तीन वर्षों के लिए 57 लाख डॉलर की राशि मंजूर की.
परियोजना का लक्ष्य
इस परियोजना (ओपन ट्री ऑफ लाइफ)का पहला लक्ष्य अगस्त 2013 तक एक मसौदा तैयार करना है. इसके लिए की सामग्री उपलब्ध कराने के लिए वैज्ञानिक ऑनलाइन रूप से आर्काइव किये गये लाखों ऐसे छोटे-छोटे वृक्ष इकट्ठा करेंगे. इसके बाद इन छोटे वृक्ष को एक ब.डे वृक्ष से जोड़ा जायेगा. ये वृक्ष पृथ्वी पर मौजूद सभी ज्ञात प्रजातियों के छोटे से हिस्से को दर्शायेगा. बाकी को लिनियन सिस्टम (जैविक वर्गीकरण का एक प्रकार) में वर्गीकृत किया जायेगा.
इस सिस्टम में प्रजाति अपने वंश को निर्दिष्ट करते हैं. यह वंश उसी प्रजाति के परिवार और फिर अपने आगे के परिवार को बतलाता है. यह क्रम इसी तरह चलता रहता है. इस सूचना का उपयोग उसे जीवन वृक्ष पर रखने में भी किया जायेगा. एक वंशकी सभी प्रजाति अवरोही क्रम में समान पूर्वज से जु.डे होंगे. लीनियन सिस्टम के माध्यम से प्रजातियों के बीच सही संबंधों का एक खाका खींचा जायेगा. उसके बाद, जीवन वृक्ष को अधिक सटीक और सही बनाने के लिए पूरे समुदाय को सूचीबद्ध किया जायेगा. वैज्ञानिक एक इंटरनेट पोर्टल स्थापित करेंगे, जहां नये अध्ययन को अपलोड किया जा सकेगा और इसका उपयोग पूरे जीवन वृक्ष को सुधारने में किया जायेगा.
कई लिहाज से है महत्वपूर्ण
हालांकि, विकासवादी जीववैज्ञानिकों के लिए काफी अरसे से यह एक महत्वपूर्ण सवाल रहा है कि कैसे विभित्र वंशावलियों में विकास अलग-अलग गति से होता है. जानकारों का कहना है कि इस जीवन वृक्ष की मदद से इसका भी पता लगाया जा सकता है.
इस जीवन वृक्ष से यह पता लगाना भी संभव हो सकता है कि किस तरह जलवायु परिवर्तन की वजह से अतीत में जीवों के विनाश की घटना घटी. साथ ही इसकी मदद से भविष्य होने वाली में इस तरह की घटनाओं का अनुमान भी लगाया जा सकता है. कई जानकारों का मानना है कि ओपन ट्री ऑफ लाइफ की मदद से वैज्ञानिक और भी कई महत्वपूर्ण सवालों का जवाब तलाश सकते हैं. ओपन ट्री ऑफ लाइफ वैज्ञानिकों को नयी दवाओं की खोज में भी मददगार साबित हो सकता है. वैज्ञानिक संक्रामक जीवाणुओं के इलाज के लिए ऐसे फफूंद की खोज कर रहे हैं, जो एंटीबायोटिक बनाता है और संक्रामक रोगों के खिलाफ प्रभावशाली होता है. उन फफूंदों के करीबी प्रजातियों की मदद से और भी अधिक प्रभावी दवाएं बनायी जा सकती है.
राह में चुनौती नहीं है कम
प्रत्येक वर्ष वैज्ञानिक 17,000 नयी प्रजातियों का विवरण प्रकाशित करते हैं. अभी तक कितनी प्रजातियों की खोज नहीं हुई है, यह भी एक बड़ा सवाल है. पिछले साल ही वैज्ञानिकों की एक टीम ने अनुमान लगाया था कि कुल प्रजातियों की संख्या 87 लाखके आसपास है. हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि यह इससे दस गुना से भी अधिक हो सकती है. जब वैज्ञानिक किसी नयी प्रजाति का विवरण प्रकाशित करते हैं तो वे इसकी करीबी प्रजातियों का पता लगाने के लिए इसकी तुलना ज्ञात प्रजातियों से करते हैं. वैज्ञानिक इस नयी सूचना को ओपन ट्री ऑफ लाइफ में भी अपलोड करेंगे. सबसे अधिक परिचित प्रजातियों (जीव और वनस्पति) को इस वृक्ष में बहुत कम जगह ही दी जायेगी. जानकारों का कहना है कि ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि पृथ्वी पर सबसे अधिक जैव विविधता सूक्ष्मजीवों में है. इसके अलावा सूक्ष्मजीव एक अलग तरह की चुनौती पेशकरते हैं. जीवन वृक्ष यह दर्शाता है कि किस तरह जीवों का जीन उनके वंशजों में आगे बढ.ता है. लेकिन, यह बात भी है कि ये जीव एक-दूसरे में भी जीन स्थांतरित करते हैं. इन्हें शाखा में शामिल किया जा सकता है, जिन्हें लाखों वर्षों के विकास के बाद वर्गीकृत किया गया है.
डार्विन के ट्री पर सवाल
वैज्ञानिक डार्विन के ट्री ऑफ लाइफ से संबंधित सिद्धांत पर सवाल उठाते रहे हैं. उनका मानना रहा है कि डार्विन का ट्री ऑफ लाइफ गलत और भ्रामक है. उनके मुताबिक, यह सिद्धांत भ्रामक इसलिए है, क्योंकि जीवों और उनके पूर्वजों का अध्ययन भी अधूरा है. साथ ही कुछ सीमित जानकारियों के आधार पर विकास के इस सिद्धांत की व्याख्या करना काफी जटिल है. हालांकि, कुछ शोधकर्ताओं के मुताबिक, 1953 में डीएनए की खोज (इसके खोजकर्ताओं का मानना था कि डार्विन के ट्री को साबित करने में यह मददगार साबित होगा) ने इस दिशा में नया पहलू सामने लाया. लेकिन, कुछ ऐसे शोध सामने आये जिसने जटिल स्थिति पैदा की, खासकर जीवाणुओं और एकल कोशिका वाले जीवों से संबंधित शोध ने. अब नये शोध से इन सवालों का जवाब दिया जा सकेगा.
1837 में डार्विन ने ट्री ऑफ लाइफका खाका बनाया था.
1859 में ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीसीज किताब आयी.
(ब्रिस्बेन टाइम्स से साभार)▪
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