जल संकट के मुहाने पर दुनिया
अक्सर कहा जाता है कि जल ही जीवन है. लेकिन, अब इस जल की वजह से जीवन
पर भी संकट गहराने लगा है. आज भारत के अलावा पूरी दुनिया में जंग की स्थिति
दिखने लगी है. जिस रफ्तार से हम अंधाधुंध विकास में पानी की बेतहाशा खपत
करते जा रहे हैं, उससे भू-जल स्तर से लेकर सतह जल तक में कमी आती जा रही
है. मॉनसून के दौरान औसत से कम वर्षा इस पानी संकट को और बढ.ाने का काम कर
रही है. आज देश में सूखे के हालात पैदा हो रहे हैं, तो इसकी एक मात्र वजह
मॉनसून के दौरान कम बारिश होना ही नहीं है. इसके पीछे कई और कारकों का हाथ
है. जल सकंट के विभित्र पहलुओं पर केंद्रित आज का नॉलेज..
6000 children की रोज मौत होती है, पानी से होनेवाले रोगों और गंदगी सेl |
1.1 अरब लोग वैश्विक तौर पर स्वच्छ पेय जल की पहुंच से बाहर हैं. |
05 में से एक व्यक्ति की स्वच्छ पेय जल तक पहुंच नहीं है. |
250 अरब घन मीटर तक पानी भंडारण की क्षमता है भारत की. पानी है, तो पीने योग्य नहीं भारत में नदियों की पूजा की जाती है. लेकिन, सबसे बड़ी चिंता की बात भी यही है कि हम नदियों की पूजा तो करते हैं, लेकिन उसके पानी को स्वच्छ नहीं रखते. अगर दिल्ली की ही बात करें तो 1400 किलोमीटर लंबी यमुना 600 किलोमीटर पहले ही विलुप्त हो चुकी है. ऐसा इस नदी के आसपास औद्योगिकीकरण की वजह से हुआ. उसके बाद जो पानी अभी इसका बचा है, उसकी हालत ऐसी है कि पीना तो दूर, उसका इस्तेमाल कृषि के लिए भी करना कम हानिकारक नहीं है. गंगा नदी की भी स्थिति इससे बेहतर नहीं है. कानपुर में गंगा की स्थिति लगभग वही है, जो दिल्ली में यमुना की. ये दोनों नदियों इस तरह प्रदूषित हो रही हैं कि लगभग नाली यानी गटर बन चुकी हैं. ▪दुनिया की आधी से अधिक नदियां (लगभग 500) बहुत ही बुरी तरह से प्रदूषित हो चुकी हैं या प्रदूषण के कारण विलुप्ति की कगार पर हैं. . अफ्रीका और एशिया में महिलाओं को पानी लाने के लिए औसतन छह किलोमीटर दूरी तय करनी पड़ती है. ▪विकासशील देशों में हर साल लगभग 22 लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के कारण होने वाली बीमारियों के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं. इनमें अधिकांश संख्या children की है. ▪ऐसा अनुमान है कि पूरी दुनिया में 2025 तक 5.3 अरब लोग , यानी लगभग दो-तिहाई आबादी पानी की कमी की चुनौतियों का सामना करने वाले हैं. ▪ पृथ्वी की सतह पर 71 फीसदी पानी है. लेकिन, सिर्फ 2.5 फीसदी ही लवणयुक्त पानी है. ▪ पृथ्वी पर उपलब्ध जल का 0.08 प्रतिशत पानी ही मानवों के इस्तेमाल के लायक है. कृषि के लिए हम 70 फीसदी पानी का उपयोग करते हैं, लेकिन 2020 तक हमें 17 फीसदी और अधिक पानी की आवश्यकता होगी. पानी के संकट पर बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान पिछले दिनों छोटे परदे पर अपने मशहूर कार्यक्रम सत्यमेव जयते पर बात करते दिखे. भारत के विभित्र इलाकों में पानी की कमी के बारे में जानकारी देने के बाद वह दर्शकों में शामिल एक लड़की से सवाल करते हैं, हमारे दैनिक इस्तेमाल के लिए पानी कहां से आता है? जवाब बेहद ही आश्चर्यजनक था. उसने बेहद ही मासूमियत से जवाब दिया पानी नल से आता है. इसके बाद शो पर मौजूद सभी लोग हंस प.डे, लेकिन लोगों की यह हंसी पलक झपकते ही बंद हो गयी, क्योंकि उसके बाद कार्यक्रम में पानी के संकट से जूझ रहे लोगों की जो दुर्दशा दिखायी गयी, उससे सभी हैरान थे. महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली और देशके विभित्र हिस्सों में तेजी से घटते जल स्रोत के आंक.डे दिखाने के बाद माहौल उस वक्त गमगीन हो गया, जब आमिर ने यह बताया किया कि पानी के लिए संघर्ष में ही 14 वर्षीय सुनील की हत्या कर दी गयी. पानी के लिए झड़प और हत्या का यह कोई पहला मामला नहीं है. पानी के लिए जंग इस कदर बढ.ती जा रही है कि साल 2010 में इंदौर की 18 वर्षीय पूनम यादव को उसके पड़ोसी ने सिर्फ इसलिए चाकू घोंपकर मार डाला, क्योंकि उसने अपने घर के नल से पानी देने से मना कर दिया था. इन उदाहरणों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पानी की चुनौती किस तरह बढ.ती जा रही है. और इस साल कमजोर मॉनसून ने भारत के जलाशयों में पानी कम होने के खतरे की घंटी पहले ही बजा दी है. ऐसा सूखा साल 2009 में देखा गया था. कमजोर मॉनसून का असर फसलों पर तो पड़ना निश्चित है. इससे पीने के पानी का संकट भी सामने आने लगा है. यह एक संकटपूर्ण स्थिति है, क्योंकि इस बार भी मॉनसून देशके एक-तिहाई हिस्से में ही सामान्य रहा है. इस मौसम में 22 फीसदी बारिश में कमी देखी गयी, लेकिन कृषि के लिहाज से महत्वपूर्ण उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा सामान्य से 40 पीसदी तक कम हुई. भारत के 84 महत्वपूर्ण जलाशय सिर्फ 19 फीसदी तक ही भर पाये. यह पिछले साल की अपेक्षा 41 फीसदी कम है. देश के जलाशयों की यही स्थिति 2009 में हुई थी, जब भारत ने पिछले कई वर्षों का सबसे भयंकर सूख्रा देखा. इसका नकारात्मक प्रभाव कृषि पर पड़ना निश्चित है. यह प्रभाव सिर्फ खरीफ हर नहीं रबी फसलों पर भी प.डेगा, क्योंकि उसकी सिंचाई के लिए जलाशयों में पानी ही नहीं होगा. गौरतलब है कि धरती के 70 फीसदी हिस्से पर पानी होने के बाद भी उसका सिर्फ एक फीसदी हिस्सा ही इंसानी हक में है. नतीजतन स्थिति यह है कि जलस्रोत तेजी से सूख रहे हैं. भारत ही नहीं, समूचे एशिया में यही स्थिति है, क्योंकि इस महाद्वीप में दुनिया की 60 फीसदी आबादी महज 36 फीसदी जल संसाधनों पर निर्भर है. बाकी सभी महाद्वीपों में जल संसाधनों के मुकाबले आबादी का अनुपात कहीं कम है. आने वाले एक दशक में उद्योगों के लिए पानी की जरूरत 23 फीसदी के आसपास होगी. तब खेती के लिए पानी के हिस्से में कटौती करने की जरूरत प.डेगी, क्योंकि तेजी से बढ. रहे शहरीकरण के चलते गांवों के मुकाबले शहरों को पानी की दरकार कहीं ज्यादा होगी. एक अनुमान के मुताबिक, 2025 तक देश की 55 फीसदी आबादी शहरों में बसेगी, मतलब पानी की बर्बादी अभी से कहीं ज्यादा होगी. सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि देश में उपलब्ध जल संसाधनों के उपयोग में सालाना 5-10 प्रतिशत ही बढ.ोतरी हो सकी है, जबकि मौसमी बदलाव के चलते इससे दोगुनी मात्रा में जल संरचनाएं नष्ट हो रही हैं. खराब मॉनसून के कारण समस्या मौसमी बदलाव के कारण मॉनसून के दौरान कम वर्षा से सूखे की स्थिति उत्पत्र होती है. गौरतलब है कि सूखा पड़ना कोई आश्चर्यजनक घटनाक्रम नहीं, बल्कि एक सामान्य घटना है जो जलवायु का एक गुण है. सूखा किसी भी जलवायु क्षेत्र में पड़ सकता है. यह कई तरह का होता है. मसलन मेट्रोलॉजिकल (जलवायविक), कृषि, और हाइड्रोलॉजिकल. जलवायविक सूखा तब पड़ता है जब औसत से कम वर्षा की अवधि काफी लंबी हो जाती है. यही जलवायविक सूखा अन्य कई प्रकार के सूखे की वजह बनता है. एक अन्य प्रकार का सूखा कृषि संबंधित कृषि. इससे फसल चक्र प्रभावित होता है. हाइड्रोलॉजिकल सूखा : यह पानी के संकट की बड़ी वजह बनता है. जब जलस्तर, झीलों और जलाशयों के पानी का स्तर औसत से कम हो जाता है, तो हाइड्रोलॉजिकल सूखा कहलाता है. इसका असर धीरे-धीरे पड़ता है, क्योंकि इसमें पानी के भंडारण वाले स्रोत शामिल होते हैं. इनका इस्तेमाल तो होता रहता है, लेकिन पानी की आपूर्ति फिर से नहीं हो पाती. इस तरह का सूखा भी सामान्य से कम वर्षा के कारण होता है. इस तरह देखा जा सकता है कि मॉनसून के दौरान सामान्य से कम वर्षा का प्रभाव सिर्फ कृषि ही नहीं, देश के जलाशयों और भू-जल स्तर पर भी पड़ता है. ये वही जलाशय हैं जहां से देश के विभित्र हिस्सों में पीने के पानी की आपूर्ति होती है. कम वर्षा से होने से जलाशयों के पानी सूखने से जलस्तर काफी नीचे चला जाता है. इससे पानी के लिए अधिक खुदाई करने पड़ती है. लेकिन, एक वक्त के बाद वह जलस्तर इतना कम हो जाता है कि उस क्षेत्र में पानी भू-जल भी समाप्त हो जाता है. उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब के अधिकांश हिस्सों की यही स्थिति है. अब हरियाणा के गुड़गांव जैसे शहरों की भी स्थिति कुछ ऐसी हो रही है. बहुराष्ट्रीय कंपनियों और चमचमाती इमारतों वाले इस शहर का भविष्य पानी की वजह से संकट में दिखता नजर आ रहा है. अमेरिका के मैनहटन के नाम से मशहूर इस शहर की 70 प्रतिशत आबादी भू-जल पर निर्भर है. लेकिन, जानकारों के मुताबिक अगले पांच साल में यहां जमीन के नीचे का पानी पूरी तरह सूख जायेगा. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसइ) का कहना है कि इस शहर की आबादी 2021 में करीब चार लाख यानी दोगुनी हो जायेगी. ऐसे में इतनी बड़ी आबादी के लिए पीने का पानी ही नहीं रह पायेगा. आज ही स्थिति ऐसी है कि लोग पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए जगह-जगह गैरकानूनी तौर पर बोरवेल खोद रहे हैं. पूरी दुनिया है त्रस्त आज पानी की यह समस्या सिर्फ भारत में ही नहीं है. पूरी दुनिया पानी के संकट का सामना कर रही है. दुनिया के कई हिस्सों में सतह जल (सरफेस वाटर) इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि उसका किसी भी काम में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. एक आंक.डे के मुताबिक, चीन का 80 फीसदी और भारत का 75 फीसदी सतह जल इतना अधिक प्रदूषित है कि वह पीने योग्य नहीं है. यहां तक कि इनका इस्तेमाल नहाने या मछली पालन तक के लिए भी नहीं किया जा सकता है. यही कहानी अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देशों की है. आज हम जमीन के अंदर का पानी निकालने के लिए शक्तिशाली तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं. हालिया वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में लाखों अवैध बोरवेल के कारण जमीन के अंदर का पानी पूरी तरह सूख चुका है. इसके अलावा शहरीकरण भी पानी की समस्या की बड़ी वजह बन कर सामने आया है. कंक्रीटों से बने शहरों में हर तरफ ईंट और सीमेंट से बनी सतहें वर्षा के दिनों में भी पानी का अवशोषण करने में असफल होती है. इससे भू-जल की आपूर्ति नहीं हो पाती. इस तरह पानी का संकट मानव सभ्यता के सामने सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर उभर रही है. |
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