Friday, April 6, 2012

समुद्र से उभरा बड़ा संकट




समुद्र से उभरा बड़ा संकट
- सी. उदयशंकर
 गत दिनों केरल के तट पर एक इटालियन पोत पर सवार सैनिकों के हाथों दो भारतीय मछुआरों की हत्या की घटना ने भारत और इटली के बीच एक बड़े राजनीतिक-कानूनी-कूटनीतिक विवाद का रूप ले लिया है। इटली का स्पष्टीकरण यह है कि उसके सैनिकों ने गलती से दोनों मछुआरों को समुद्री लुटेरे समझ लिया और संयोग से उनकी नौका का नाम सेंट एंटनी था, जो समुद्री डाकुओं की भी नौका का नाम है और इसी गफलत में यह घटना हो गई। यह घटना केरल के तट से 22 नौटिकल मील दूर हुई और इस लिहाज से यह नजर आता है कि यह समुद्र के काफी अंदर अथवा अंतरराष्ट्रीय जल में घटित हुई, न कि क्षेत्रीय सीमा के भीतर, जो आम तौर पर तट से 12 नौटिकल दूर तक का इलाका होता है। तकनीकी रूप से कहें तो इस घटना के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय जल वाला कानून लागू होगा और इसके तहत जिस देश का झंडा लगा हुआ है उसमें मामला चलाया जाएगा। इस मामले में इटली सवालों के घेरे में है, क्योंकि जिस जहाज से इस घटना को अंजाम दिया गया वह इटली के व्यावसायिक पोत के रूप में दर्ज है। दूसरी ओर भारतीय दंड संहिता यानी आइपीसी के अनुसार किसी भारतीय नागरिक के खिलाफ किए गए किसी अपराध अथवा हमले के मामले में मुकदमा भारत में चलाया जाएगा और यदि ऐसी किसी घटना में किसी भारतीय की जान चली गई हो अथवा उसकी हत्या कर दी गई हो तो संबंधित निकाय कानून भी लागू किए जाएंगे, जैसा कि इस मामले में है। क्या भारतीय मछुआरों की हत्या महज एक दुर्घटना थी? अथवा क्या इटली के सशस्त्र सैनिकों ने बिना किसी उकसावे के आनन-फानन में भारतीय मछुआरों को मार डाला। ऐसे ही न जाने कितने जटिल सवाल इस मामले की गहन जांच-पड़ताल के क्रम में उठेंगे। अगर इटली की सरकार अपनी इस दलील पर कायम रहती है कि उसके सैनिकों ने भारतीय मछुआरों को समुद्री लुटेरे समझ लिया था तो उन्हें यह भी साबित करना होगा कि भारतीयों ने उसके पोत पर हमले की कोशिश की। इस मामले की तह तक तभी पहुंचा जा सकता है जब बैलिस्टिक सबूतों की जांच-पड़ताल हो और दोनों पोत पर गोलियों के निशान जांचे जाएं, इटालियन पोत की लाग बुक के विवरण भी महत्वपूर्ण होंगे। फिलहाल इटली के दोनों सैनिक कोच्चि में हिरासत में रखे गए हैं। इटली के विदेश मंत्री फ्रांको फ्राटिनी मंगलवार को नई दिल्ली पहुंच रहे हैं ताकि इस मामले को उचित तरीके से हल किया जा सके। दुखद सच्चाई यह है कि चाहे यह घटना महज एक दुर्घटना हो अथवा इसे जानबूझकर अंजाम दिया गया हो, दो निर्दोष भारतीय मछुआरों ने तो अपनी जिंदगी गंवा ही दी। अब इस मामले में न्याय की दरकार है, न कि किसी बदले की कार्रवाई की। सबसे बड़ा फैसला तो इस संदर्भ में होना है कि मुकदमे की कार्रवाई किस देश में चलाई जाए-भारत में या इटली में? यह मामला इसलिए जटिल बन गया है, क्योंकि मछुआरों की हत्या करने वाले इटली के गार्ड अपने देश की सेना के सदस्य हैं, न कि निजी सुरक्षा गार्ड। सबसे अधिक आवश्यकता इस बात की है कि इस मामले को इतना अधिक न बढ़ने दिया जाए जिससे दोनों देशों के आपसी संबंधों पर आंच आने लगे। स्पष्ट है कि भारत और इटली को मिलकर इसे सही तरह हल करना होगा, लेकिन न्याय हर कीमत पर होना चाहिए। प्रथम दृष्ट्या इटली का यह दावा कमजोर नजर आता है कि उसके सैनिकों ने समुद्री लुटेरों के धोखे में भारतीय मछुआरों पर गोली चला दी, क्योंकि जिस इलाके में यह घटना घटित हुई उसे समुद्री लुटेरों से प्रभावित जल क्षेत्र नहीं माना जाता। फिर इटली के पोत पर सवार सैनिकों ने यह कैसे मान लिया कि उन पर समुद्री लुटेरों का हमला होने वाला है। उनसे यह सवाल भी पूछा जाएगा कि अगर उन्हें यह भ्रम भी हो गया था तो उन्होंने कथित समुद्री लुटेरों से बचने के लिए क्या किया? क्या स्थानीय तटरक्षक जहाजों को चेतावनी का संकेत भेजा गया? जांच के दौरान ऐसे सभी सवालों का जवाब अवश्य सामने आना चाहिए। यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इटली के पोत ने इस घटना के बाद भागने की कोशिश नहीं की और जब उसे निर्देश दिया गया तो वह भारतीय जल क्षेत्र में प्रवेश कर गया ताकि जांच का काम पूरा किया जा सके। इससे यह संकेत मिलता है कि भारतीय मछुआरों की जान लेने के बाद इटली के सैनिकों ने इस घटना को छिपाने अथवा घटनास्थल से भाग जाने की कोई कोशिश नहीं की। नि:संदेह यह भारत और इटली, दोनों के लिए अपनी तरह का पहला मामला है और इसे कानूनी तरीके से ठंडे दिमाग से हल किया जाना चाहिए। मुद्दा समुद्री लुटेरों के खतरे का भी है। इस संदर्भ में यह भी गौर करने लायक है कि चीन ने भी इस समस्या से निपटने के लिए भारत और जापान के साथ बेहतर तालमेल के साथ काम करने का संकल्प व्यक्त किया है। सोमालियाई समुद्री लुटेरों ने पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए बहुत बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। भारत के आसपास अगर ऐसी समस्या खड़ी होती है तो इससे अधिक चिंताजनक और क्या होगा-खासकर यह देखते हुए कि यह क्षेत्र पहले ही आतंकवाद और मजहबी कट्टरता के बहुत गंभीर ख्रतरे का सामना कर रहा है। हाल में इस संदर्भ में लंदन में हुए एक सम्मेलन में भारत के विदेश राज्य मंत्री ई. अहमद ने भी भाग लिया और समुद्री क्षेत्र में उभर रही चुनौती से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में व्यापक रणनीति की जरूरत पर जोर दिया। जल क्षेत्र में उभरी समस्या से निपटने का सबसे प्रभावशाली हल जमीन पर टिका है। तात्पर्य यह है कि देशों को इस समस्या का सामना करने के लिए कहीं अधिक राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी। (लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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