Friday, April 6, 2012

प्राकृतिक संपदा का दोहन



प्राकृतिक संपदा का दोहन
(रेत माफियाओं की मनमानी पर महेश परिमल के विचार )
हमारी धरती रत्नप्रसविनी है। इसे हम सभी जानते हैं, ¨कतु कुछ लोग इसे और भी अधिक अच्छी तरह से जानते हैं। इसलिए वह लगातार खनिजों का दोहन कर न केवल रुतबेदार,बल्कि बलशाली भी होने लगे हैं। कर्नाटक के रेड्डी बंधुओं के बाद अब मध्य प्रदेश भी माफियाओं की चपेट में आ गया है। रेड्डी बंधुओं ने 80 लाख टन खनिज की चोरी कर सरकार को करीब 2,800 करोड़ रुपये की कमाई की। उधर मध्य प्रदेश में रेत माफिया एवं खनिज माफिया ने कितने वर्षो में कितने की कमाई की इसका आकलन नहीं किया जा सका है। पर सच तो यह है कि ये माफिया इतने अधिक बलशाली हैं कि विरोधी स्वर को तुरंत खामोश कर देते हैं। उन्हें प्रदेश के नेताओं का वरदहस्त प्राप्त है इसलिए वे बेखौफ हैं। प्रदेश में लगातार पुलिस बल पर हमले हो रहे हैं, होली के दिन एक आला पुलिस अधिकारी की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी गई। यही नहीं इस तरह की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं। हाल में शिवपुरी में एक और मामला सामने आया है जिससे पता चलता है कि खनन माफियाओं के हाथ कितने लंबे हैं। जमीन से कीमती खनिज और नदी के किनारों से रेत की चोरी करने वाले माफिया राजनेताओं के मौन समर्थन से इतने अधिक बलशाली हो गए हैं कि किसी की हत्या करना उनके लिए अब बाएं हाथ का काम हो गया है। आइपीएस अफसर नरेंद्र कुमार सिंह की हत्या गत 8 मार्च को मुरैना जिले में कर दी गई। उसके बाद एक और आइपीएस अधिकारी पर शराब माफिया ने हमला किया। 11 मार्च को ही तमिलनाडु के तिरुनेगई जिले में अवैध रूप से ले जाई जा रही रेत के खिलाफ युवाओं की भीड़ में से एक युवा को एक ट्रक ने रौंद दिया। इस तरह से पूरे देश में रेत माफिया, जंगल माफिया और खनन माफिया का दबदबा बढ़ रहा है। खनन माफियाओं की कार्यशैली बहुत सरल होती है। वे सरकार पर अपने रसूख का उपयोग कर और नेताओं को रिश्वत देकर नदी किनारे एक छोटे से क्षेत्र में रेत खनन का लाइसेंस लेते हैं। फिर इस लाइसेंस का दुरुपयोग कर वे नदी से बेखौफ रेत का खनन करने लगते हैं। नदी से जो ट्रकें रेत भरकर बाहर जाती हैं उसमें से दस प्रतिशत ट्रकों का ही रिकॉर्ड कागजों पर होता है। बाकी ट्रकों पर अधिकारियों, नेताओं, पुलिस आदि का हिस्सा होता है। सरकारी तिजोरी में इसकी बहुत ही कम राशि आती है। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में शिवा कार्पोरेशन को नर्मदा किनारे तीन गांवों की कुल 12 हेक्टेयर जमीन पर रेत खनन की अनुमति मिली थी। किंतु ठेकेदार ने करीब 86 हेक्टेयर जमीन पर रेत का खनन शुरू कर दिया। एक कांग्रेसी नेता की मानें तो यहां अवैध रूप से रेत खनन से सरकार को हर वर्ष 700 करोड़ रुपये की हानि होती है। आखिर इन रेत माफियों को पालने वाला भी तो कोई होगा। आखिर ये किसके दम पर इतना गरजते हैं? हाल ही में गोवा में जो विधानसभा चुनाव हुए उसमें अवैध रूप से हो रहे खनिज माफिया के खिलाफ लड़ाई को ही मुख्य मुद्दा बनाया गया। गोवा की पूर्व सरकार ने खनिज माफियाओं को पूरी छूट दे रखी थी, इसीलिए वहां 7 हजार करोड़ रुपये का घोटाला हुआ। यह आरोप भाजपा ने लगाया था। इसी आरोप को सामने रखकर भाजपा ने वहां जीत भी हासिल की। गोवा की तरह कर्नाटक के बेल्लारी जिले में अवैध रूप से खनन करने वाले रेड्डी बंधुओं को समर्थन दिए जाने के कारण येद्दयुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। कर्नाटक की तरह आंध्र प्रदेश में वहां की सरकार पर खनिज माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण देने का आरोप लगाया जा रहा है। चूंकि वहां सरकार कांग्रेस की है इसलिए इसकी जांच नहीं हो रही है। पंजाब में अकाली दल-भाजपा सरकार ने रेत की नीलामी में पारदर्शिता लाने के लिए ई-ऑक्शन की परंपरा शुरू की है पर इसमें भी रेत माफियाओं ने मैदान मार लिया। कुल मिलाकर स्थिति काफी खराब है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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