जीवन को जाग्रत करता है महामंत्र ओम
ओम का बारंबार उच्चरण हमारे लिए कई प्रकार से सहायक होता हैं। बीमारियों को भगाने के अलावा हमारे आसपास के वातवरण को रमणीय बनाने एवं जीवन में खुशहाली लाने के लिए भी इसका जाप एवं ध्यान उपयोगी हैं। कई शोधों में यह पाया गया कि पुराणों और वेदों में आने वाले ओम मंत्र का उच्चरण शरीर के विभिन्न अंगों को स्पंदित करता है और शरीर में नई उर्जा विकसित करता है।
प्रणव मंत्र, यानी ओमकार सृष्टि के आरंभ में सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ एकाक्षर मंत्र है। प्र अर्थात प्रकृति से उत्पन्न संसार रूपी महासागर तथा प्रणव इसे पार करने के लिए (णव/नव) नाव के समान है। इसलिए ओमकार को प्रणव कहते हैं। शिवपुराण में प्रणव: साधकों के लिए कहा गया है- प्र- प्रपंच, ण- नहीं है, व:- तेरे लिए। इस भाव से भी इसका जाप ओम के रूप में किया जाता है। इसी प्रणव: को दूसरे भाव में- प्र- प्रकर्षेण, न- नयेत, व:- युष्मान मोक्षम् इति वा प्रणव:, अर्थात इसके जाप करने वालों को, साधकों को मैं बलपूर्वक मोक्ष तक पंहुचा दूंगा।
प्र- कर्मक्षयपूर्वक, णव (नव)- नूतन ज्ञान देने वाला- अपने जाप करने वाले उपासक के समस्त कर्मो का नाश कर, उन्हें नवीन ज्ञान प्रदान करने वाला होता है। प्रणव के दो भेद होते हैं- स्थूल और सूक्ष्म। इनमें से जो एकाक्षर रूप ओम है वह सूक्ष्म रूप है। इसके जाप से शरीर के भीतर के आंतरिक अंगांे पर विभिन्न-विभिन्न रूप से दबाव पड़ता है। इसका जाप शरीर के भीतर व्याप्त कई रोगों को मिटाने की क्षमता रखता है तथा नए रोगों को उत्पन्न नहीं होने देता।
कैसे करें उच्चरण
पांच अवयव- ‘अ’ से अकार, ‘उ’ से उकार एवं ‘म’ से मकार, ‘नाद’ और ‘बिंदु’ इन पांचों को मिलाकर ‘ओम’ एकाक्षरी मंत्र बनता है।
आराम की अवस्था में बैठकर तर्जनी उंगली को अंगूठे पर लगाकर ज्ञान मुद्रा बना लें। उसके बाद पेड़ू से अ, ह्रदय से उ एवं नाक से म को नाद और बिंदु की ध्वनि सहित उच्चरित करें। श्वास को सामान्य बनाए रखें। ओम का यह उच्चरण आत्मविश्वास में वृद्धि करेगा। मस्तिष्क में आने वाले नकारात्मक विचारों को दूर कर, सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है। शरीर के तंत्र सुचारु होकर ठीक ढंग से कार्य करते हैं तथा रक्त का संचार एक समान होता हैं, जिससे ब्लड प्रेशर एवं ह्रदय संबधी रोगों में लाभ होता है।
विद्या-बुद्धि की प्राप्ति
जिसकी स्मरण शक्ति कमजोर हो, पढ़ाई मंे कमजोर विद्यार्थी और अधिक दिमाग और बोलचाल का काम करने वाले व्यक्तियों के लिए यह सर्वोत्तम उपासना है। प्रात:काल पूर्व दिशा की ओर मुंह कर, ज्ञान मुद्रा में बैठ जाएं तथा अधखुली आंखों से केसरी रंग के महामंत्र ऊं का ध्यान अपनी दोनों भौहों के बीच में करें।
कम से कम 108 बार इसी विधि से ओम का उच्चरण करें। इस उपासना से बुद्धि का विकास होता है, वाणी प्रखर होती है, ओजस्विता आती है। जाप के बाद आंखों को धीरे से बंद कर, अपनी हथेलियों को रगड़कर समस्त अंग पर लगाने से अंग पुष्ट होते हैं एवं शरीर में कांति आती है।
धन की वृद्धि
जिसके यहां धन का अभाव हो, ऋण की अधिकता हो, दरिद्रता, व्यापार में हानि से परेशान हांे, धन रुकता नहीं हो तथा कोई भी कार्य करने में बाधा आती हो, उन्हें पीले वस्त्र धारणकर, पीले आसन पर बैठ पीले रंग के ऊं का ध्यान करना चाहिए। यह कार्य आप दिनभर में कभी भी कर सकते हैं, किंतु सूर्योदय या सूर्यास्त के समय किया जाए, तो ज्यादा लाभकारी होता है। जाप के तत्काल बाद गर्म पदार्थो का सेवन नहीं करें। प्रतिदिन पंद्रह मिनट तक यह ध्यान, जाप करने से दरिद्रता और कामों में आने वाली बाधाएं दूर होने लगती हैं।
वाद-विवादों से मुक्ति
यदि कानूनी विवाद में पड़े हों। प्रयास के बाद भी हल नहीं हो रहा हो, तो सूर्योदय से पहले सीधी हथेली बायीं हथेली पर रख, पद्मासन में बैठ जाएं। नीले रंग के ओम का ध्यान अपनी भौंहों के बीच करें। कुछ दिनों में आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा पैदा होगी तथा होरा का निर्माण होगा। इसके बाद आप किसी भी कार्य के लिए जाएंगे, तो वहां के अधिकारी एवं विरोधी आपकी बातों का सम्मान करेंगे तथा आपके सभी कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाएंगे और विवादों का अंत होगा।
रिश्तों में मधुरता
परिवार में विवाद होता हो। पति-पत्नी में सांमजस्य नहीं हो या बच्चों के साथ तनाव रहता हो, तो प्रतिदिन पंद्रह मिनट पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर, सफेद रंग के ओम प्रणव मंत्र का ध्यान से जाप करें। पीपल का वृक्ष संभव नहीं हो, तो घर में ही किसी एकांत स्थान में बैठकर भी कर सकते हैं। आंखें अधखुली हों, दोनों अनामिका उंगलियों को अंगूठे के मूल में लगाएं। ऐसा करने सें मन में शांति होगी। क्रोध खत्म होने से पारिवारिक विवादों का अंत होगा। शनिवार का जाप विशेष फलदायक।
रोग निवारण
यदि किसी रोग से परेशान हंै, तो ओम महामंत्र का जाप करें। कुछ ही क्षणों में राहत होगी। मरीज लेटे हुए भी जाप कर सकता है। सर्दीजनित रोग में लाल रंग, वात रोग में सफेद, पित्त रोग में पीले, चोट अथवा घाव में नीले, घुटनों या जोड़ों के दर्द, नसों की समस्या, बुखार, कफ, जकड़न आदि की शिकायत में नीले रंग के ओम का आंख बंद कर, अपनी भौंहों के बीच ध्यान करना लाभकारी होता है। मुंहासे या किसी चर्म रोग की स्थिति में अनामिका उंगली एव अंगूठे के अग्रभाग को मिलाकर आराम से बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटने पर रखकर, सफेद रंग के ओम का ध्यान अपने ह्रदय के मध्य में करें। प्रतिदिन पांच से लेकर पंद्रह मिनट तक इसे करने की कोशिश करें। यह ध्यान एवं जाप आपकी त्वचा को चमकीला एवं कोमल बनाएगा।
No comments:
Post a Comment