नयी प्रजातियों की खोज की कहानी
(दुनिया में जीवों की कुल कितनी प्रजातियां हैं, इस मुद्दे पर वैज्ञानिकों के बीच मतभेद हैं हालांकि, पिछले दिनों प्रजातियों की गणना के बाद कहा गया कि पृथ्वी पर जीव-जंतुओं की 87 लाख प्रजातियां हैं दुनिया के सभी हिस्सों में नयी प्रजातियों को खोजने का काम जारी है नयी प्रजातियों की खोज कैसे की जाती है, खोज के बाद कैसे उन्हें वगीत्र्कृत किया जाता है और क्या हैं इस खोज के फायदे, इन्हीं पहलुओं की पड़ताल करता आज का नॉलेज)
आखिर क्या है महत्व ?
नयी जीवों की खोज एवं उनके संरषाण का पहला महत्व तो पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाये रखने के लिहाज से है पारिस्थितिकी तंत्र बहुत सी ऐसी सूक्ष्म सेवाएं हमें देता है, जिन्हें हम जान भी नहीं पाते जैसे, जीवाणुा एवं मिट्टी के जीव कूड़े-कचरे को अपघटित कर उवर भूमि बनाते हैं पौधों में परागण क्रिया में सहायक मधुमक्खी और अन्य जीव यह सुनिश्चित करते हैं कि साल-दर-साल हमारी फसलें अंकुरित हो सकने वाले बीज पैदा करती रहें अन्य जीव जैसे, लेडीबग और म़ेढक फसलों के कीटाणुओं को अपना भोजन बनाते हैं इस तरह फसलों के लिए हानिकरक कीटों को सीमित रखने में सहायक होते हैं इतना ही नहीं, पयावरण में बदलाव के बारे में जानकारी पाने के लिहाज से म़ेढकों से बड़ा कोइ संकेतक उपलब्ध नहीं यह हमें पयावरण के प्रदूषण के बारे में भी जानकारी देता है अगर किसी जीव की प्रजाति विलुप्त होती है, तो यह पयावरण संतुलन के लिए खतरा बन जाती है जैव विविधता पर संकट मानव अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है हमें अभी अपने पारिस्थितिक तंत्र के बारे में काफी कम जानकारी है और हर रोज जितनी प्रजातियों का पता चल रहा है, उससे कहीं ह्लयादा प्रजातियां हर रोज विलुप्त हो रही हैं दरअसल कुछ वैज्ञानिकों ने मौजूदा दौर को व्यापक स्तर पर प्रजाति विलुप्ति का समय भी कहा हैनयी प्रजातियों की खोज इस दृष्टि से काफी महत्वपूण है क्योंकि यह हमारी पृथ्वी की जैव-विविधता की जानकारी के लिहाज से काफी जरूरी है अगर सीधे तौर पर इंसानी फायदे की बात की जाये तो यह बात ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आज हमारे पास मौजूदा कइ मौजूद दवाइयां बायो टेकAोलॉजी से बने हैं, जिनके निमाण में जीव-जंतुओं के बारे में हमारी जानकारी ने मदद की है धरती की हर प्रजाति हमारे लिए महत्वपूण है उसके बारे में पता लगाना और उसे बचाना बेहद जरूरी हैl
दुनिया में हर दिन किसी-न-किसी नयी प्रजाति की खोज हो रही है यानी जीव-जंतुओं के बारे में हमारी जानकारी में लगातार इजाफा हो रहा है पिछले दिनों प्रकाशित हुए जैविक गणना में यह अनुमान लगाया गया था कि जीव-जंतुओं की करीब 87 लाख प्रजातियां हैं इसमें भी 22 लाखप्रजातियां जलचर, बाकी जमीन पर रहने वाली प्रजातियां हैं इसके अलावा हर रोज नयी प्रजातियों की खोज जारी है अभी हाल में भारतीय शोधकता एसडी बीजू ने उभयचर प्राणी यानी एंफीबियंस की सबसे रहस्यमय प्रजाति, केसिलियंस की नयी फैमिली की खोज भारत के उत्तर-पूवी राह्लयों में की यह नया जीव देखने में कीड़े की तरह है और जंगल की मिट्टी में रहता है जीवों की अलग-अलग प्रजातियों को खोजने का काम लगातार चलता रहता है केसिलियंस की इस खोज में पांच साल से भी ह्लयादा का समय लगा और उत्तर पूव के सभी राह्लयों में लगभग 250 जगहों पर मिट्टी खोदने के बाद इनका पता चला भारत में जीवों की नयी प्रजातियों की खोज के मुख्य अगुआ एसडी बीजू हैं म़ेढकों की विभित्र प्रजातियों की खोज के कारण उन्हें फ्रॉगमैन के नाम से भी जाना जाता है चलिए हम ले चलते हैं आपको प्रजातियों की खोज की दुनिया में
हाल में हुइ नयी प्रजातियों की खोज
बारिशके दिनों में म़ेढकों की संख्या काफी ब़ढ जाती है अपने घर के बाहर या फिर पानी वाले जगहों पर उसे टर-टर की आवाज लगाते देखा भी होगा लेकिन, क्या आप जानते हैं कुछ म़ेढक ऐसे भी होते हैं, जो रात के समय अधिक सक्रिय रहते हैं दरअसल, पिछले दिनों भारत के पश्चिमी घाटों के जंगलों में 20 साल की खोजबीन के बाद रात में सक्रिय रहने वाले म़ेढकों की 12 प्रजातियों का पता लगाया गया इसके अलावा तीन ऐसी प्रजातियों का भी पता चला, जिन्हें दस या बीस नहीं बल्कि 75 वर्षो से नहीं देखा गया यह म़ेढकों की उन प्राचीन प्रजातियों से संबंधित हैं, जो उस वक्त से पृथ्वी पर हैं जब यहां डायनासोर पाये जाते थे
ऑस्टेलिया के पास समुद्री सांप की खोज
इसके अलावा कापेन्टिया की खाड़ी में समुद्री सांप की एक नयी प्रजाति को खोजा गया है वैज्ञानिकों ने अजीब तरह की केंचुली वाले इस सांप का नाम हाइडोफिस डोलान्लडी रखा है आम भाषा में इसे रफ स्केल्ड सी स्नेक के नाम से जाना जायेगा इस सांप को खोजने वाले दल का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर ब्रायन फ्राइ ने ने इसकी खोज के बाद बताया था कि अभी तक इसे इसलिए नहीं खोजा जा सका था क्योंकि यह खाड़ी के इलाके में रहता है यह ऐसा इलाका है, जहां आमतौर पर कोइ सवेषाण ठीक से नहीं किया जाता या नहीं हो पाता है उन्होंने बताया कि हमने एक ही रात में 200 ऐसे सांपों को देखा हालांकि, उन्होंने इस बात पर चिंता जतायी कि आजकल समुद्री सांपो की संख्या लगातार कम होती जा रही है
अंटाकटिका में है लॉस्ट वल्ड
नयी जीवों की खोज में अगली सफलता अंटाकटिका में मिली, जहां समुद्र से 8000 फुट की गहराइ में केकड़े की नयी प्रजातियां मिली हैं जीव विज्ञानियों के मुताबिक, अंटाकटिका के समुद्र की गहराइयों में जीव जंतुओं ने अपनी पूरी दुनिया बसा रखी है इसे लॉस्ट वल्ड का नाम दिया गया इस नयी दुनिया में सबसे ह्लयादा संख्या में 16 सेंटीमीटर आकार वाले केकड़े पाये गये हैं और इन्हें येती क्रैब का नाम दिया गया वैज्ञानिकों के मुताबिक, इनकी संख्या लगभग 600 है
दूसरे केकड़ों से इनकी पहचान इस मायने में अलग है कि इनकी छाती पर बाल हैं इन गहराइयों में कुछ ऐसी ओझल प्रजातियों का भी पता चला है जो गम, अंधेरे माहौल में रहते हैं यूनिवसिटी ऑफ ऑक्सफोड, नेशनल ओशेनोग्राफी सेंटर और ब्रिटिश अंटाकटिक सवे के वैज्ञानिकों ने केकड़ा, स्टारफिश, सीप, समुद्री रत्नह्लयोति और ऑक्टोपस की ऐसी प्रजातियां खोजी हैं जो विज्ञान के लिए बिल्कुल नयी हैं अनुसंधानकताओं द्वारा खोजी गयी सबसे सुंदर और अनोखी प्रजाति ऑक्टोपस की है इसके अलावा एक सात पैरों वाली स्टारफिश भी मिली है
कैसे की यह खोज
जीव विज्ञानियों ने पहली बार रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल (आरओवी) की मदद से महासागर के नीचे पूवी स्कोशिया रिज की छानबीन की पूवी स्कोशिया रिज के कुछ इलाकों में गम जल के सुराख हैं, जहां का तापमान 382 डिग्ग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है वहां सूय की रोशनी तक नहीं पहुंचती और कुछ खास किस्म के रसायन खूब पाये जाते हैं इन्हीं पूवी स्कोशिया रिज के कुछ इलाकों में केकड़े की एक नयी प्रजाति मिली यह प्रजातियां समुद्र के अंदर बने ह्लवालामुखियों की वजह से खुद को जीवित रख पाने में सषाम रही हैं ह्लवालामुखियों की वजह से वहां का तापमान ब़ढकर 380 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है इन जगहों पर ह्लवालामुखियों की वजह से काला धुंआ निकलता रहता है, जो इन जीवों के लिए प्राणदायी हैं सूरज की रोशनी से हजारों फीट नीचे इसी काले धुएं में मौजूद रसायनों की वजह से इन्हें ऊजा मिलती है और ये प्रजातियां जिंदा रहती हैंl
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क्यों और कैसे होता है वगीत्र्करण
प्रजातियों की प्रकृति एवं विशेषता को समझने के लिए वगीत्र्कृत किया जाता है
क्रमबद्ध प्रणाली- वनस्पतियों और जीवों को वगीत्र्कृत करने की क्रमबद्ध प्रणाली स्वीडन के जीवविज्ञानी कैरोलस लिनियस के विचारों पर आधारित थी आगे चलकर इसमें कुछ सुधार किये गये और आज भी इसे अपनाया जा रहा है लिनियस ने 1735 में इससे संबंधित अपने विचार स्पष्ट किये थे इसके तहत, उन्होंने हर चीज को प्राणी, वनस्पति एवं खनिज में बांटा
द्विनामी पद्धति- यह पद्धति भी लिनियस की ही देन है इसके अंतगत प्रत्येक प्रजाति की पहचान दो शब्दों के नाम से की गयी पहला नाम वंश का और दूसरा प्रजाति का विशिष्ट नाम उदाहरण के लिए, मानव का वंश होमो है जबकि उसका विशिष्ट नाम सेपियंस है तो इस तरह मानव का द्विपद या वैज्ञानिक नाम होमोसेपियंस है रोमन लिपि मे लिखते समय दोनो नामों में से वंश के नाम का पहला अषार बड़ा होता है, जबकि विशिष्ट नाम का पहला अषार छोटा ही होता है जैसे, टायरेनोसॉरस रैक्स, इसमें टायरेनोसॉरस वंश का नाम है जबकि रैक्स विशिष्ट या जातिगत नाम इस प्रणाली को 1758 तक पूरी दुनिया में अपना लिया गया और यह आज भी मान्य है
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