Saturday, March 3, 2012

ई-कचरे के खतरे



 ई-कचरे के खतरे
(भारत में बढ़ते ई-कचरे की समस्या पर डॉ. महेश परिमल के विचार)
घरों से लेकर कार्यालयों तक में ई- कचरे की भरमार है। जब से अधिकांश काम बिजली पर निर्भर हो गए हैं तब से नए-नए गैजेट्स बाजार में आ रहे हैं। नई चीजें आने के कारण पुरानी चीजें कबाड़ में जा रही हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स की न जाने कितनी चीजें कुछ दिनों बाद ही आउटडेटेड हो जाती हैं। ये सभी चीजें आखिरकार कबाड़ बन जाती हैं। इन सबसे देश में इलेक्ट्रॉनिक्स कचरों की भरमार हो रही है। पहले यह समस्या नहीं के बराबर थी पर जब से लोग इलेक्ट्रॉनिक्स चीजों पर निर्भर होने लगे हैं तब से ई-कचरे की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। पश्चिमी देशों में जहां इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का अधिक इस्तेमाल होता है, वहां उनके रिसाइकिलिंग की भी व्यवस्था है। इसके लिए विशेष रूप से योजना बनाई जाती है और उपकरण भी तैयार किए जाते हैं। जैसे कागज का कचरा, भोजन का कचरा और इलेक्ट्रॉनिक कचरा। इसमें मेडिकल कचरे के निकास के लिए विशेष प्रकार की व्यवस्था की गई है। ई-कचरा से खराब होने वाली जमीन को ठीक नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे जमीनें बंजर हो जाती हैं। 2005 में ई-कचरा 4 लाख मीटि़्रक टन था जो अब बढ़कर 8 लाख मीट्रिक टन पहंुच गया है। भारत में अधिकृत ई-कचरा रिसाइकिलर्स की संख्या 47 है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में समुद्री मार्ग से ई-कचरा आ रहा हैं जिसे भारत में खपाया जा रहा है। ये चीजें वैसे तो सेकंडहैंड चीजों के रूप में बेचने के लिए इस्तेमाल में लाई जाती हैं, लेकिन ये अंतत: कबाड़ में ही जाती हैं। दिल्ली में पुरानी चीजों या कम उपयोग में लाई गई चीजों का अलग बाजार है, जहां आधी कीमत पर कंप्यूटर और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामान आसानी से मिलते हैं। जब से भारत में इलेक्ट्रॉनिक प्रतिस्पर्धा बढ़ा है और बिना ब्याज के किस्तों में चीजें मिलने लगी हैं तब से सेकंडहैंड चीजें कोई इस्तेमाल नहीं करना चाहता। दूसरी तरफ नई तकनीक की चीजें और नए गैजेट्स के आने से सेकंडहेंड चीजों का बाजार की खत्म होने लगा है। अतएव विदेशी जहाजों से आने वाली चीजें कुछ समय बाद ही कबाड़ का रूप ले लेती हें। वैसे भी हमारे देश में यह कहावत प्रचलित है कि सस्ती चीजें कबाड़ के भाव में बेची जाती हैं। गांवों में आज भी कचरे को गड्ढे में डालने का रिवाज है। इससे खाद बनता है, जो खेतों में काम आती है पर इस कचरे में प्लास्टिक नहीं होता। जब से गांवों में इलेक्ट्रॉनिक की चीजें आने लगी हैं तब से कचरे में यह भी शामिल हो गई हैं जिससे गांवों में ई-कचरे का खतरा बढ़ रहा है। यदि कचरे में प्लास्टिक, बिजली के तार आदि शामिल कर दिए जाएं तो वह खाद के रूप में नहीं बदलता। इस तरह की चीजों से बनने वाली खाद फसल के लिए भी हानिकारक साबित होती है। इलेक्ट्रॉनिक कचरे की रिसाइकिलिंग के लिए हमारी सरकार अभी तक सचेत नहीं हुई है। जिस तरह से नगरपालिका निगम मेडिकल कचरे के लिए सचेत है, उसी तरह ई- कचरे के लिए भी सचेत होने की आवश्यकता है। वैसे यदि रिसाइकिलिंग की दिशा में गंभीरता से किया जाए तो यह फायदे का सौदा साबित हो सकता है। कंप्यूटर के प्रिंटेड सर्किट बोर्ड में सोना होता है जिसे निकालकर लाभ कमाया जा सकता है। दो लाख पीसीबी से करीब 180 ग्राम सोना निकाला जा सकता है। यूनियन कार्बाइड का उदाहरण हमारे सामने है। उसका नाम अब भले ही बदल गया हो पर उसका मलबा अभी भी जमीन के अंदर जा रहा है और जलस्रोतों को प्रदूषित कर रहा है। पर्यावरणविदों ने सरकार का ध्यान कई बार इस दिशा में आकृष्ट किया है। आज भी भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में रासायनिक कचरों का ढेर लगा है। पिछले 27 सालों में यह कचरा जमीन के भीतर तक पहुंच गया है। यह धरती को तो बंजर करने के अलावा जलस्रोतों को भी प्रदूषित कर रहा है। भविष्य में ऐसे हालात ई-कचरे से भी पैदा होने तय हैं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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