आर्थिक सुस्ती से कंपनियां बेचैन
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के पिछले दो वर्षो के न्यूनतम स्तर (6.1 फीसदी) पर चले जाने से कंपनियां हलकान है। आर्थिक सुस्ती के लिए सरकार पर नीतिगत अनिर्णय का आरोप लगाने वाले देश के प्रमुख उद्योग चैंबरों ने केंद्र से आग्रह किया है कि वह आगामी बजट का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए करे। आर्थिक सुधारों को बगैर किसी देरी के आगे बढ़ाने का फैसला होना चाहिए। फिक्की ने आशंका जताई है कि इस बार भारत की विकास दर दो वर्ष पूर्व की भयंकर वैश्विक आर्थिक संकट के समय की वृद्धि दर से भी कम रह सकती है। वर्ष 2008-09 में जब निवेश बैंक लीमन ब्रदर्स दीवालिया हुई थी, उसके बाद अमेरिका सहित दुनिया के तमाम बड़े देशों में मंदी छाई थी। तब भारत की आर्थिक विकास दर की रफ्तार 6.8 फीसदी रही थी। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीने के आंकड़े बताते हैं कि विकास दर 6.9 फीसदी पर आ गई है। अंतिम तिमाही में यह 6.5 फीसदी से भी नीचे जा सकती है। फिक्की महासचिवराजीव कुमार का कहना है कि सभी महत्वपूर्ण व ढांचागत सुधार को बगैर देरी किए आगे बढ़ाने से ही अगले वित्त वर्ष के लिए कुछ उम्मीद बंधेगी। सीआइआइ के महासचिव चंद्रजीत बनर्जी ने मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की खस्ता हालत पर सबसे ज्यादा चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि पूरी अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही थी लेकिन अब उसकी रफ्तार एक फीसदी से भी नीचे चली गई है। आज जारी हुए आंकड़े यह भी बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में नया निवेश नहीं हो रहा है। उन्होंने नई मैन्युफैक्चरिंग नीति को जमीनी तौर पर लागू करने, नई निवेश परियोजनाओं को मंजूरी देने और ब्याज दरों को घटाने की वकालत की है। एसोचैम ने कहा है कि आगे की सूरत भी कोई बढि़या नहीं दिख रही है। बढ़ता राजस्व घाटा और कच्चे तेल की आसमान छूती कीमतों की वजह से अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां और बढ़ेंगी। ऐसे में सबकी निगाह आगामी बजट की तरफ है। पीएचडी चैंबर ने कहा है कि मौजूदा हालात से अर्थव्यवस्था तभी निकलेगी जब निवेश के रास्ते की हर अड़चन को खत्म किया जाए। देश की समूची आबादी को बीपीएल से ऊपर लाने को अगले 30 सालों तक नौ फीसदी की आर्थिक वृद्धि दर चाहिए। आंकड़े बताते हैं कि अप्रत्यक्ष कर वसूली वार्षिक लक्ष्य से कम रहेगी।
दो साल की तलहटी पर विकास दर
अर्थव्यवस्था की रफ्तार दो साल की तलहटी पर पहुंच गई है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की तीसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर 6.1 प्रतिशत रही है। खनन, मैन्युफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र के बुरे हाल ने सरकार की दिक्कतें बढ़ा दी हैं। बजट से ठीक पहले आए अर्थव्यवस्था के इस आंकड़े ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पर घाटे और विकास के बीच संतुलन बिठाने का दबाव और बढ़ा दिया है। पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत रही थी। अर्थव्यवस्था की रफ्तार के बुधवार को आए आंकड़ों से साफ हो गया है कि चालू वित्त वर्ष में विकास की दर 6.9 प्रतिशत के अनुमान से भी कम रहेगी। यही नहीं सरकार को अगले वित्त वर्ष में रफ्तार बढ़ाने के लिए उपाय भी अभी से करने होंगे। ताजा आंकड़ों के बाद वित्त मंत्री पर बजट में अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के प्रावधान करने का दबाव बढ़ जाएगा। साथ ही रिजर्व बैंक भी अप्रैल में अपनी मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में कमी का सिलसिला शुरू कर सकता है। तीसरी तिमाही में विकास दर घटने की प्रमुख वजह खनन, मैन्युफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र की धीमी रफ्तार रही। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि दर मात्र 0.4 प्रतिशत रही, जबकि खनन क्षेत्र का उत्पादन तो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 3.1 प्रतिशत घट गया। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.7 प्रतिशत पर ही सिमट गई है। महंगाई और ऊंची ब्याज दरों के चलते चालू वित्त वर्ष में औद्योगिक उत्पादन की स्थिति शुरू से ही डावांडोल रही। तीसरी तिमाही की शुरुआत ही औद्योगिक उत्पादन में गिरावट से हुई थी। अक्टूबर, 2011 में तो औद्योगिक उत्पादन की विकास दर शून्य से 5.1 प्रतिशत नीचे चली गई थी। उसके बाद से इसकी हालत में कुछ सुधार तो हुआ है, लेकिन अभी भी यह पिछले साल की रफ्तार के मुकाबले काफी धीमा है। इसी महीने केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने चौथी तिमाही में जीडीपी के अनुमानित आंकड़े जारी किए थे। उनके मुताबिक जीडीपी की विकास दर 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। मंगलवार को जारी आठ बुनियादी उद्योगों के जनवरी के आंकड़े के मुताबिक इस क्षेत्र वृद्धि दर मात्र 0.5 प्रतिशत रह गई है। इसका मतलब यह हुआ कि चौथी तिमाही में भी उद्योगों के उत्पादन में सुधार की उम्मीद नहीं है। माना जा रहा है कि इसका असर अगली तिमाही की विकास दर पर भी पड़ेगा। चालू वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाही की औसत विकास दर 6.9 प्रतिशत पर रही है। इस अवधि में भी मैन्युफैक्चरिंग और खनन का हाल सबसे ज्यादा खराब है।
चालू साल में अर्थव्यवस्था का हाल
क्षेत्र पहली दूसरी तीसरी (तिमाही )
कृषि 3.9 3.2 2.7
खनन 1.8 -2.9 -3.1
मैन्युफैक्चरिंग 7.2 2.7 0.4
बिजली, गैस जलापूर्ति 7.2 9.8 9.0
कंस्ट्रक्शन 1.2 4.3 7.2
व्यापार, होटल परिवहन, संचार 12.7 9.8 9.2
वित्त, बीमा रीयल एस्टेट 9.0 10.5 9.0
सामुदायिक सामाजिक, निजी सेवाएं 5.6 6.6 7.9
कुल जीडीपी 7.7 6.9 6.1 (सभी आंकड़े प्रतिशत में)
सुस्त जीडीपी का असर
गरीबी उन्मूलन को झटका : भारत की पूरी आबादी को गरीबी रेखा से ऊपर लाने के लिए अगले 30 वर्षो तक नौ फीसदी की आर्थिक विकास दर चाहिए। पिछले तीन वर्षो से आर्थिक विकास नौ फीसदी से नीचे रही है।
कर वसूली कम होगी : सुस्त अर्थव्यवस्था का मतलब होता है कंपनियों के मुनाफे में कमी। इससे सरकार की कर वसूली कम होगी। चालू वित्त वर्ष में अभी तक के आंकड़े बताते हैं कि अप्रत्यक्ष कर वसूली सालाना लक्ष्य से कम रहेगी।
कम रोजगार : सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले मैन्युफैक्चरिंग व खनन क्षेत्र की हालात खस्ता है। सेवा क्षेत्र भी सुस्ती की शिकार है। उद्योग जगत कम नौकरियां देगा।
कम निवेश : राजस्व घाटे के चलते सरकार ज्यादा खर्च करने नहीं जा रही। महंगे ब्याज और घरेलू व वैश्विक अर्थव्यवस्था के हालात को देखते हुए निजी क्षेत्र भी नए निवेश से कतराएगा।
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