Saturday, March 3, 2012

शहरीकरण का कड़वा सच



शहरीकरण का कड़वा सच
 
(संदभ : बच्चों पर यूनिसेफ की रिपोट)
 
जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में शहर तेजी से ब़ढ रहे हैं यूनिसेफ के एक ताजा आकलन के मुताबिक अगले 15 सालों में भारत की करीब 40 फीसदी आबादी शहरों में होगी इसी तसवीर का दूसरा पहलू यह है कि गांव धीरे-धीरे खत्म होंगे और शहरों का विस्तार तेज होगा शहरीकरण के साथ यह उम्मीद भी पनपती है कि शहर ह्लयादा से ह्लयादा लोगों को रोजगार, सामाजिक विकास और आथिक प्रगति में भागीदार बनाता है लेकिन कड़वा सच यह है कि शहरों के विस्तार के साथ-साथ यहां बुनियादी सुविधाओं से महरूम मलिन बस्तियां भी तेजी से फैल रही हंै आज के भारत में करीब 50 हजार मलिन बस्तियां हैं, जिनमें 9 करोड़ से ह्लयादा लोग रहते हैं ऐसी बस्तियों में रहने वाला तीन में से एक व्यक्ति या तो नाले या रेल लाइनों के किनारे रहता है ये वे लोग हैं जो रोजी-रोटी और बेहतर कल की तलाश में अपना गांव छोड़ कर शहरों की ओर निकले थे इस उम्मीद में कि शहर उन्हें न सिफ रहने के लिए छत और रोजी-रोटी देगा, बल्कि एक आथिक सुरषा भी मुहैया करायेगा उन्हें और उनके बच्चों को एक समान अवसर और सम्मान का जीवन देगा लेकिन हकीकत इससे उलट है यूनिसेफ की 'चिल्ड­ेन इन एन अबन वल्ड' नामक रिपोट कहती है कि शहर में रहने वाले गरीब और उनके बच्चों की हालत गांव के गरीबों से ह्लयादा बदतर है रिपोट के मुताबिक भारतीय शहरों में रहने वाले लोगों की संख्या 37 करोड़ से ह्लयादा है और शहरों में आने वाले 60 फीसदी प्रवासी गांवों से आते हैं दरअसल, शहर गांव से आने वालों को दैनिक आमदनी का जरिया जरूर देता है, लेकिन साथ ही उपभोग का तरीका भी बदल जाता है गांव के मुकाबले वे ह्लयादा कीमत चुका कर अपने जीवन यापन के लिए जरूरी चीजें हासिल कर पाते हैं फिर यही शहर उनकी पहचान पर भी सवाल खड़े करता है उनसे उनका सहज सामाजिक परिवेश छीन लेता है वोटर आइ काड और राशन काड जैसे पहचान के जरूरी दस्तावेज के अभाव में उन्हें उन सामाजिक कल्याणकारी सुविधाओं से भी दूर होना पड़ता है, जो उन्हें गांव में ह्लयादा आसानी से उपलब्ध थी इनकी सबसे ह्लयादा मार झेलते हैं इन परिवारों के बच्चे इन मलिन बस्तियों में रह रहे बच्चों की प्रतिभा बुनियादी सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ देती है वे एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाते हैं, जो गांवों से भी बदतर होती है ऐसे में यूनिसेफ का यह आग्रह तत्काल गौर करने लायक है कि सरकार शहरों को लक्ष्य बनाकर नयी योजनाएं बनाए, जैसा कि वह गांवों के मामले में करती है      

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