Saturday, March 3, 2012

पोलियो मुक्त देश का सपना



 पोलियो मुक्त देश का सपना
 
--(भारत का नाम पोलियो प्रभावित सूची से हटने पर जाहिद खान की टिप्पणी)
16 साल की जीतोड़ कोशिशों के बाद मुल्क के पोलियो मुक्त होने का स्वप्न पूरा होता दिख रहा है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने एक साल से ज्यादा समय से पोलियो मुक्त रहने की वजह से भारत का नाम पोलियो प्रभावित मुल्कों की सूची से हटा दिया है। सौ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले हमारे देश के लिए यह एक ऐसी उपलब्धि है, जिस पर गर्व किया जा सकता है। यह उपलब्धि दर्शाती है कि यदि कोई काम ईमानदारी से किया जाए, तो मंजिल पर पहुंचना मुश्किल नहीं। सरकारी कार्यक्रम के प्रभावकारी क्रियान्वयन, स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं और सामाजिक संस्थाओं की एकजुट मुहिम ने वह कर दिखाया, जो एक समय मुश्किल लक्ष्य लगता था। अभी ज्यादा दिन नहीं गुजरे हैं जब भारत में, पोलियो के मामलों का उच्चतम भार 741 था। यह आंकड़ा तीन अन्य पोलियो पीडि़त देशों से भी ज्यादा था। गौरतलब है कि पांच साल उम्र तक के बच्चों को अपना शिकार बनाने वाले पोलियो के वायरस से बच्चे लकवाग्रस्त हो जाते हैं। साल 1988 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रोटरी इंटरनेशनल, यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन और यूनीसेफ के सहयोग से पोलियो उन्मूलन के लिए जब विश्वव्यापी मुहिम छेड़ी, तब पोलियो महामारी से कोई 125 से ज्यादा मुल्क पीडि़त थे। खास तौर पर यह बीमारी अविकसित और पिछड़े देशों में ज्यादा थी। धीरे-धीरे विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोशिशें रंग लाई। जहां-जहां डब्ल्यूएचओ ने पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया, वहां इस महामारी का प्रभाव कम होता चला गया। फिलहाल, पोलियो महामारी से पीडि़त मुल्कों की संख्या घटते-घटते अब सिर्फ तीन तक सीमित रह गई है। जिसमें हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, अफगानिस्तान के अलावा अफ्रीकी मुल्क नाइजीरिया शामिल है। साल 1995 में भारत सरकार ने भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से पोलियो उन्मूलन के लिए पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम (पीपीआई) शुरू किया। कार्यक्रम का मकसद ओरल पोलियो टीके यानी ओपीवी के जरिए शत-प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त करना था। इस कार्यक्रम के तहत पूरे मुल्क में पांच साल से कम उम्र के सभी बच्चों को साल में दो बार यानी, दिसंबर और जनवरी महीने में ओरल पोलियो टीके की खुराकें दी गईं। पोलियो टीके की दो खुराक पीने वाले बच्चों में तीनों तरह के पोलियो वायरस के खिलाफ सुरक्षात्मक एंटीबॉडी बन जाती है और 99 फीसदी बच्चे तीन खुराकों के बाद सुरक्षित हो जाते हैं। शुरुआत में इस कार्यक्रम की राह में काफी अड़चनें आईं। भारत जैसे विशाल आबादी और क्षेत्रफल वाले देश में हर बच्चे को दो बूंद जिंदगी की पिला पाना एक मुश्किल चुनौती थी। सरकार ने अपनी मुहिम को कामयाब बनाने के लिए न सिर्फ स्वास्थ्य महकमे और स्वयंसेवी संस्थाओं का सहारा लिया, बल्कि अपने कई महकमों के हजारों कर्मचारियों को भी इसमें झोंक दिया। कोई 23 लाख स्वयंसेवी विषम परिस्थितियों में भी घर-घर जाकर पांच साल उम्र तक के बच्चों को पोलियो की दवा पिलाते रहे। एक बात और। अशिक्षा, अंधविश्र्वास और अज्ञानता की वजह से एक बड़ी आबादी ने पहले इस कार्यक्रम से किनाराकशी की। पोलियो टीकाकरण के बारे में कुछ समाजों के अंदर कई गलतफहमियां और भ्रांतियां थीं, जिसके चलते वे अपने बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाने को तैयार नहीं होते थे। लेकिन सरकार ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और लगातार अपनी कोशिशें जारी रखीं। उसने इसके लिए राष्ट्रव्यापी प्रचार अभियान छेड़ा और घर-घर जाकर बच्चों को पोलियोरोधी ड्राप्स पिलाए। तब जाकर आज मुल्क इस मुकाम पर पहुंचा है। बहरहाल, पोलियो के खिलाफ इतनी बड़ी कामयाबी मिलने के बाद भी भारत के लिए चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। यह आधी उपलब्धि है और पूरी उपलब्धि अभी बाकी है। पोलियो मुक्त मुल्क का दर्जा पाने के लिए अगले दो सालों तक भारत को पोलियो मुक्त रहना होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

--


No comments:

Post a Comment


Popular Posts

Total Pageviews

Categories

Blog Archive