Thursday, May 17, 2012

हैकिंग की बढती चुनौती - साइबर युद्ध



हैकिंग की बढती चुनौती
 

01 अमेरिकी आइटी कंपनी के मुताबिक वर्ष 2010 में भारत हैकिंग में दुनिया में नंबर एक था.

500 से ज्यादा चीनी वेबसाइट्स को हैक किया एनॉनिमस हैकर ग्रुप ने. ये सेंसरशिप के खिलाफ हैं

1400 से ज्यादा सरकारी और कॉरपोरेट वेबसाइटों पर हैकर्स ने वर्ष 2011 में किया हमला.

 

आज पूरी दुनिया आपस में इंटरनेट के जरिये जुड़ी हुई हैं. दुनिया के सारे काम कंप्यूटर और इंटरनेट पर किये जा रहे हैं. प्रशासनिक, व्यवसायिक, बैकिंग संबंधी सभी काम इंटरनेट के सहारे ही अंजाम दिये जा रहे हंै. यानी इंटरनेट एक विश्‍वव्यापी प्लेटफार्म है. इस प्लेटफॉर्म पर यदि पूरी दुनिया एक साथ चहलकदमी कर रही है, तो पूरी दुनिया पर एक साथ ही हैकिंग का खतरा भी मंडरा रहा है. इस खतरे से कोई भी बचा हुआ नहीं है. आज किसी देश पर प्रत्यक्ष आक्रमण की जगह, साइबर हमले को आसान माना जा रहा है. हैकिंग के खतरे पर केंद्रित आज का नॉलेज..

 

आज किसी देश पर प्रत्यक्ष आक्रमण की जगह उस पर साइबर हमले को आसान माना जा रहा है. अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआइ ने साफ तौर पर कहा है कि आने वाले समय में सबसे बड़ा युद्ध साइबर दुनिया में लड़ा जायेगा. 2012 में दुनिया के सामने जिन चुनौतियों का जिक्र किया गया, उनमें साइबर हमला सबसे प्रमुख है. इसे आम बोलचाल की भाषा में 'इंटरनेट हैकिंग' के नाम से जाना जाता है.

चीन से साइबर हमला

जानकारों की मानें तो चीन ने भारत के खिलाफ हैकिंग के सहारे एक साइबर जंग शुरू कर दी है. चीन में स्थित समूह भारतीय वेबसाइटों को निशाना बना रहे हैं. इनके द्वारा भारत के आधिकारिक वेबसाइट्स से संवेदनशील जानकारियां चुरायी जा रही हैं. इस तरह चीन भारत के नेशनल इंफॉरमेटिक्स सेंटर और विदेश मंत्रालय को भी निशाना बना चुका है.

भारतीय नेटवर्क के खिलाफ तीन प्रकार के हथियार इस्तेमाल किये जा रहे हैं- बीओटीएस(बॉट्स), की लॉगर्स और मैपिंग ऑफ नेटवर्क. चीनी एक्सपर्ट बॉट्स बनाने में माहिर माने जाते हैं. बॉट्स एक परजीवी प्रोग्राम है, जो नेटवर्क को हैक करता है. अनुमान के मुताबिक भारत में 50000 से ज्यादा बॉट्स हैं.

चीन है हैकिंग का प्रमुख स्रोत

अमेरिका ने चीन पर हैकरों को पनाह देने और उनकी मदद करने का आरोप लगाया है. एक अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक चीन और रूस उसके खिलाफ हैकरों की मदद से एक तरह का साइबर युद्ध चला रहे हैं. गौरतलब है कि दुनिया में हैकिंग का सबसे बड़ा अड्डा ब्राजील को माना जाता है. हालांकि, चीन ने पिछले साल हैकिंग के खिलाफ कठोर कानून बनाये थे, लेकिन फिर भी चीन हैकिंग का मुख्य केंद्र बना हुआ है.

चीन में हैकिंग से आंदोलन!

ऐसा माना जा रहा है कि पिछले हफ्ते चीन में जो 500 से ज्यादा सरकारी और गैरसरकारी वेबसाइटों की हैकिंग की गयी, उसमें चीनी आंदोलनकर्ताओं का हाथ है. दरअसल हैकिंग को सिर्फ व्यक्तिगत लक्ष्यों से ऊपर उठकर अब एक बडे हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल में लाया जा रहा है और इसका प्रयोग उन देशों और सरकारों के खिलाफ किया जा रहा है, जिनके खिलाफ प्रत्यक्ष कार्रवाई का फिलहाल कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है. इन मामलों में कई बार हैकिंग आंदोलन के अस्त्र के रूप में भी सामने आया है. हैकरों ने घोषणा की है कि वे चीन में इंटरनेट की सेंसरशिप के खिलाफ आगे भी हैकिंग को अंजाम देते रहेंगे.

गौरतलब है कि अज्ञात हैकरों ने चीनी साइटों को हैक करके उस पर अपना संदेश डाला था- 'चीन की जनता के लिए : आपकी सरकार आपके देश में इंटरनेट को अपने शिकंजे में रखे हुए है. वह हर ऐसी चीज का सेंसरशिप करना चाहती है, जो उसे उसके हित के लिए खतरनाक नजर आता है.

यहां यह जानना अहम है कि चीन में वास्तव में इंटरनेट पर तरह-तरह की पाबंदियां हैं और इन पाबंदियों के खिलाफ ही करीब दो साल पहले सर्च इंजन गूगल ने चीन में अपना कारोबार बंद कर दिया था. इसके लिए चीन में एक ग्रेट फायरवॉल का इस्तेमाल किया जाता है, जो इंटरनेट की हर गतिविधि की जानकारी रखता है और किसी आपत्तिजनक सामग्री को प्रकाशित नहीं होने देता.

क्या है हैकिंग

कंप्यूटर पर वायरस के हमले के बारे में तो हम सब सुनते हैं, लेकिन कंप्यूटर हैक होने का खतरा आज वायरस से भी ज्यादा गंभीर रूप ले चुका है. हैकिंग के जरिये कोई हैकर किसी नेटवर्क के कंप्यूटर पर पूरी तरह कब्जा जमा लेता है. वह सिर्फ आपकी सूचनाओं को ही नष्ट नहीं करता, बल्कि उसका अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सकता है. जाहिर है, किसी की गोपनीय जानकारी चुराकर उसे नुकसान पहुंचाना काफी आसान है. वास्तव में हैकिंग एक हुनर है, जिसमें कंप्यूटर प्रोग्रामों के जरिये किसी नेटवर्क के कंप्यूटरों को अपने वश में किया जाता है. जब कोईदेश किसी अन्य देश के खिलाफ इस तरह से इंटरनेट हैकिंग को प्रोत्साहित करता है, तो इसे 'साइबर युद्ध' कहा जाता है. आज की तारीख में जब सूचनाएं ही ताकत हैं, एक देश दूसरे देश की सूचना पर कब्जा जमा कर या उसे हैकिंग के जरिये चुराकर उसे आसानी से नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि, आज की तारीख में एक दूसरे पर हैकिंग का आरोप लगाना आम बात है, लेकिन हकीकत है कि कुछ देश हैकिंग को ज्यादा बढlवा दे रहे हैं.

सिर्फ नकारात्मक नहीं है हैकिंग

हैकिंग से सिर्फ नकारात्मक अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए. दरअसल आज की तारीख में हैकर सरकार और एजेंसियों को मदद पहुंचाते हैं. हैकिंग की मदद से सरकार या खुफिया एजेंसी किसी एकाउंट को हैक करके वहां से सूचनाएं और सबूत जुटाती हैं. यही कारण है कि कई संस्थान 'एथिकल हैकिंग' का कोर्स भी कराते हैं.

आंदोलनकर्ताओं का अस्त्र हैकिंग

समाचार एजेंसी रायटर की एक खबर के मुताबिक वर्ष 2011 में हैकिंग के ज्यादातर मामले उन आंदोलनकर्ताओं ने अंजाम दिये, जो सरकार और कॉरपोरेट नेटवर्क के सिस्टम को हैक करके ऐसी जानकारी निकालकर उनकी साई दुनिया के सामने लाना चाहते थे. वेरीजॉन कम्युनिकेशन इंक के मुताबिक यह हैकिंग की दुनिया में बडे बदलाव का लक्षण माना जा सकता है, क्योंकि इससे पहले हैकिंग का काम मुख्यत: पैसे संबंधी जालसाजी और अपराध को अंजाम देने के लिए किया जाता था. इस टेलीकम्युनिकेशन कंपनी ने पांच देशों की लॉ इंफोर्समेंट एजेंसीज के साथ हैकिंग के 855 मामलों में 17.4 करोड़ रिकॉर्डस की जांच करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला. उनके मुताबिक यह एक नया किस्म का एक्टिविज्म है, जिसे 'हैक्टिविज्म' कहा जा सकता है.

हैक किये गये आंकड़ों में 58 फीसदी आंकडे इस हैक्टिविज्म से संबंधित थे. इस हैकिंग ग्रुप ने अपना नाम एनॉनिमस यानी अज्ञात ग्रुप रखा है. चीन में भी इस ग्रुप ने ही हैकिंग की जिम्मेदारी ली है.

वर्ष 2011 में भी इस ग्रुप ने एक के बाद एक हैकिंग की घटनाओं की जिम्मेदारी ली थी. इसने पिछले साल ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, जिम्बाब्वे और दूसरे देशों की वेबसाइटों को निशाना बनाया था. इसके अलावा सेना के ठेकेदारों, कानून इंफोर्समेंट एजेंसियों और सोनी कॉर्प, न्यूज कॉर्प और एप्पल इंक को भी निशाना बनाया गया. जानकारों का मानना है कि इंटरनेट एक्टिविज्म के इस दौर में हैक्टिविज्म का पूरा जोर रहेगा. हालांकि इसे अंतरालों में अंजाम दिया जायेगा. यानी कभी अति-सक्रियता, तो कभी थोड़ी निष्क्रियता. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी की चोरी के लिए सिर्फ चार फीसदी हैकिंग को अंजाम दिया गया. हालांकि, इस चोरी से मिलने वाला फायदा जरूर हैक्टिविज्म से होने वाले आर्थिक फायदे से बड़ा रहा होगा. बडे संस्थानों में हुई हैकिंग की करीब 40 फीसदी घटना संवेदनशील जानकारियों, कॉपीराइट जानकारियों और ट्रेड सीक्रेट्स से जुड़ी हुई थीं.

पाक की भारत विरोधी साइबर जंग

हैकिंग देशों के बीच बडे युद्ध के मैदान के तौर पर उभरा है. अब जबकि दो देश प्रत्यक्ष युद्ध नहीं लड़ सकते, वे अपने प्रतिद्वंद्वियों के कंप्यूटर नेटवर्क को हैक करके उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले एक वर्ष में भारत सरकार की 112 वेबसाइट पाकिस्तान आधारित एच4टीआर सीके नाम के समूह द्वारा हैक की गयी. भारतीय अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि हैकिंग देश के लिए बड़ा खतरा बन चुका है. 2011 में बीएसएनएल, सीबीआइ जैसे कई अहम संगठनों को निशाना बनाया गया.

गौरतलब है कि बीएसएनएल की फोन डायरेक्ट्री में लाखों लोगों की पहचान, पता और उनका फोन नंबर है. इन नंबरों में सेंध लगाकर कोई बड़ी आसानी से भारत-विरोधी गतिविधि को अंजाम दे सकता है. जानकारों का कहना है कि भारत में ऑनलाइन सुरक्षा की तैयारी काफी कमजोर है.

भारत सरकार के ज्यादातर संगठनों की वेबसाइट सिंगल सर्वर पर चलायी जाती हैं, ऐसे में यह आसानी से हैकरों के निशाने पर आ जाती हैं. पाकिस्तान भारत के खिलाफ 1998 से 'साइबर युद्ध' चला रहा है. लेकिन अभी तक इसने इतना गंभीर रूप अख्तियार नहीं किया था.

पाकिस्तानी समूह मिलवर्म ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की वेबसाइट पर हमला कियाथा, लेकिन उस समय डेटा की किसी किस्म की चोरी नहीं की गयी थी, बल्कि वहां कुछ भारत विरोधी नारे लगा दिये गये थे. सीबाआइ भी पाकिस्तानी हैकिंग का शिकार हो चुकी है और एक बार तो इसे हैकिंग के कारण अपनी वेबसाइट 15 दिनों के लिए बंद करनी पड़ी थी. हैकरों ने ओएनजीसी, इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग आदि संगठनों को भी अपने निशाने पर लिया है. साइबर हमलों के बारे में बार-बार आगाह किये जाने पर भी भारत इससे लड़ने के लिए पुख्ता तैयारी करता नजर नहीं आता. पाकिस्तान ने भारत की वेबसाइटों पर हमला करने के लिए हैकरों के कई समूह तैयार किये हैं. इनमें पाकिस्तान जी फोर्स और पाकिस्तान साइबर आर्मी प्रमुख है. आइएसआइ ने 'पाकिस्तान हैकर क्लब' नाम से एक अलग दस्ते का निर्माण ही किया था. इन समूहों ने कम-से-कम 500 भारतीय वेबसाइटों पर हमला किया है.

भारत के जानकार इस चुनौती से निपटने के लिए कडे उपायों की वकालत करते रहे हैं. जिसमें सिंगल सर्वर की जगह मल्टी सर्वर का इस्तेमाल और विशेष दस्ते का निर्माण शामिल है. उद्योग जगत के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2011 में 14000 से ज्यादा सरकारी तथा कॉरपोरेट वेबसाइट को हैकरों ने नुकसान पहुंचाया.
 
लंदन ओलंपिक पर हैकिंग का खतरा

साइबर अपराधियों के निशाने पर लंदन ओलंपिक भी है. इस खतरे से निपटने के लिए एक खास टीम दिन-रात लंदन ओलंपिक के 90 आयोजन स्थलों के अलावा ओलंपिक से जु.डे डेटा को साइबर हमलों से बचाने के लिए काम कर रही है. लंदन ओलंपिक के चीफ इंफॉर्मेशन ऑफिसर गैरी पेनेल का मानना है कि लंदन ओलंपिक पर नि:संदेह साइबर हमले का खतरा मंडरा रहा है और इस बात की पूरी आशंका है कि इस दौरान या इससे पहले हैकर इस पर निशाना साधने की कोशिश करेंगे. पेनेल का कहना है कि इससे पहले भी ओलंपिक गेम आयोजनों को हैकिंग का सामना करना पड़ा है. हैकिंग के खतरे से निपटने के लिए विभित्र देशों की सरकारों के साथ मिलकर योजना बनायी जा रही है. ताकि ऐसे किसी खतरे से बचा जा सके. इस काम के लिए एक खास 450 सदस्यीय टीम बनायी गयी है, जो खेलों के दौरान कंप्यूटर सिस्टमों को हैकिंग से सुरक्षित रखने का काम करेंगे. इस पूरी कवायद के लिए करोड़ों डॉलर की योजना बनायी गयी है.
 
ईरान पर हैकिंग से वार

दुनिया की भू-सामरिक रणनीति में साइबर हमले को महत्वपूर्ण स्थान दिया जा रहा है. ईरान के खिलाफ साइबर हमले का इस्तेमाल पिछले कुछ वर्षोंसे किया जा रहा है. यह युद्ध किये बिना उसके खिलाफ युद्ध चलाने जैसा है. जानकारों का कहना है कि वर्ष 2010 और 2011 में ईरान के परमाणु संस्थानों पर इसकी तरह का हमला किया गया. ईरान पर स्टक्सनेट इंटरनेट वायरस से हमला किया गया. यह एक प्रोग्राम कोड था, जिसका मकसद ईरान के परमाणु कार्यक्रम की अहम जानकारियों को बाहर निकालना था. हालांकि किसी ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन जानकारों का कहना है कि इस हमले में अमेरिका और इजरायल की धरती से काम कर रहे हैकरों का हाथ था. यह अपने आप में इकलौती घटना नहीं है. चीन भी इस तरह की लड़ाईलंबे अरसे से लड़ रहा है. माना जाता है कि चीन ने अमेरिकी संस्थानों को कमजोर करने के लिए अपनी जमीन से हैकिंग को बढ.ावा दिया है.    

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