दरकता पूंजीवाद उभरता वामपंथ ! | ||
(1995 में कलर रिवॉल्यूशन का सहारा लिया गया, पूर्व सोवियत देशों में पूंजीवादी व्यवस्था को बढ.lवा देने के लिए. | ||
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद साम्यवादी व्यवस्था के विघटन की बात कही गयी. | ||
2001 में अज्रेंटीना की अर्थव्यवस्था के पतन से पूंजीवाद के प्रति लैटिन देशों का मोह भंग होना शुरू हुआ.) | ||
फ्रांस और ग्रीस जैसे यूरोपीय देशों के चुनावी नतीजों ने एक बार फिर पूंजीवादी व्यवस्था को आईना दिखाने का काम किया है. यूरोपीय देशों में जारी कर्ज संकट की स्थिति से वहां की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है. लोग बदलाव की मांग कर रहे हैं. यही कारण है कि फ्रांस में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार फ्रांसिस ओलांड को जनता ने जीत का ताज पहनाया. विश्व की आर्थिक व्यवस्था का रुझान फिर से साम्यवादी व्यवस्था की बढने लगा है. लैटिन देश तो पहले ही इस रास्ते पर आगे बढ. चुके हैं, जहां अज्रेंटीना से लेकर ब्राजील, वेनेजुएला, बोलीविया तक में वामपंथी सरकारें हैं. अब फ्रांस के चुनावी नतीजे के संदर्भ में वैश्विक व्यवस्था में बदलाव के विभित्र पहलुओं पर केंद्रित आज का नॉलेज.. | ||
▪चंदन मिश्रा | ||
अगस्त 1991 में मॉस्को में तेजी से घट रही घटनाओं की तसवीरें पूरी दुनिया में छाई हुई थीं. वहां कुछ ऐसा हो रहा था, जिसकी कल्पना भी मुश्किल थी. एक दुनिया ढह रही थी. उस दुनिया को बचाने की आखिरी कोशिश के तहत कम्युनिस्ट पार्टी के पुराने सदस्यों ने तख्ता पलटने की कोशिश की. रूसी राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव को गिरफ्तार कर लिया गया. राजधानी मॉस्को में आपातकाल के हालात थे. गुस्साए लोग रूसी टैंकों का सामना करने के लिए सड़कों पर उतर आये. लेकिन, कुछ ही दिनों में पासा पलट गया. सेना ने तख्तापलट करने वाले नेताओं के आदेश को मानने से इंकार कर दिया और कुछ ही महीनों में सोवियत संघ के टुकडे-टुकडे हो गये. 1917 की फरवरी में रूसी क्रांति के बाद बनी साम्यवादी सरकार का पतन कुछ इस तरह हुआ. सोवियत संघ के इस पतन के साथ ही, पूरी दुनिया में समाजवाद के अंत का र्मसिया पढ.ा जाने लगा. पूंजीवादी विचारक कहने लगे कि दुनिया में समाजवाद नामक कोई विचारधारा व्यावहारिक नहीं हो सकती. अमेरिकी राजनीतिक विचारक फ्रांसिस फुकुयामा ने तो 1992 में प्रकाशित अपनी किताब 'द एंड ऑफ द हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन ' में यहां तक कहा कि यह महज शीतयुद्ध का अंत नहीं है, न सिर्फ विश्वयुद्ध के बाद के इतिहास के खास दौर का गुजर जाना है. यह अपने आप में एक इतिहास के अंत जैसा है. एक ऐसा अंत जहां मानवता का वैचारिक विकास अपने चरम बिंदु पर आकर समाप्त हो जाता है. इस बिंदु पर पश्चिमी उदारवादी लोकतंत्र एकमात्र शासन के तौर पर स्थापित हो गया है. नव-उदारवाद का विस्तार ग्लोबलाइजेशन: सोवियत संघ के विघटन के बाद उदारवादी पूंजीवादी व्यवस्था का विकास काफी जोर-शोर से होने लगा. वर्ष 1995 में पूंजीवादी व्यवस्था को बढ.ावा देने के लिए और विश्व व्यापार को उदारवादी बनाने के लिए विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ जैसे संगठनों की नींव पड़ी. इसके तहत विकसित और पूंजीवादी सभी पूर्ववर्ती साम्यवादी देशों में व्यापार की नीतियों को प्रभावित करने लगे. दूसरी तरफ, उन देशों में जो हाल ही में सोवियत संघ के विघटन के बाद स्वतंत्र देशबने थे. वहां कलर रिवॉल्यूशन (रंग क्रांति) चलाया गया. कलर रिवोल्यूशन : यह ऐसी क्रांति थी, जिसे पूंजीवाद को बढ.ावा देने के लिए सोवियत संघ से अलग हुए देशों और बाल्कन देशों में वर्ष 2000 के शुरुआत वर्षों में शुरू किया गया था. इस क्रांति को मध्य-पूर्व के देशों में भी फैलाने का काम किया गया. कुछ जानकारों ने तो इसे रिवॉल्यूशनरी वेव का नाम दिया. उनके मुताबिक, इस क्रांति की जड़ फिलीपींस में 1986 के यल्लो क्रांति से जुड़ी हुई है. इसी तरह, साल 2000 में सर्बिया में बुल्डोजर क्रांति, 2003 में जॉजिर्या में रोज क्रांति, साल 2004 में यूक्रेन में ऑरेंज क्रांति देखने को मिली. इन सभी क्रांति में एक बात सामान्य थी कि ये सभी व्यवस्था और सरकार को बदलने के लिए की गयी थी. पूंजीवादी और उदारवादी सरकारों को बढ.ावा देने के मकसद से ही इस क्रांति को बढ.ावा दिया गया. सबसे दिलचस्प बात की इसके पीछे पूंजीवादी व्यवस्था के अगुवा अमेरिका का हाथ माना जाता है. इस तरह उन सभी देशों में जहां-जहां साम्यवादी सरकारें थीं, वहां इसी तरह की क्रांति या फिर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष(IMF) की मदद से देशों की नीतियों को प्रभावित किया जाने लगा. चूंकि इन वैश्विक वित्तीय संस्थाओं में अमेरिका की भागीदीरी अधिक थी, तो जिन देशों को ये संस्थाएं कर्ज देतीं उन्हें आर्थिक सुधार के लिए पूंजीवादी नीतियों को ही अपनाना पड़ता था. इस तरह एक के बाद एक सभी देशों में साम्यवादी व्यवस्था का अंत होने लगा और पूंजीवादी सरकारें कायम होने लगीं. लेकिन, इस व्यवस्था की पोल-पट्टी भी धीरे-धीरे खुलने लगी. 1997 में जब थाइलैंड से एशियाई वित्तीय संकट शुरू हुआ तो कुछ देश जो अभी तक इस चक्रव्यूह से बाहर थे, उन्होंने अपनी आर्थिक नीतियों पर पहल करना शुरू कर दिया. दक्षिण अमेरिका में पिंक टाइड पूंजीवादी व्यवस्था के इस संकट से सीख लेते हुए वियतनाम, लाओस, अज्रेंटीना जैसे देशों ने विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लिए सभी कजर्ें को चुकाने का फैसला किया और आपसी समझौते के आधार पर मदद करने और साझेदारी का फैसला किया. इस तरह एक तरफ पूंजीवादी व्यवस्था की खामियां सामने आ रही थीं, तो दूसरी तरफ अज्रेंटीना, ब्राजील, क्यूबा, लाओस और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों का रुझान वापस साम्यवादी शासन प्रणाली की ओर हो रहा था. पूंजीवादी व्यवस्था से वामपंथ की ओर हो रहे इस झुकाव को पिंक टाइड यानी गुलाबी ज्वार के नाम से जाना गया. लैटिन अमेरिकी देशों में इस तरह की सरकारों का गठन सबसे ज्यादा हुआ. पेरु से लेकर वेनेजुएला तक में हुए चुनावों में दक्षिण पंथी पार्टियों को हार मिली और वामपंथी पार्टियों ने सरकार बनायी. साल 2011 में हुए राष्ट्रपति चुनाव के बाद वामपंथी दलों की जीत ने पेरू को पिंक टाइड देशों की सूची में शामिल कर दिया. इस तरह मोटे शब्दों में कहा जाये तो पिंक टाइड या गुलाबी ज्वार वैसे देश हैं, जहां हाल के वर्षों में वामपंथी दलों की सरकार सत्ता में है. इस तरह पेरू के अलावा ब्राजील, अज्रेंटीना, क्यूबा, वेनेजुएला, इक्वाडोर जैसे देशों में वामपंथी सरकारें हैं, जो पूंजीवादी व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं. हालांकि, हमेशा से ऐसा नहीं था. 1980 और 1990 के दशक में वैश्विक पूंजीवादी व्यवस्था की पकड़ इन देशों पर थी. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं, पश्चिमी देश और पूंजीवादी विचारकों द्वारा उदारवादी नीतियां थोपी गयीं. नव-उदारवादी नीतियों के कारण इन देशों में सामाजिक असमानता, व्यापक बेरोजगारी और विस्थापन की समस्या बढl 1980 और 1990 के दशक से चली आ रही नव उदारवादी व्यवस्था के बाद साल 2000-01 में आर्थिक मंदी ने पूरे लैटिन अमेरिका को अपनी चपेट में ले लिया. लेकिन, 21वीं सदी तक नव-उदारवाद इन देशों में वैचारिक और राजनीतिक सीमाओं तक पहुंच गया. फ्रांस और ग्रीस के नतीजों से सबक अब एकबार फिर 2007-08 की आर्थिक मंदी ने दुनिया के देशों और सरकारों को सोचने पर मजबूर किया है. जिस तरह से एक के बाद एक पूंजीवादी व्यवस्था वाले देशों की अर्थव्यवस्था भरभरा कर गिर रही हैं, उससे तो लगता है कि आने वाले दिनों में लैटिन अमेरिकी देशों की तरह अन्य पूंजीवादी देश भी उनके रास्ते पर चलने लगेंगे. काफी हद तक इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. फ्रांस, ग्रीस और सर्बिया में हुए हालिया चुनाव इसी की ओर इशारा करते हैं. आर्थिक और ऋण संकट के बीच फ्रांस में हुए राष्ट्रपति चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार फ्रांस्वा ओलांड की जीत इसी बात की ओर इशारा करते हैं. फ्रांस के बाद ग्रीस में हुए चुनाव में वामपंथी मोरचे दूसरे पायदान पर आयी है और किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण उसे सरकार बनाने का न्योता दिया गया है. उधर, सर्बिया के चुनाव की बात करें, तो वहां भी किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. ऐसे में वामपंथी दलों ने सभी दलों के साथ सरकार बनाने की पहल की है. यानी आर्थिक संकट के इस दौर में पूंजीवादी व्यवस्था से वामपंथी व्यवस्था की ओर लोगों का झुकाव बढ. रहा है. लैटिन अमेरिकी देशों के बाद यूरोपीय देशों में भी वामपंथी सरकारों का वर्चस्व बढ.ने लगा है. 1980 के बाद पहली बार फ्रांस में सोशलिस्ट पार्टी का सत्ता में आना यही बतलाता है. लैटिन अमेरिकी देशों में वामपंथ साल 2001 में अज्रेंटीना की अर्थव्यवस्था का पतन टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. चुनावों में सरकारी नीतियों के विरोधी समूहों की जीत हुआ और उन्होंने नव-उदारवादी नीतियों का विरोध किया. लैटिन अमेरिकी देशों में नव-उदारवादी नीतियों की अंत की यहीं से शुरुआत होती है. इन देशों का झुकाव पूंजीवाद से वामपंथ की ओर होता है. साल 1998 में वेनेजुएला में ह्यूगो शावेज की सरकार बनी, 2002 में ब्राजील में लुला डि सिल्वा, तो अज्रेंटीना में 2003 में नेस्टर क्रिचनर की अगुवाई में वामपंथी सरकारों का गठन हुआ. इसके बाद साल 2005 बोलिविया में, 2004 में उरुग्वे, इक्वाडोर में 2006 और निकारगुआ में भी 2006 में वामपंथी सरकारों का गठन हुआ. एशियाई वित्तीय संकट से मिले सबक 1997 में जब थाइलैंड से एशियाई वित्तीय संकट शुरू हुआ, तो कुछ देश जो अभी तक इस चक्रव्यूह से बाहर थे, उन्होंने अपनी आर्थिक नीतियों पर पहल करना शुरू कर दिया. दरअसल, हुआ यह कि जुलाई 1997 में थाइलैंड में विदेशी करेंसी की कमी के कारण डॉलर के मुकाबले करेंसी में कटौती करनी पड़ी. उस समय तक थाइलैंड पर काफी अधिक विदेशी कर्ज हो चुका था. यहां तक कि वह दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुका था. दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों में यह संकट फैलने लगा. इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और थाइलैंड पर इस संकट का अधिक असर पड़ा. हांगकांग, मलेशिया, लाओस और फिलीपींस पर भी इसका असर हुआ. | ||
| ||
| ||
|
Thursday, May 17, 2012
दरकता पूंजीवाद उभरता वामपंथ ! Capitalalist
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Popular Posts
-
Click here to see Original Photo Chhatrapati Shivaji Maharaj - Great Maratha King
-
Click here to see Original Photo Chhatrapati Shivaji Maharaj - Great Maratha King Shiwaji weapons
-
1 Land, Politics And Trade In South Asia: 2 Leadership In 21st Century: 3 Truth Is Multi Dimensional-CD Sri Sri Ravishankar Art 4 What ...
-
Click here for More articles Rashichakrakar Sharad Upadhye - Bhakti Sagar आखाडा का बखेडा? : शरद उपाध्ये - Rashichakra Sharad Upadhy...
-
Kokanatala Malvani Garana Garhana marathi garhane कोकणात देवाला गार्हाणं घालण्याची रीत अजूनही प्रचलीत आहे.चांगल्या प्रसंगी देवाची आठव...
-
आषाढी (देवशयनी) एकादशी इतिहास पूर्वी देव आणि दानव यांच्यात युद्ध पेटले. कुंभदैत्याचा पुत्र मृदुमान्य याने तप करून शंकराक...
-
स्त्रीला गरोदर कसे करावे ? पाहण्यासाठी येथे या मातृत्व प्रत्येक विवाहीत स्त्रीच्या आयुष्यात मातृत्व प्राप्त होणे ही अत्यंत आनंदाची तस...
-
Marathi Bold Actress Amruta Khanvilkar When Amruta Khanvilkar was the losing fina...
-
CLICK HERE TO VIEW THIS INFORMATION
-
सुरस कथा मार्केटिंगच्या Dhirubhai Ambani Marketing Story in Marathi कथा धिरुभाई अंबानी यांचे वडील गुजरातमधे ग्रामीण भागात प्राथमीक शीक...
Total Pageviews
Categories
- Mehandi Designs (1)
- rail chakra (18)
- rel chakra (17)
- relchakra (18)
Blog Archive
-
▼
2012
(1722)
-
▼
May
(97)
- रेल चक्र - हीरो आणि हिरा ! Railway - Hero and diamond
- रेल चक्र - कुणाच्या खांद्यावर कुणाचे ओझे ! Load on...
- रेल चक्र - जित्याची खोड ... Railway bad habit
- रेल चक्र - नागाने काढला फणा! Railway snakes hood
- रेल चक्र - कार्यतत्परता आणि रेल्वे Work-efficiency...
- रेल चक्र - कंट्रोलर - Controller of railway
- रेल चक्र - अस्वलाला घाबरला लाल बावटा ! Red railway...
- रेल चक्र - धरमपुरी बाबा का हुकूम Railway order fro...
- रेल चक्र - त्या ऐतिहासिक दिनी... Railway - On Hist...
- रेल चक्र - 'राजा'चं पार्सल - Railway parcel of Raja
- रेल चक्र - आयत्या सिग्नलवर नागोबा ! Snake on railw...
- Kadalimatti Kashibai
- रेल चक्र - थोर तुझे उपकार! - Railway Gratefulness
- रेल चक्र - ...आणि डिलिव्हरी झाली ! child delivery ...
- रेल चक्र - भार फुकाचा आम्हावर!
- मुलुंड नव्हे मुचलिंद Mulund real name is Muchlind
- रेल चक्र : फुकटे प्रवासी! - Without ticket mumbai ...
- Relchakara - Experiences in mumbai railway job
- भारतीय रेल्वेचा इतिहास सांगणारं रेलचक्र हे नवं सदर...
- Competition exam become easy स्पर्धा परीक्षा झाली ...
- नोकरी हीच आवड - Choice is job
- स्कॉलरशिप्सचे बेस्ट पर्याय Best options for Schola...
- Holy cow! India to be largest beef exporter Count...
- ‘Winning the title is good, holding on to it even ...
- Vishwanathan Anand crowned chess king for the fift...
- Bharat bandh: Mixed response against petrol price ...
- City of chaos Kolkata goes berserk as the city ce...
- A short India-Pakistan series likely in December-J...
- Fear grips Kashmiri Christians
- 'Make fake money terror crime' With evidence, Ind...
- Builders give black money thumbs down Say once th...
- For this Conductor, honesty proves to be the best ...
- End of road for KingLong buses BEST is devising a...
- Govt in denial, glosses over army’s Congo-gate
- Narayan Nagbali Puja (GETTING ISSUE)
- The Dev Anand I remember...
- Taliban - a book written by Ahmed Rahid
- SBI - No Monthly Minimum Balance in Savings Accounts
- वाघाचं काळीज - Tiger Heart
- मुंबईत मोठ्या कुटुंबांचे संमेलन Get together of Bi...
- दीड सेकंदाच्या फरकाने वाचले तरुणाचे प्राण - one an...
- IDBI Federal launches Termsurance for Senior Citizens
- MHADA gets cracking, restarts e-tendering
- Bollywood actor Shah Rukh Khan gets summons for sm...
- Dalvi is Sena’s new ‘poster’ boy Party to felicit...
- Two critically endangered birds find no mention in...
- सुधाताईंच्या आनंदमय कथा- Goshta Zaryachi, Sudha Va...
- History writer Sanjay kshirsagar - Panipat ase gha...
- Digital library of marathi books
- Yojana Aayog गैरजरूरी योजना आयोग
- BRIC Challenge विकसित देशों को चुनौती देती ब्रिक्स...
- हैकिंग की बढती चुनौती - साइबर युद्ध
- 3D Magic थ्रीडी यानी थ्री-डाइमेंशन का छाने लगा है ...
- GK and Current Issues
- What is Carbon Tax?
- Who is afraid of FDI in retail?
- General Knwoledge Quiz जनरल नॉलेज क्विज 7 May
- General Knowledge Quiz जनरल नॉलेज क्विज 8 May
- Europe Loan Problem यूरोप के कर्ज संकट ने बढयी दुन...
- General Knwoledge Quiz जनरल नॉलेज क्विज 9 May
- दरकता पूंजीवाद उभरता वामपंथ ! Capitalalist
- General Knowledge quiz जनरल नॉलेज क्विज 1 May
- General Knowledge quiz जनरल नॉलेज क्विज 2 May
- Electronic Wastage Law इलेक्ट्रॉनिक-कचरा कारगर होग...
- Alberto Torresi, an international men’s footwear b...
- Oriflame introduces Optifresh fluoride whitening t...
- Johnson Bath Division, the bathroom product busine...
- DKNY has launched latest collection of Mesh timepi...
- Discounts, sales and exchange offers are fast turn...
- Devon Ke Dev... Mahadev : 14th May 2012
- Southern stars Sneha and Prasanna get married
- how the Domain Name System, or DNS, works.
- EK THA TIGER - Teaser Trailer - Salman Khan
- रामभक्त हनुमानाचे अनोखे संग्रहालय
- Chhatrapati Shivaji's rare photos
- व्यक्तिवेध : विजय भटकर
- TDS on Property sales withdrawn, TDS on Jewellery ...
- An interesting note from a great comedian GEORGE ...
- What is menstrual cycle? पाळीचक्राबद्दलची पूर्ण मा...
- Remedies to prevent Fights at home
- वेदनादायक मासिक पाळीपासून मुक्तता
- 10 books that you must read...
- 12 politicians who made Maharashtra proud
- 12 sportspersons who made Maharashtra proud
- GENERAL KNOWLEDGE QUIZ जनरल नॉलेज क्विज 30 April
- General knowledge quiz - जनरल नॉलेज क्विज 19 April
- No pre-payment penalty on home loan
- Skill to improve self-confidence आत्मविश्वास विकसि...
- महाराष्ट्राच्या समस्या व त्यांचे निराकरण करण्याचे ...
- Skype brings face to face couple on divorce course...
- There’s more leg room in city’s lifeline More tha...
- Vishy expects tough contest, says poor form not a ...
- Oz billionaire to float Titanic II in 2016 The bu...
- Hear Bismillah Khan in Rajdhani soon
- Nordic team calls on CM with biz offers
- The invisible helping hands - hree such people — i...
- Marathi manoos Kunte is new BMC chief Dark horse,...
-
▼
May
(97)
No comments:
Post a Comment