360 अरब यूरो की जरूरत है इटली को साल 2012 में देशको इस संकट से बचाने के लिए.) ---चंदन मिश्रा
फ्रांस में निकोलस सरकोजी राष्ट्रपति चुनाव हार गये हैं. सोशलिस्ट पार्टी के फ्रांस्वा ओलांड नये राष्ट्रपति होंगे. आर्थिक मंदी और कर्ज संकट के साये में हुआ यह चुनाव और उनके नतीजे बतलाते हैं कि हालात बदतर होते जा रहे हैं. यूरोपीय देशों में सिर्फ फ्रांस ही एकमात्र ऐसा देश नहीं है, जहां सत्तारूढ. पार्टी को चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा है. इस हार के पीछे भी मौजूदा कर्ज संकट और आर्थिक मंदी को बहुत बड़ी वजह माना जा रहा है. यानी आर्थिक पहलू से देशकी राजनीतिक व्यवस्था बदल रही है. यूरोपीय ऋण संकट 2010 में ग्रीस से शुरू हुआ. एक के बाद दूसरे यूरोपीय देशों को अपने चपेट में लिए जा रहा है. इन देशों का बजट घाटा बेलगाम बढ. रहा है. देश दिवालिया होने की कगार पर ख.डे हैं. यह संकट अक्तूबर 2011 तक आयरलैंड, इटली, स्पेन, पुर्तगाल आदि को अपने चपटे में ले चुका था. अब भी इन देशों की स्थिति में सुधार की संभावना नजर नहीं आ रही है. सबसे अधिक संकट ग्रीस को झेलना पड़ रहा है. ग्रीस ही नहीं, बल्कि यूरोपीय संघ के पांच देश भी गंभीर आर्थिक संकट की चुनौतियों से जूझ रहे हैं. हालात इतने गंभीर हो गये हैं कि ऐसा लग रहा है कि यूरोपीय संघ और उसकी मुद्रा यूरो पतन के कगार पर हैं. ग्रीस, स्पेन पुर्तगाल, आयरलैंड और इटली में सार्वजनिक कर्ज एवं घाटों की स्थिति बेहद खराब बनी हुई है. यही कारण है कि अमेरिकन रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर ने ग्रीस की रेटिंग को जंक (बीबी प्लस) का दर्जा दिया है. पुर्तगाल और स्पेन की भी रेटिंग कम किये गये. ग्रीस में संकट बरकरार
ग्रीस को संकट से उबारने के लिए यूरोजोन के देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने तो लगभग एक खरब डॉलर का एक बेल आउट पैकेज भी दिया. इसके बावजूद संकट बरकरार है. लोगों को जल्द ही यह पता चल गया कि बेलआउट पैकेज समस्या का स्थायी समाधान नहीं कर सकता. गौरतलब है कि ग्रीस हमेशा ही एक गंभीर डिफॉल्टर रहा है. 1830 में आधुनिक ग्रीस की स्थापना से ही हर दूसरे साल यह सरकारी ऋणों के संदर्भ में डिफॉल्टर रहा है. अब तो ग्रीस की मदद करने वाले अन्य देशों को भी लगने लगा है कि इस प्रकार के विशाल बेलआउट के वित्तीय मदद का भार यूरोजोन के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है. ग्रीस के लिए बेलआउट पैकेज की घोषणा के साथ ही फ्रांस, र्जमनी आदि राष्ट्रों के लोग यह आवाज उठाने लगे हैं कि ग्रीस आदि देशों के वित्तीय कुप्रबंधन के लिए उन पर क्यों भार डाला जा रहा है? बढ.ते कर्ज ने बिगाड़ी बात
यूरोपीय संघ के केवल 16 देशों में यूरो एक सामान्य मुद्रा के रूप में चलती है. इसे 'यूरोजोन' के नाम से जाना जाता है. यूरोजोन में ग्रीस जैसे देशों की आर्थिक बदहाली का मुख्य कारण यह है कि इससे संबंधित समझौते सदस्य देशों को राजकोषीय और बजटीय स्तर पर ढील देते हैं. इसके चलते ग्रीस, इटली, आयरलैंड जैसे देशों ने अपने बजटीय घाटों और ऋण को काफी बढ.ा लिया. जैसे, यूरोजोन में शामिल देशों के लिए अन्य शतरें के अलावा यह शर्त रखी गयी कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में 3 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. इसी तरह ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 60 प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिए, जबकि ग्रीस का राजकोषीय घाटा उसके सकल घरेलू उत्पाद का 13 फीसदी है और ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 120 प्रतिशत है. स्पेन का घाटा उसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 12 प्रतिशत है, जबकि पुर्तगाल के लिए यह लगभग 9.5 फीसदी है. इटली का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद की लगभग 120 फीसदी है. इन आंकड़ों से जाहिर होता है कि यूरोजोन की आर्थिक समस्या की जड़ कितनी गहरी है. कर्ज संकट से गयी राष्ट्राध्यक्षों की कुरसी
आर्थिक और ऋण संकट से निपटने में यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व की नाकामी के कारण यह एक गंभीर राजनीतिक संकट में बदलता जा रहा है. इस कारण ग्रीस के प्रधानमंत्री जॉर्ज पॉपेंद्र्यू को पद छोड़ना पड़ा. बलरुस्कोनी को देना पड़ा इस्तीफा
इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बलरुस्कोनी की भी कुर्सी आर्थिक और ऋण संकट के कारण गयी. देश में बजट पर जब मतदान कराया गया, तो उसके बाद ही उनके सहयोगियों और और विपक्षी दलों ने उनके इस्तीफे की मांग की थी. उसका खर्च 1.9 खरब यूरो के हिसाब से बढ.ता जा रहा था. इसका नतीजा यह हुआ कि इटली भी ऋण संकट के भंवर में फंस गया. इन सबके लिए बलरुस्कोनी को ही जिम्मेदार माना गया और अंतत: उन्हें अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा. गौरतलब है कि फ्रांस और र्जमनी के बाद इटली यूरोजोन की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. उसे 2012 में 360 अरब यूरो बाजार से उधार लेना है, ताकि वह अपने पिछले कर्ज को चुका सके. यूरोपीय संघ के कोष में अभी सिर्फ 250 अरब यूरो बचे हैं, ऐसे में उसे मदद की जरूरत पड़ती है, तो यह रकम उसकी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए नाकाफी होंगे. नीदरलैंड में भी खतरे में सरकार
नीदरलैंड में आर्थिक संकट के कारण ही खतरे में है. सरकार ने पिछले दिनों बजट पर सर्मथन नहीं जुटा पायी. नीदरलैंड का बजट घाटा बजट उसके सकल घरेलू उत्पाद का तीन प्रतिशत से भी अधिक हो गया है. इस घाटे को पूरा करने के उपायों पर हुई बैठक भी बेनतीजा रही थी. गौरतलब है कि यह यूरोजोन के अन्य देशों में क.डे वित्तीय नियमों का सर्मथक रहा है, लेकिन उसका अपना बजट घाटा लगातार बढ.ता रहा है. लगातार बढ.ते घाटे के कारण विपक्ष के साथ-साथ लोगों का असंतोष बढ.ता जा रहा है. इस कारण सरकार कभी भी गिर सकती है. सर्बिया में चुनाव व आर्थिक संकट
फ्रांस के साथ-साथ सर्बिया में आर्थिक मुद्दों के बीच 6 मई को राष्ट्रपति, संसदीय और स्थानीय निकाय के चुनाव हुए. सर्बिया के लिए यह कई दशकों में हुआ पहला ऐसा चुनाव है, जिसमें बाल्कान के संघर्षों से अधिक आर्थिक मुद्दे हावी रहे. अंतरराष्ट्रीय रूप से अलग-थलग प.डे देश के बाद सर्बिया ने यूरोपीय संघ की उम्मीदवारी का दर्जा हासिल करने के लिए काफी प्रयास किया. पर, अब यूरोपीय संघ की डंवाडोल स्थिति के कारण इसमें देरी भी हो सकती है.
आयरलैंड ने वैश्विक संस्थाओं से की मदद की गुहार आयरलैंड आर्थिक संकट से इस कदर घिरा हुआ है कि वह अपने बैंकों को दिवालिया होने से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से मदद की गुहार कर रहा है. वहां की सरकार तो अंतरराष्ट्रीय राहत पैकेज के लिए हामी भरते हुए वैश्विक संस्था की सभी शतरें को मानने के लिए तैयार है. आयरलैंड का जनमत इसे राष्ट्रीय संप्रभुता पर आघात मान रहा है. इस वैश्विक आर्थिक संकट का असर भारत पर भी पड़ने की आशंका जतायी गयी है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुद मार्च में इस बात की चेतावनी दी थी कि अगर देश मौजूदा स्थिति से नहीं उबरा, तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. पिछले दिनों आर्थिक विकास के मामले में रेटिंग एजेंसी द्वारा भारत को नकारात्मक सूची में डालने से भी यह बात साबित होती है कि आर्थिक विकास की पटरी पर भारत की रफ्तार बेहद मंद है. यूरो के सामने अस्तित्व का खतरा
यूरोजोन में आये इस संकट ने कई सवाल ख.डे कर दिये. पिछले साल ऋण संकट के मसले पर हुई बैठक में इन्हीं मुद्दों पर र्जमनी और फ्रांस के बीच मतभेद व्यापक स्तर पर उभर कर सामने आया था. इससे स्वयं यूरो के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गये. इस कारण यूरो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले तेजी से गिरता जा रहा है. अब तो यूरोपीय संघ के देश भी यूरो के कारण अपने आपको बंधा हुआ महसूस कर रहे हैं. अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वे मुद्रा अवमूल्यन को एक उपाय के रूप में इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन यूरो की सामान्य मुद्रा होने के कारण वे ऐसा नहीं कर सकते हैं. यदि उनकी मुद्रा अलग होती तो वे विदेशी मुद्राओं के संदर्भ में अपनी मुद्रा का मूल्य कम करके निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के दामों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम एवं आयात की जाने वाली वस्तुओं के घरेलू बाजार में दामों को बढ.ाकर घरेलू उत्पादन एवं रोजगार को बढ.ा सकते थे. आंकड़ों में आर्थिक संकट
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडी ने अपने आकलन में बताया कि सिर्फ 2007 से 2009 के बीच दुनिया के जीडीपी के अनुपात में सरकारों का कुल कर्ज 62 फीसदी से बढ.कर 85 फीसदी हो गया. इनमें भी जी-20 के सदस्य नौ प्रमुख देशों में सात का कर्ज उनके जीडीपी की तुलना में दस फीसदी बढ. गया, जबकि इस दौरान जी-20 में औसत बजट घाटे एक फीसदी से बढ.कर करीब आठ फीसदी हो गये. वहीं, अमेरिका की बात करें तो संघीय सरकार का कर्ज जीडीपी का करीब 85 फीसदी है और सकल कर्ज 150 फीसदी पर है. ब्रिटेन की हालत भी कुछ ठीक नहीं है. 1.5 खरब पाउंड का कुल सरकारी कर्ज और पूरे यूरोपीय देशों में सबसे अधिक बजट घाटा (जीडीपी के मुकाबले 12 फीसदी ) है. हालांकि, ब्रिटेन यूरो जाने से बाहर है, इसलिए वह मुद्रा का अवमूल्यन कर रहा है. इससे हालत और खराब ही होगी. र्जमनी भी जीडीपी के अनुपात में करीब 78 फीसदी कर्ज के साथ खतरे के निशान से ऊपर है. इन देशों के दिवालिया होने का खतरा
पिछले दिनों, मार्केट क्रेडिट रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसे देशों की सूची बनायी थी, जहां आर्थिक स्थिति से चुनौतियां बढ.ने वाली हैं. ग्रीस : यहां आर्थिक स्थिति इस समय सबसे नाजुक दौर में है. धीमी आर्थिक वृद्धि दर, भारी खर्च, जैसी समस्याओं से ग्रीस से जूझ रहा है.
स्लोवेनिया : वैश्विक मंदी में स्लोवेनिया की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है. उसका 2011 का राजकोषीय घाटा 2009 और 2010 के मुकाबले अधिक है. पुर्तगाल : यूरोपीय संघ के उन तीन देशों में पुर्तगाल भी शामिल है, जो संघ की मदद पर निर्भर है. क्षमता से ज्यादा खर्च, धीमी आर्थिक वृद्धि के कारण यह विकसित देशों में दूसरा देश है, जिस पर दिवालिया होने का सबसे ज्यादा खतरा है. स्लोवाक : आर्थिक मंदी के बाद सुधारों के दौरान पूर्वी यूरोप ने ठीक प्रदशर्न किया है, हालांकि, स्लोवाक की स्थिति भी ठीक नहीं है.
मलयेशिया : मलयेशिया 2000 में भी भारी राजकोषीय घाटे में फंस गया था. अब मुद्रास्फीति फिर से इसे घेर रही है. फिनलैंड : अन्य यूरोपीय देशों में फैले कर्ज संकट के कारण इसके बैंक बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
|
No comments:
Post a Comment