Thursday, May 17, 2012

3D Magic थ्रीडी यानी थ्री-डाइमेंशन का छाने लगा है जादू



थ्रीडी यानी थ्री-डाइमेंशन का छाने लगा है जादू
 

(1952 में पहली त्रि-आयामी (थ्रीडी) फिल्म बनायी गयी थी. उस फिल्म का नाम था बवाना डेविल.

2011 में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने थ्रीडी प्रिंटर की मदद से दुनिया का पहला टोही विमान बनाया.

2011 में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने थ्रीडी प्रिंटर की मदद से दुनिया का पहला टोही विमान बनाया.)

 

चित्र या सिनेमा के परदे पर दिखाई देने वाली दुनिया टू-डाइमेंशनल यानी टूडी की रही है. जबकि वास्तविक जीवन में हमारे अनुभव थ्रीडी यानी थ्री डाइमेंशनल होते हैं. इसमें लंबाई और चौड़ाई के साथ ऊंचाई या गहराई का आयाम भी शामिल होता है. पिछले कुछ वर्षों में तकनीकी क्रांति ने सिनेमा और टीवी की दुनिया को भी थ्री डाइमेंशनल बना दिया है. इसका क्रेज धीरे-धीरे बढ.ता जा रहा है. टीवी, अखबार और इ-बुक तक इसका दायरा बढ.ने लगा है. यहां तक कि थ्री-डी प्रिंटर की मदद से दवाइयां और टोही विमान तक बनाये जाने लगे हैं. किस तरह थ्रीडी तकनीक काम करती है और किन क्षेत्रों में हो रहा है इस्तेमाल इन्हीं मुद्दों की पड़ताल करता आज का नॉलेज.

▪नॉलेज डेस्क

पि छले दिनों दुनिया के सबसे ब.डे और विशाल जहाजों में शुमार टाइटेनिक के डूबने के सौ साल पूरे हो गये. आज अगर टाइटेनिक हमारे जेहन जिंदा है, तो इसी नाम से बनी हॉलीवुड की फिल्म की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है. अब इस फिल्म का थ्रीडी वर्जन 5 अप्रैल को रिलीज किया गया. हालांकि, यह कोई पहली फिल्म नहीं थी, जिसे थ्रीडी वर्जन में रिलीज किया गया हो. इसके पहले भी कई ऐसी फिल्में आ चुकी हैं. लेकिन, अब खास बात यह है कि थ्रीडी फिल्मों की लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ.ती जा रही है. आखिर थ्रीडी में क्या खास बात है कि यह लोकप्रिय होता जा रहा है. अगर, सीधी भाषा में कहें तो थ्रीडी का प्रभाव ही लोगों को रोमांचित करता है.

अब 1997 में आयी नॉन थ्रीडी टाइटेनिक के मुकाबले इस फिल्म की तुलना करें, तो थ्रीडी टाइटेनिक में महासागर के तल में प.डे टाइटेनिक से उड़ती धूल की मोटी परतें आपके चेहरे को छूती हुई निकलने लगती है. इसके बाद जब फिल्म की अभिनेत्री रोज (केट विंसलेट) अपनी कार से उतरती है, तो थ्रीडी प्रभाव की बदौलत ऐसा लगती है मानो वह सिर्फ आप ही से मुखातिब है. दरअसल, आमतौर पर फिल्में द्विआयामी या टू डाइमेंशनल होती हैं, जिसमें चित्रों की सिर्फ लंबाई और चौड़ाई ही दिखती है, जबकि त्रि-आयामी यानी 3डी फिल्मों की लंबाई चौड़ाई के अलावा दृश्यों की गहराई भी दिखाई देती है. शुरू में थ्रीडी फिल्में दो कैमरों के प्रयोग से बनायी जाती थीं. सबसे बडी. बात की इस तरह की फिल्मों को देखने के लिए एक विशेष प्रकार के चश्मे को लगाना पड़ता है.

क्या है थ्रीडी

त्रिकोणमिति यानी जियोमेट्री में थ्रीडी का अर्थ लंबाई, चौड़ाई और गहराई से लगाया जाता है. यानी हम दुनिया में जो कुछ देखते हैं वह इन तीनों को जोड़कर देखते हैं. ऐसे में थ्रीडी स्क्रीन में हम तसवीर या वीडियो को लंबाई , चौड़ाई और गहराई में देखते हैं. इससे लगता है कि स्क्रीन में चल रही इमेज के हम आस-पास हैं. उदाहरण के तौर पर, अगर थ्रीडी स्क्रीन में कार रेस देखी जा रही है, तो देखने वाले को लगता है कि कार आपको छूकर निकल गयी. आप स्क्रीन में चल रही फिल्म को देखकर महसूस कर सकते हैं.

कैसे बनती हैं थ्रीडी फिल्में

थ्रीडी फिल्मों को बनाने के लिए ऐनाग्लिफिक 3-डी और पोलेराइज्ड 3-डी नामक दो प्रणालियों का इस्तेमाल किया जाता है. ऐग्नाग्लिफिक 3-डी प्रणाली के द्वारा सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में ही बनायी जा सकती है. इसमें दो प्रोजेक्टरों का इस्तेमाल होता है, एक पर लाल और दूसरे पर नीला फिल्टर लगा होता है, जब फिल्म देखना होता है तो बायीं आंख पर लाल एवं दायीं आंख पर नीले फिल्टर वाला चश्मा लगाना पड़ता है. इससे आंखों द्वारा देखे गये लाल और नीले प्रतिबिंब हमारे मस्तिष्क में श्याम और श्‍वेत त्रि-आयामी प्रतिबिंब बनाते हैं.

जबकि दूसरी प्रणाली पोलेराइज्ड 3-डी में प्रोजेटर और दशर्क द्वारा ध्रुवित यानी पोलेराइज्ड फिल्टर का प्रयोग किया जाता है. जब प्रकाश फिल्टर से गुजरता है, तो ध्रुवण के कारण दो प्रतिबिंब अलग-अलग हो जाते हैं. सबसे बड़ी बात कि इस तरह की फिल्मों को दिखाने के लिए एल्युमिनाइज्ड सिल्वर स्क्रीन नामक एक विशेष परदे का इस्तेमाल किया जाता है.


3डी टीवी का बढ.ता क्रेज

सिनेमाघरों तक सीमित थ्रीडी तकनीक अब टेलीविजन से लेकर अन्य उत्पादों में भी दिखने लगा है. सोनी, पैनासॉनिक, मित्सुबिशी जैसी कंपनियां थ्रीडी टीवी बाजार में उतारने को तैयार हैं. इन कंपनियों का दावा है कि मौजूदा हाई डेफिनिशन प्लाज्मा तकनीक से लैस टेलीविजन के थ्रीडी स्वरूप आने से टीवी क्रांति में नये युग की शुरुआत होगी. दक्षिण कोरियाई कंपनी एलजी ने तो दुनिया का पहला थ्रीडी एलक्ष्डी टीवी बाजार में पेश भी कर दिया है.

एलएस 9500 नाम के इस 55 इंच के टीवी में 480 हर्टज का टू मोशन प्रोसेसर, वायरलेस एवी लिंक और एचडीएमआइ 1.4 सपोर्ट भी है. अगर इसमें वीडियो कैमरा लगाया जाये तो इसमें वीडियो कांफ्रेंसिंग भी की जा सकती है.

थ्रीडी अखबार भी

बेल्जियम में फ्रेंच भाषा में छपने वाले एक अखबार ने पिछले दिनों यूरोप का पहला थ्रीडी अंक प्रकाशित कर प्रिंट मीडिया में एक क्रांतिकारी कदम बढ.ाया. ला डार्नियर (डीएच) नामक इस अखबार ने अपने इस विशेषांक के सभी फोटो और विज्ञान को थ्रीडी प्रारूप में प्रकाशति किया. इस विशेषांक को देखने के लिए पाठकों को मोटे कागज से बने हुए चश्मे भी दिये गये. हालांकि, लागत को देखते हुए इसे आगे नहीं छापा गया.

ई-बुक भी कमाल का

थ्रीडी में ई-बुक को चीन के ग्वांगजू इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने बनाया. इससे कहानी को जीवंत रूप में देखा जा सकता है. हालांकि, इसके लिए खासतौर पर बने कंप्यूटर स्क्रीन वाले चश्मे की जरूरत पड़ती है. सबसे दिलचस्प बात यह कि इससे न सिर्फ किताब का कंटेंट थ्रीडी रूप में दिखेगा, बल्कि उसमें शामिल चित्र और कथानक भी बिल्कुल जीवंत स्वरूप में नजर आयेंगे.

4डी भी आयेगा

थ्रीडी फिल्मों के बाद 4डी की भी तैयारी कर ली गयी है. पिछले दिनों दक्षिण कोरिया में 4डी प्लेक्स सिनेमा को आने वाले समय की हॉट टेक्नोलॉजी के तौर पर पेश किया गया. इस तरह की तकनीक से लैस थिएटरों में बैठने के लिए मोशन सीट्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो स्क्रीन पर चल रहे एक्शन के मुताबिक हिलती-डुलती हैं. यानी आप कुर्सी पर बैठे हैं तो हीरो या हीरोइन की गतिविधियों के हिसाब से आपकी कुर्सी भी हिलेगी इसमें स्पेशल इफेक्ट्स के जरिये कुहरा, हवा का बहाव, बिजली का कड़कना और गंध तक का अनुभव किया जा सकता है.

तकनीक के क्षेत्र में होने वाले नित नये बदलाव और विकास का ही नतीजा है कि आज 2डी से हम थ्रीडी की दुनिया में कदम रख चुके हैं. अब जैसा कि 4डी को भी लाने की भी तैयारी की जा रही है, अगर यह सफल रहता है तो इस लिहाज से विज्ञान और तकनीक की यह बहुत बड़ी उपलब्धि कही जायेगी.
 

सावधानी बरतने की भी है जरूरत

थ्रीडी फिल्में, टेलीविजन और वीडियो गेम इनके उपयोगकर्ता को स्वास्थ्य की दृष्टि से लचर बना सकती है. आंखों की देखभाल से जुड़ी एक अमेरिकी संस्था के मुताबिक, थ्रीडी फिल्मों और वीडियो गेम का उपयोग करने से यूर्जस को उबकाई आने और सिरदर्द की समस्याएं हो सकती हैं. साथ ही इन तकनीक का उपयोग करने के अभ्यस्त होने पर ये शारीरिक समस्याएं गंभीर रोगों में भी बदल सकती हैं. आंखों की देखभाल करने वाले चिकित्सकों, विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों से जुड़ी अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ ऑप्टोमेट्रस्ट्सि संस्था के मुताबिक, 3-डी तकनीक देखे जा रहे दृश्य को वास्तविक बनाकर भले ही मनोरंजन को दोगुना कर देती हो, लेकिन यह आंखों और शरीर में कई समस्याओं को जन्म दे सकती है.

चौथाई लोग प्रभावित : दरअसल, इस संस्था ने थ्रीडी दृश्य तकनीक का मानव अंगों पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने के लिए ऑनलाइन सर्वे कराया था. सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, एक चौथाई से अधिक थ्रीडी तकनीक यूर्जस को आंखों में तनाव, चक्कर और उल्टी आने एवं सिरदर्द की समस्याओं से ग्रसित पाया गया.

तसवीरें देती हैं चकमा : संस्था से जु.डे अधिकांश स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि थ्रीडी तकनीक से जुड़ी समस्याएं इसलिए पैदा होती हैं, क्योंकि थ्रीडी तसवीरें हमारे शरीर के विजुअल सिस्टम को चकमा दे देती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि आंख एक निश्‍चित प्रक्रिया के तहत कार्य करती है. पहले तो यह योग्य स्थान पर जाकर रुकती है, फिर उसे फोकस करती है, लेकिन 3-डी सिस्टम में भ्रम जैसी स्थिति होती है और देखने की प्रक्रिया के अनुकूल नहीं होती है. इस कारण से अधिकतर लोग थ्रीडी तकनीक के असावधानीपूर्ण इस्तेमाल के बाद कई समस्याओं का शिकार हो जाते हैं. गौरतलब है कि पिछले साल रिलीज हुई फिल्म अवतार के दौरान भी कई दर्शकों को इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था. नतीजतन जरूरी है कि थ्रीडी फिल्मों को सावधानी से देखा जाये.


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