Thursday, May 17, 2012

Electronic Wastage Law इलेक्ट्रॉनिक-कचरा कारगर होगा नया कानून!



इलेक्ट्रॉनिक-कचरा कारगर होगा नया कानून!

(600 से अधिक ई-कचरा संग्रहण केंद्र देश में हैं. इन केंद्रों पर ही ई-कचरों का निबटान हो सकता है.

3,50,000 टन ई-कचरा हर साल भारत में पैदा होता है और 50,000 टन का आयात.

05 प्रतिशत है इलेक्ट्रॉनिक कचरे का हिस्सा, विश्‍व के कुल कचरे में.)
 

भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरे यानी ई-कचरे की समस्या को निपटाने के लिए कानून 1 मई से लागू हो गया. इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रुल्स-2011 के इस कानून के तहत पूरे देश में कोई भी ई-कचरे को यूं ही कहीं फेंक या डंप नहीं कर सकता है. इन्हें पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाले केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड द्वारा अधिकृत कचरा संग्रहण केंद्र में ही डंप किया जा सकता है. ई-कचरे के प्रबंधन एवं उसे रिसाइकल करने संबंधी इस कानून से स्थिति में कितना आयेगा बदलाव, क्या है इलेक्ट्रॉनिक-कचरा और इसके निबटान में किस तरह की हैं चुनौतियां? इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित है आज का नॉलेज.

▪चंदन मिश्रा

अक्सर हम अपने घरों का कू.डे-कचरा बाहर फेंक देते हैं. इस पर न तो कोई हमसे सवाल करता है और न ही इसके लिए किसी तरह के दंड का प्रावधान हैं. यह तो बात हुई सामान्य कचरे की. लेकिन यदि आप टीवी, मोबाइल या लैपटॉप या किसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक कचरे को बाहर डंप करते हैं, तो इसके लिए आपको जुर्माने के साथ-साथ सजा भी हो सकती है. दरअसल, सरकार ने मंगलवार यानी एक मई से पूरे देश में इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रुल्स-2011 को लागू कर दिया है. इसके तहत ई-कचरे को आप यूं ही कहीं भी डंप नहीं कर सकते हैं. इस कानून के तहत आपको ई-कचरे को सरकार द्वारा अधिकृत एजेंसियों को देना होगा. सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स-2011 के तहत 73 रिसाइकलर्स (प्रयोग की गयी वस्तु का दोबारा प्रयोग के लायक बनाने वाली एजेंसी) को अधिकृत किया है.

पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, इस कानून में प्रावधान है कि कोई भी उपभोक्ता अपने पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान को तीन तरीकों से डिस्पोज यानी बेच या नष्ट कर सकता है- पहला, अधिकृत संग्रह केंद्र पर, दूसरा-प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी अधिकृत रिसाइकलस या तीसरा-उत्पादक के पास जमा कर. हालांकि, इस कानून में कई प्रावधानों को लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने विरोध भी जताया है. लेकिन कानून के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादक कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि वे ई-कचरे को इकट्ठा करें. यही वजह है कि उत्पादक कंपनियां इस कानून में सुधार चाहती है.

क्या था नियम

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ई-कचरे के प्रबंधन एवं निपटान के लिए खतरनाक कचरा प्रबंधन, रखरखाव एवं सीमापार यातायात नियम 2008 बनाये थे. इसके मुताबिक, ई-कचरे के निपटान में इकाइयों की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकृत होना जरूरी है.

क्या है मौजूदा कानून में प्रावधान

पिछले साल मई में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने ई-वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग रूल्स की अधिसूचना जारी की थी. इस बारे में इससे जु.डे कारोबारियों और उपभोक्ताओं को जानकारी देने के लिए एक साल का समय दिया गया था. यह कानून इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद के सभी प्रकार के उत्पादकों, कारोबारियों, थोक उपभोक्ताओं और उपभोक्ताओं पर लागू होगा. इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक वस्तुओं की उपयोग की उम्र निपटाने की जिम्मेदारी उत्पादक संस्थान की होगी. उत्पादक के लिए ही नहीं, बल्कि इस तरह के कचरे के पुन:चक्रण (रिसाइकलिंग) और निपटान के लिए जिम्मेदार संस्थाओं पर भी सही तरीके से निपटाने के लिए यह नियम लागू होगा. उपकरणों के खराब और अनुपयोगी होने पर उपयोगकर्ता की भी जिम्मेदारी होगी.

क्या है ई-कचरा

ई-वेस्ट आइटी कंपिनयों से निकलने वाला कबाड़ा है, जो तकनीक में आ रहे बदलावों और स्टाइल के कारण निकलता है. उदाहरण के तौर पर, पहले बडे आकार के कंप्यूटर और मॉनीटर आते थे, अब इनकी जगह स्लिम और फ्लैट स्क्रीन वाले छोटे मॉनीटरों ने ले लिया है. माउस, की-बोर्ड, मोबाइल के खराब पुज्रे या अन्य उपकरण जो चलन से बाहर हो गये हैं, वे ई-वेस्ट की श्रेणी में आ जाते हैं. पुरानी शैली के कंप्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक खिलौने और अन्य उपकरणों के बेकार हो जाने के कारण भारत में हर साल इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है.

यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पत्र कर सकता है. विकसित देशों में अमेरिका की बात करें, तो वहां हर घर में पूरे साल में छोटे-मोटे लगभग 24 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे जाते हैं. इन पुराने उपकरणों का फिर कोई उपयोग नहीं होता. इसके अलावा अमेरिका में कितना ई-कचरा पैदा होता है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वहां 7 प्रतिशत लोग हर साल मोबाइल बदलते हैं और पुराना मोबाइल कचरे में डाल देते हैं.

देश में कितना ई-कचरा

भारत में सरकारी आंक.डे के मुताबिक, 2004 में देश में ई-कचरा एक लाख 46 हजार 800 टन थी, जो 2012 में बढ.कर आठ लाख टन तक होने का अनुमान है. वहीं, ई-कचरा पैदा करने वाले 10 शीर्ष शहरों में दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, चेत्रई और हैदराबाद शामिल हैं.

किस तरह की है चुनौती

विकसित देश अपने यहां ई-कचरे गरीब देशों को बेच रहे हैं. विकसित देश यह नहीं देखते कि गरीब देशों में ई-कचरे के निपटाने के लिए नियम-कानून बने हैं या नहीं. इस कचरे से होने वाले नुकसान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनमें 38 अलग प्रकार के रासायिनक तत्व शामिल होते हैं. इनसे काफी नुकसान भी हो सकता है. जैसे टीवी और पुराने कंप्यूूटर मॉनिटर में लगी सीआरटी (कैथोड रे ट्यूब) को रिसाइकल करना मुश्किल होता है. इस कचरे में लीड (शीशा), मरक्युरी (पारा) जैसे घातक तत्व भी होते हैं. दरअसल ई-कचरे का निपटारा आसान काम नहीं है, क्योंकि इसमें प्लास्टिक और कई तरह की धातुओं से लेकर अन्य पदार्थ रहते हैं.

इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि निकाली जाती है. इसे जलाने से जहरीला धुंआ निकलता है जो काफी घातक होता है. विकासशील देश इसका इस्तेमाल तेजाब में डुबोकर या फिर उन्हें जलाकर उनमें से सोना-चांदी, प्लैटिनम और दूसरी धातुएं निकालने के लिए करते हैं.

क्या स्थिति है भारत की

भारत में सूचना प्रोद्योगिकी का क्षेत्र बेंगलुरु है. यहां करीब 1700 आइटी कंपनियां काम कर रही हैं. उनसे हर साल 6000 हजार से 8000 टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता है.

सबसे चिंता की बात तो यह है कि देश में निकलने वाला हजारों टन ई-कचरा कबाड़ी ही खरीद रहे हैं. इनके पास इस तरह के कचरे को खरीदने की न अनुमति है और न ही वैज्ञानिक तरीके से निपटाने की व्यवस्था. हालांकि, विभित्र स्थानों से ई-कचरा इकट्ठा करने के लिए नेटवर्क बनाया गया है. देश में 600 से अधिक ई-कचरा संग्रहण केंद्र भी हैं. लेकिन, जिस अनुपात में कचरे का उत्पादन होता है, उस लिहाज से यह संख्या कम है. गौरतलब है कि 600 इन संगठनों पर हर साल लगभग 3000 टन ई-कचरा ही रिसाइकिल किया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगले 10 वर्षों में भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री बहुत तेजी से बढे.गी. इस तरह इनसे निकलने वाले ई-कचरे का पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव प.डेगा.

रिपोर्ट के अनुसार, इस समय हर साल भारत में रेफ्रिजेरेटर से 100,000 टन, टेलीविजन से 275,000 टन, कंप्यूटर से 56,300 टन, प्रिंटर से 4,700 टन और मोबाइल फोन से 1,700 टन ई-कचरा निकलता है. 2020 तक पुराने कंप्यूटरों की वजह से ई-कचरे का आंकड़ा भारत में 500 फीसदी तक बढ. जायेगा. इस तरह अगर ई-कचरे का पुन:चक्रण को लेकर सख्ती से कानून का पालन नहीं किया गया, तो गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है.
 
विकासशील देशों में और गंभीर है समस्या

ई-कचरे की समस्या से सिर्फ भारत ही नहीं, कई देशों में हालात गंभीर होते जा रहे हैं. सभी अधिक विकट समस्या विकासशील देशों की है, जो सर्वाधिक सुरक्षित डंपिंग क्षेत्र माना जाता है. इस कारण विकसित देश भारत, चीन और पाकिस्तान सरीखे एशियाई देशों को ई-कचरों का निर्यात करते हैं. विकासशील अपनी समस्याओं को ताक पर रखकर इन कचरों का आयात करते हैं. भारत में तो हालत यह है कि ऐसे कचरे के आयात पर प्रतिबंध के लिए भारत में चौदह साल पहले बने कचरा प्रबंधन और निगरानी कानून-1989 को धता बताकर औद्योगिक घरानों ने इनका आयात जारी रखा है. अमेरिका, जापान, चीन और ताइवान सरीखे देश तकनीकी उपकरणों में लैस, मोबाइल, फोटोकॉपियर, कम्प्यूटर, लैपटॉप, टीवी, माइक्रोचिप्स, सीडी आदि के कबाड़ होते ही इन्हें दक्षिण पूर्व एशिया के जिन कुछ देशों में ठिकाने लगाते हैं. उनमें भारत का नाम सबसे ऊपर है. अमेरिका के बारे में कहा जाता है कि वह अपने यहां का 80 प्रतिशत ई-कचरा चीन, मलेशिया, भारत, कीनिया और अफ्रीकी देशों में भेजता है. गौरतलब है कि दुनिया के देशों में तेजी से बढ.ती इलेक्ट्रॉनिक क्रांति से एक तरफ जहां आम लोगों की उस पर निर्भरता बढ.ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक कचरे से होने वाले खतरे ने पूरे दक्षिण पूर्व एशिया खासकर भारतीय उपमहाद्वीप की चिंता बढ.ा दी है. पर्यावरण के खतरे और गंभीर बीमारियों का स्रोत बन रहे इस कचरे का भारत प्रमुख उपभोक्ता है. मोबाइल फोन, लैपटॉप, टेलीविजन और कबाड़ बन चुके कंप्यूटरों के कचरे भारी तबाही के तौर पर सामने आ रहे हैं.
 
स्वास्थ्य और पर्यावरण को खतरा

इलेक्ट्रॉनिक चीजों को बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों में ज्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और मरकरी का इस्तेमाल किया जाता है. ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. इनमें से काफी चीजें तो रिसाइकल करने वाली कंपनियां ले जाती हैं, लेकिन कुछ चीजें कबाड़ी के जरिये बाहर ही रहती हैं. वे हवा, मिट्टी और भूमिगत जल में मिलकर जहर का काम करती हैं. कैडमियम से फेफ.डे प्रभावित होते हैं, जबकि कैडमियम के धुएं और धूल के कारण फेफ.डे और किडनी दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचता है. एक कंप्यूटर में आमतौर पर 3.8 पौंड शीशा, फास्फोरस, केडमियम और मरकरी जैसे हानिकारक तत्व होते हैं. इन्हें जलाने पर ये हानिकारक तत्व सीधे वातावरण में घुलते हैं. इनका अवशेष पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है. अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस के एक अध्ययन के मुताबिक, 49 देशों से इस तरह का कचरा भारत में आयात होता है.
 
कितना कारगर हो पायेगा यह कानून!

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेसल कंवेन्शन के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक कचरे संबंधी नियमों का पालन होता है. चीन ने अपने यहां ई-कचरे आयात करने पर रोक कुछ समय पहले ही लगायी है. हांगकांग में बैटरियां और कैथोड-रे ट्यूब आयात नहीं किया जा सकता. इसके अलावा दक्षिण कोरिया, जापान और ताइवान ने यह नियम बनाया है कि जो कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाती हैं वे अपने वार्षिक उत्पादन का 75 प्रतिशत रिसाइकल करें. वहीं, भारत में तो अभी ई-कचरे के निपटान और रिसाइकलिंग के लिए ठोस कोशिश प्रयास ही शुरू नहीं हुए. हालांकि, तामिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, उसने सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियों को ई-कचरे के निस्तारण के लिए उचित तरीके अपनाने की हिदायत दी थी, लेकिन ज्यादातर कंपनियां इसका पालन नहीं करतीं. ऐसे में क.डे कानून की जरूरत है. अब जबकि नये कानून को लागू कर दिया गया है, तो उसका पालन किस तरीके से होता है यह भी एक चुनौती है, क्योंकि कई कंपनियां इसमें सुधार की मांग भी कर रही हैं.



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