Thursday, May 17, 2012

BRIC Challenge विकसित देशों को चुनौती देती ब्रिक्स की आर्थिक इमारत



विकसित देशों को चुनौती देती
ब्रिक्स की आर्थिक इमारत

43 फीसदी आबादी रहती है दुनिया की ब्रिक्स के इन पांच देशों में.
25 फीसदी की हिस्सेदारी है वैश्‍विक जीडीपी में इन पांच देशों की.

पिछले साल ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के बीच आपसी कारोबार 230 अरब डॉलर का रहा. इन देशों ने 2015 तक इसे बढ.ाकर 500 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा है. विश्‍व के कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ब्रिक्स देश वैश्‍विक ताकत की परिभाषा बदलेंगे. नयी दिल्ली में समाप्त हुए इस सम्मेलन में कई आर्थिक समझौते हुए, जो इसकी पुष्टि करते हैं. इस सम्मलेन के बहाने विकसित देशों की आर्थिक स्थिति और ब्रिक्स देशों की आर्थिक स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करता आज का नॉलेज ..

43 फीसदी आबादी रहती है दुनिया की ब्रिक्स के इन पांच देशों में.

25 फीसदी की हिस्सेदारी है वैश्‍विक जीडीपी में इन पांच देशों की.विकल्प गढ.ता ब्रिक्स बैंक

ब्रिक्स सम्मेलन की सबसे अहम घोषणा ब्रिक्स बैंक या साउथ-साउथ विकास बैंक का निर्माण करना है. ब्रिक्स देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक में भी ब्रिक्स विकास बैंक अहम एजेंडे के रूप में शामिल था. बैंक को ब्रिक्स देशों से धन मिलेगा और वे ही इसका प्रबंधन करेंगे. इसके संसाधनों का इस्तेमाल उन क्षेत्रों को सहायता देने में किया जायेगा, जिनको आमतौर पर मौजूदा संगठनों से मदद नहीं मिलती. ब्रिक्स बैंक की स्थापना से समूह के देशों को इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण जैसी परियोजनाओं के लिए सस्ता धन मिल सकेगा, वहीं यूरोप जैसे कर्ज संकट के समूह ब्रिक्स बैंक सदस्य देशों को वित्तीय सहायता मुहैया करवा सकेगा. अगर ब्रिक्स देशों के बैंकों के बीच कर्ज और लेनदेन को आसान करने की सहमति बन जाती है, तो इससे कारोबार सुविधाजनक तो होगा ही लेनदेन की लागत भी घटेगी. कुछ लोगों का कहना है कि जैसे अमेरिका विश्‍व बैंक को अपने इशारे पर चलाता है, वैसे ट्रिलियन डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार पर बैठा चीन प्रस्तावित ब्रिक्स बैंकॉक अपने हिस्से से हांकेगा. हालांकि, यह डर इसलिए बेबुनियाद है, क्योंकि ब्रिक्स बैंक को विश्‍व बैंक की तर्ज पर बहुत ज्यादा कार्यशाली पूंजी की जरूरत नहीं होगी, लिहाजा पूंजी संरचना के मामले में दक्षिण अफ्रीका भी चीन की बराबरी करने की स्थिति में होगा. ब्रिक्स देशों ने कहा है कि ब्रिक्स बैंक का खाका कुछ-कुछ ब्राजीलियन विकास बैंक जैसा होगा. गौरतलब है कि ब्राजीलियन विकास बैंक अपने ऋण वितरण का 30 फीसदी छोटे और मझोले संस्थानों को और 40 फीसदी ब.डे संस्थानों को देता है. ब्रिक्स बैंक की सफलता की सबसे बड़ी शर्त राजनीतिक स्थिरता है और इस मोर्चे पर रूस, ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका का रिकॉर्ड उम्दा नहीं है. एक विडंबना यह भी है कि एक ओर ब्रिक्स देश आइएमएफ-विश्‍व बैंक में सुधार की मांग उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ब्रिक्स बैंक बनाने की बात हो रही है. कहना न होगा, ब्रिक्स बैंक की स्थापना से वैश्‍विक वित्तीय संस्थानों में सुधार के लिए विकसित देशों पर बढ.ता दबाव कमजोर पड़ जायेगा.स्थानीय मुद्रा में कारोबार

अगर जमीन पर उतरा, तो ब्रिक्स देशों के बीच स्थानीय मुद्रा में कारोबार करने का विचार क्रांतिकारी है. फिलवक्त, दुनिया के 18 फीसदी कारोबार और 53 फीसदी विदेशी पूंजी प्रवाह पर ब्रिक्स देशों का नियंत्रण है. विश्‍व बैंक-आइएमएफ की कमर तोड़ने के लिए ब्रिक्स देश आपसी कारोबार और निवेश बढ.ाने के लिए रियल, रुबल, रुपये, युआन और रेंड में व्यापार कर सकते हैं. यूरोप की बीमारी ने दुनिया को बता दिया है कि साझा मुद्रा का विचार कारगर नहीं है और स्थानीय मुद्राओं में कारोबार के कई फायदे हैं. साझा मुद्रा होने से कर्ज संकट के समय मुद्रा अवमूल्यन नहीं किया जा सकता है. मुद्रा अवमूल्यन कर पाने स्थिति में समूह के सारे देश डोमिनो प्रभाव की चपेट में आ जाते हैं. जब कर्ज संकट में फंसे किसी एक देश को आर्थिक सहायता देकर उतारने की कोशिश की जाती है, तो उसी समूह का दूसरा देश कर्ज संकट में फंस जाता है और धीरे-धीरे साझा मुद्रा का इस्तेमाल करने वाले उस समूह के सारे देश कर्ज संकट में फंस जाते हैं. अर्थशास्त्र की भाषा में इसे डोमिनो प्रभाव कहते हैं. और यूरोपीय यूनियन के देश इसी संकट में फंसे हुए हैं. स्थानीय मुद्राओं में कारोबार करने से ब्रिक्स देशों की डॉलर और यूरो जैसी मुद्राओं से निर्भरता कम हो जायेगी, लिहाजा, ब्रिक्स देश यूरोप और अमेरिकी अर्थव्यवस्थाआें के झटकों से कम आहत होंगे. स्थानीय मुद्रा में कारोबार से विनिमय के उतार-चढ.ाव और मुद्रा के अवमूल्यन जैसी दिक्कतें दूर हो जायेंगी. भारत-चीन का आपसी व्यापार चीन के पक्ष में हुआ है, लेकिन स्थानीय मुद्रा में कारोबार करने से यह बीमारी दूर हो जायेगी. फिलहाल, विश्‍व में तेल और सोना समेत दूसरी जिन्सों का कारोबार करने के लिए डॉलर का सहारा लेना पड़ता है. ईरान के साथ अपने बिगड़ते संबंधों के अमेरिका ब्रिक्स देशों समेत दुनिया की सारी अहम अर्थव्यवस्थओं पर ईरान से तेल आयात बंद करने के लिए दबाव बना रहा है. तेल का भुगतान डॉलर में किया जाता है. इससे अमेरिका मजबूत जमीन पर खड़ा है. स्थानीय मुद्राओं में कारोबार से देशों का मुद्रा भंडार विविधतापूर्ण होगा और ऐसे में भारत-ईरान तेल भुगतान जैसे संकट से दो-चार नहीं होना प.डेगा.त्नअरविंद कुमार सेन

नयी दिल्ली में खत्म हुए चौथे ब्रिक्स सम्मेलन से दुनिया के मौद्रिक तंत्र पर कुंडली मारकर बैठे विकसित देशों को कई चुनौतीपूर्ण संदेशमिले हैं. विश्‍व बैंक-आइएमएफ में विकासशील देशों को समुचित जगह, स्थानीय मुद्राओं में व्यापार, एक-दूसरे की अर्थव्यवस्थाओं में निवेश, ब्रिक्स बैंक की स्थापना और ब्रिक्स देशों के बीच आपसी कारोबार में बढ.ोतरी जैसी सुझावों पर अमल करने की बात ब्रिक्स नेताओं ने कही है. इसमें कोई दोराय नहीं है कि वैश्‍विक दोहरी मंदी के साये में आयोजित हुए उभरती अर्थव्यवस्थाओं के इस सम्मेलन में कही गयी बातें अगर धरातल पर उतरती हैं, तो अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में विकसित देशों का वर्चस्व टूटना तय है. मगर वायदे करना आसान है, पर उन वायदों पर अमल करना बेहद मुश्किल है. वैश्‍विक शक्ति संतुलन में बदलाव की हुंकार पहले सम्मेलन से ही भरी जा रही है. लेकिन, बैठक में शामिल होने की रवायत पूरी कर सदस्य देश अलग-अलग धुनियों में रम जाते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की चाबी कर्ज संकट में फंसे यूरोप और बदहाल अमेरिका के हाथों से फिसलकर ब्रिक्स के पास आ चुकी है. ब्रिक्स देशों के पास दुनिया का 30 फीसदी भू-भाग और इन देशों में दुनिया की 43 फीसदी आबादी रहती है. तीन अरब आबादी वाले ब्रिक्स देश खरीद क्षमता के लिहाज से दुनिया के सबसे आकर्षक बाजार हैं. ब्रिक्स देशों की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वैश्‍विक जीडीपी में इन देशों की हिस्सेदारी 25 फीसदी से ज्यादा है. पांचों ब्रिक्स देश दुनिया की सबसे तेज उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं और समय बीतने के साथ इनकी ताकत में इजाफा होता जा रहा है.

आइएमएफ-विश्‍वबैंक में सुधार

येकातेरिन्बर्ग(रूस) में हुए पहले सम्मेलन से लेकर नयी दिल्ली के हालिया ब्रिक्स सम्मेलन तक विश्‍व बैंक-आइएमएफ में सुधार की बात लगातार दोहराई जा रही है. अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र की मामूली जानकारी रखने वाला कोई भी शख्स यह बता सकता है कि आइएमएफ-विश्‍व बैंक विकसित देशों के जेबी (पॉकेट) संगठन हैं. इनका बुनियादी चरित्र बदले बगैर विकासशील देश वैश्‍विक शक्ति संतुलन को नये सिरे से परिभाषित नहीं कर सकते हैं. आइएमएफ से डोमिनिक स्ट्रास कान की विदाई के बाद आइएमएफ प्रमुख पद के लिए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया का नाम उछला था. अमेरिका ने भारत को फुसलाया, वहीं यूरोप की मीठी गोली खाकर चीन भारत का सर्मथन करने के सवाल से पीछे हट गया. यह विडंबना ही है कि जहां नयी दिल्ली में आयोजित ब्रिक्स शिखर बैठक में दोहराया गया कि विश्‍व बैंक और आइएमएफ में शीर्ष पदों के लिए चयन प्रक्रिया और खुली एवं योग्यता आधारित होनी चाहिए, वहीं विश्‍व बैंक के अध्यक्ष के पद पर एक और अमेरिकी के नामांकन से लगता है कि चीजें पहले जैसी ही हैं. एक वर्ष से भी कम वक्त गुजरा है, जब आइएमएफ प्रमुख के रूप में मैक्सिको के अगस्टिन कास्र्टेस की दावेदारी खत्म हो गयी थी, क्योंकि अमेरिका और यूरोप के अलावा कम-से-कम तीन ब्रिक्स देशों ने फ्रांस की क्रिस्टीना लेगार्ड का सर्मथन किया था. इस तरह, इस संगठन में किसी यूरोपीय का नेतृत्व बरकरार रहा. ब्रिक्स देशों की एकता सम्मेलन के भाषणों में ही नजर आती है और बदलाव का अवसर मिलने पर ब्रिक्स देशों में अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से विकसित देशों के उम्मीदवारों का सर्मथन करते हैं. यही कारण है कि तमाम



दबावों के बावजूद आइएमएफ-विश्‍व बैंक में ब्रिक्स देशों के पूंजीगत आधार में आज तक इजाफा नहीं हुआ है और पूंजीगत आधार में बढ.ोतरी हुए बिना संसाधनों का आवंटन नहीं बढ. सकता है.

आपसी कारोबार

पिछले साल ब्रिक्स देशों के बीच आपसी कारोबार 230 अरब डॉलर का रहा है और ब्रिक्स देशों ने 2015 तक इसे बढ.ाकर 500 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा है. ब्राजील और रूस उन जिन्सों के निर्यातक हैं, जिनके आयात की जरूरत भारत और चीन को है. चीन का विनिर्माण काबिलियत, भारत का सर्विस सेंटर, रूस के तेल-गैस भंडार, ब्राजील की इंफ्रास्ट्रक्चर ताकत और दक्षिण अफ्रीका का विशाल मानव एवं प्राकृतिक संसाधन आपसी कारोबार से एक साथ आते हैं, ढहते विकसित देशों की चूलें हिलाई जा सकती हैं. विकसित देशों की विकास दर नकारात्मक हो गयी हैं. वहां के बाजार परिपक्व होने के कारण मांग में लगातार कमी हो रही है.



वहीं, अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार व तेजी से बढ. रही युवा आबादी वाले ब्रिक्स देशों में मांग उफान पर है और समय के साथ यह खपत बढ.ती जायेगी. जाहिर है, ब्रिक्स देशों का आपसी कारोबार नयी ऊंचाइयां छू सकता है, जबकि विकसित देश इस विशाल बाजार से महरूम रह सकते हैं.

ब्रिक्स की कमजोर कड़ी

2001 में ब्रिक्स शब्द गढ.ने वाली टीम के प्रमुख गोल्डमैन सैस के जिम ओनील ने कहा था कि ब्रिक्स देश वैश्‍विक ताकत की परिभाषा बदलेंगे और ओ नील ने कई र्मतबा कहा कि भारत इस बदलाव की अगुवाई करने में सक्षम है. एक दशक बाद पिछले दिनों ओनील ने कहा कि ब्रिक्स देशों में भारत कमजोर कड़ी बनता जा रहा है और कुछ मायनों में भारत का प्रदर्शन सबसे अधिक निराशाजनक है. निश्‍चित तौर पर भ्रष्टाचार और नीति-निर्माण में पंगुता के शिखर भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन लगातार फीका पड़ता जा रहा है और आंक.डे इस बात पर मुहर लगाते हैं. देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और सार्वजनिक कर्ज का अनुपात हमेशा अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा रहा है, लेकिन अब यह इतना अधिक हो चुका है कि इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. कभी 66 फीसदी के आंक.डे के साथ यह उभरती अर्थव्यवस्था वाले मुल्कों में दूसरे नंबर पर है. दूसरे देशों से उदाहरण लें, तो चीन में यह अनुपात 16 फीसदी और रूस में और भी कम है. यह केवल देश के कल्याणकारी कदमों या प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण नहीं बढ.ा है. कम संसाधन वाले और लोकतांत्रिक समाजकल्याण व्यवस्था वाले दूसरे देशों का प्रदशर्न भारत से बेहतर है. थाइलैंड में यह अनुपात 44 फीसदी और इंडोनेशिया में 25 फीसदी है. द इकोनॉमिस्ट ने हाल ही में राजकोषीय स्थिति के आधार पर देशों को रैंकिंग प्रदान की है. इसमें मौद्रिक पहलू से समेकित मुद्रास्फीति, ऋणविकास, वास्तविक ब्याज दर, विनिमय दर संबंधी हलचल तथा चालू खाता घाटे के सूचकांक लिये गये हैं, जबकि राजकोषीय पक्ष से इसमें सार्वजिनक ऋण और बजट घाटे को शामिल किया गया है. भारत को इस सूची में नीचे से दूसरा स्थान मिला. यकीनन दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर भारत बाकी तीन ब्रिक्स देशों से पिछड़ चुका है. चीन स्थायी विकास के आधार पर तो रूस संसाधनों के प्रबंधन और ब्राजील राजकोषीय नवाचार के चलते हमसे बहुत आगे निकल गया है. भारत के कारोबारी माहौल में लंबे समय से सुधार की उम्मीद लगाये बैठे निवेशक अब सिविट देशों (कोलंबिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, मिस्र, तुर्की और दक्षिण अफ्रीका) का रुख करने लगे हैं. भारत का ब्रिक्स की अगुवाई करने के लिए अर्थव्यवस्था की गाड़ी को दोबारा नौ फीसदी की विकास दर पर लाना होगा. कहा जाता है कि सियासी संतुलन से पहले आर्थिक माहौल पक्ष में करना चाहिए और इस नजरिये से ब्रिक्स का हालिया सम्मेलन सही दिशा में कहा जायेगा. राजनीति की तरह अर्थव्यवस्था

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